20 साल बाद अंतरिक्ष में ही दफन हो गया कासिनी
१५ सितम्बर २०१७कासिनी ने सौरमंडल में पृथ्वी के बाहर जीवन की परिकल्पना को भी नया आयाम दिया. करीब 3.9 अरब डॉलर की लागत वाली इस परियोजना से 27 देशों के वैज्ञानिक जुड़े थे. शुक्रवार को जब यह शनिग्रह के वायुमंडल में विलीन हो जाने के लिए करीब 1,20,700 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से बढ़ा तो कासिनी के प्रोग्राम मैनेजर अर्ल माइज ने नासा की लैब में अपने सहकर्मियों से कहा, "अंतरिक्ष यान के सिग्नल मिलने बंद हो गये हैं. मुझे उम्मीद है कि आप सभी इस शानदार सफलता पर गर्व का अनुभव कर रहे होंगे. यह एक अतुलनीय मिशन, अतुलनीय अंतरिक्ष यान था और आप सभी एक अतुलनीय टीम हैं."
कासिनी का पृथ्वी के साथ आखिरी संपर्क जीएमटी के मुताबिक सुबह 11 बजकर 55 मिनट पर हुआ. अनुमान है कि इसके करीब डेढ़ घंटे पहले कासिनी शनि ग्रह की ओर अपने आखिरी सफर पर चला होगा. सिग्नल को पृथ्वी तक पहुंचने में लंबी दूरी तय करनी पड़ी इसलिए इसे देर लगी.
कासिनी शनि के गैसों वाले वलय में खो गया यह पृथ्वी से नंगी आंखों देखा जाने वाला सबसे दूर का ग्रह है. तकरीबन 7.9 अरब किलोमीटर का सफर तय करने के बाद यान का रॉकेट ईंधन खत्म हो गया. यह यान की सोची समझी मौत थी जो शनि के सागर वाली चंद्रमाओं टाइटन और एनसेलेडुस को खतरे से बचाने के लिहाज से सोची गयी थी. कासिनी के अलावा तीन और अंतरिक्ष यान शनि की तरफ भेजे गये थे. इनमें पायनियर 11 1979 में गया था जबकि वॉयजर 1 और 2 1980 के दशक में गए थे. हालांकि इन तीनों में से कोई भी उतनी जानकारी शनि के बारे में नहीं जुटा सका जितनी कासिनी ने जुटाई. इस अंतरिक्ष यान का नाम फ्रेंच इतालवी अंतरिक्षविज्ञानी जोवानी डोमेनिको कासिनी के नाम पर रखा गया था. 17वीं सदी में कासिनी ने यह पता लगाया था कि शनि के इर्द गिर्द कई चंद्रमाएं हैं. साथ ही ये भी कि शनि और उसके वलय के बीच में खाली जगह है.
कासिनी को फ्लोरिडा के केप कैनेवेरल से 1997 में छोड़ा गया था. इसके बाद इसे सात साल शनि ग्रह तक पहुंचने में लगे. 13 सालों तक इसने शनि ग्रह की परिक्रमा की. इस समय में इसने शनि के इर्द गिर्द छह चंद्रमाओं का पता लगाया और एक विकराल आंधी के बारे में जानकारी दी जिसने शनि ग्रह पर काफी हलचल मचाई थी. 22 फुट लंबे और 13 फुट चौड़े इस अंतरिक्ष यान ने एनसेलेडाउस से निकलने वाली बर्फीले झरनों की भी खोज की थी और साथ ही इस बात का भी पता किया कि इथेन और मीथेन गैस के हाइड्रोकार्बन से बनी झीलों वाला टाइटन शनि का सबसे विशाल चंद्रमा है.
2005 में कासिनी ने टाइटन पर ह्यूजेन्स नाम के एक छोटे यान को उतारा था. यह बाहरी सौरमंडल में पहली और अकेली लैंडिग थी. ह्यूजेन्स यूरोपीय स्पेस एजेंसी, इटैलियन स्पेस एजेंसी और नासा का संयुक्त उपक्रम था. मिशन ने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के मुलार्ड स्पेस साइंस लैबोरेट्री में प्लेनेटरी साइंस ग्रुप के प्रमुख एंड्रयू कोएट्स कहते हैं, "हमने शनि ग्रह के बारे में एक बिल्कुल नयी किताब लिख दी."
एनआर/एमजे (रॉयटर्स)