35 साल से धधकते शोले
१६ अगस्त २०१०35 साल पहले भारत के हर कोने की मांओं को अपने लाडले को सुलाने के लिए गब्बर का नाम मिल गया. आज़ाद देश के हर थाने में अंग्रेजों के जमाने के जेलर पाए जाने लगे, जय वीरू की दोस्ती पक्की यारी का पैमाना बन गई, हर डाकू के पास एक सांबा रहने लगा और हर गांव में एक ठाकुर अपने हाथों को संजीव कुमार के हाथों सा मजबूत बताने में जुट गया. अभी बसंती, धन्नो, बूढ़ी मौसी, पियक्कड़ वीरू और कम उम्र में विधवा बनी जया बच्चन से जुड़ी कहानियों का जिक्र तो बाकी ही है. ये शोले ही है जिसने भारतीय सिनेमा को इतने किरदार दिए हैं कि हर एक को लेकर अलग से फिल्म बनाई जा सकती है.
तीन दशक बीत गए हैं लेकिन अब भी शोले की चर्चा करने चलो तो समझ में नहीं आता कि किस किरदार को बड़ा और छोटा कहें या किसका जिक्र सबसे पहले करें. जय-वीरू तो हीरो थे गब्बर ने विलेन होने के बावजूद इतनी सुर्खियां बटोरीं कि फिल्म के हीरो को जलन हो गई. जिसने भी ये फिल्म देखी उससे चर्चा करें तो वो अपने अनुभव बताते हुए भावुक हो जाता है.
कंप्यूटर इंजीनियर महेश सारंग कहते हैं कि उन्होंने न जाने कितनी बार शोले देखी है और हर बार उन्हें ये फिल्म नई मालूम पड़ती है. सारंग के मुताबिक फिल्म के हर छोटे बड़े किरदार को इतनी बारीकी से गढ़ा गया कि कहानी बिल्कुल स्वाभाविक लगने लगी. फिल्म में सांबा का किरदार निभाने वाले मैकमोहन का इसी साल निधन हुआ. मैकमोहन ने जिस अंदाज में 50,000 रुपये के इनाम का नाम लिया वो हमेशा के लिए अमर हो गया. तिहाई सदी से ज्यादा बीत गई लेकिन अब भी डाकूओं के सिर पर इनाम की बात हो तो सबसे पहले 50,000 का ही ख्याल आता है.
फिल्म का एक-एक डायलॉग लोगों को इतना भाया कि कब वो हमारी आम बोलचाल का हिस्सा बन गया पता ही नहीं चला. लोग चलते-फिरते एक दूसरे पर डायलॉग मारते और फिर मिलकर इस फिल्म के दृश्यों को याद करते. गांव की नौटंकियों में तो ये तय हो गया कि पात्रों में एक डाकू जरूर होगा और उसका नाम गब्बर ही होगा. डाकू सुनते ही लोगों के जेहन में सबसे पहले गब्बर का ही ख्याल आता. आज भी कॉमेडी के शो हों या कोई गंभीर कहानी का किरदार शोले के किरदारों की छवि कहीं न कहीं इस्तेमाल हो ही जाती है.
फिल्म जब बनी तो किसी को उम्मीद न थी कि ये इतनी हिट होगी. शुरुआत में तो दर्शकों को रिस्पांस भी फीका ही था. जैसे-जैसे देखने वालों के मुंह से लोगों को फिल्म के बारे में पता चलने लगा सिनेमाहॉल में दर्शकों की भीड़ उमड़ने लगी. इसमें कोई शक नहीं कि अमिताभ, धर्मेंद्र, संजीव कुमार, हेमा मालिनी, जया भादुड़ी, असरानी और यहां तक कि गब्बर का रोल करने वाले अमजद खान ने भी इसके बाद कई बेहतरीन फिल्में की लेकिन इस एक फिल्म ने इन सारे कलाकारों की तस्वीर लोगों के जेहन में हमेशा के लिए चस्पा कर दी.
रिपोर्टः पीटीआई/एन रंजन
संपादनः ए जमाल