40 साल में अमेरिका को पछाड़ देंगे भारत, चीन
१८ दिसम्बर २००९एक स्वीडिश डॉक्टर, अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य के प्रोफ़ेसर और सांख्यिकीविद डॉ. हांस रोजलिंग अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं के जानकार हैं. पिछले नवंबर में टेड डॉट कॉम पर अपनी एक वार्ता में डॉ. रोजलिंग ने कहा कि वास्तव में विकासशील देश विकसित देशों की तुलना में अर्थव्यवस्था, लोक स्वास्थ्य और गवर्नेंस के क्षेत्र में तेजी से प्रगति कर रहे हैं.
टेड टॉक कांफ़्रेंस में रोजलिंग ने आंकड़ों की मदद से यह सिद्ध किया कि अफ़्रीकी देशों में विकास की दर विकसित देशों से भी अधिक है. इतना ही नहीं, उन्होंने कहा कि आगे आने वाला समय एशियाई देशों का होगा और 27 जुलाई, 2048 को अर्थव्यवस्था और विकास की दृष्टि से भारत और चीन, अमेरिका और ब्रिटेन को भी पीछे छोड़ देंगे.
अपनी वार्ता में डॉ.रोजलिंग ने कहा जैसा कि हजारों वर्ष पहले था, ठीक उसी तरह आने वाले विश्व में एशिया का वर्चस्व होगा. उन्होंने कहा कि 27 जुलाई, 2048 को भारत और चीन में प्रति व्यक्ति आय पश्चिम में विकसित देशों की बराबरी पर पहुंच जाएगी. हालांकि अर्थव्यस्थाओं के आकार की दृष्टि से इन देशों में अंतर बना रहेगा, लेकिन इस समय तक प्रति माह, प्रत्येक व्यक्ति की औसत आमदनी अमेरिका और ब्रिटेन के बराबर पहुंच जाएगी.
उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा राज्य है, लेकिन सबसे अधिक ग़रीब भी. शेष भारत की तुलना में यहां स्वास्थ्य की हालत ख़राब है. दूसरी ओर केरल है, जो विकसित है और स्वास्थ्य के मामले में उतना ही विकसित है जितना अमेरिका. दूसरी ओर महाराष्ट्र है, जो आगे बढ़ रहा है.
अपने संबोधन में डॉ.रोजलिंग ने कहा कि पश्चिमी देशों में वर्ष 1858 बड़े तकनीकी परिवर्तनों का समय था और इसी वर्ष ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया ने ट्रांसअटलांटिक टेलीग्राफिक़ केबल के जरिए अमेरिकी राष्ट्रपति बुकानन से बातचीत की थी. इसी तरह वर्ष 1858 एशिया के इतिहास में भी महत्वपूर्ण वर्ष था.
वर्ष 1858 में ब्रिटिश सेना ने भारत में शक्तिशाली विद्रोह को दबा दिया था. इसके 89 और वर्षों तक भारत को ग़ुलामी का दौर देखना पड़ा. वर्ष 1858 में ही चीन में ब्रिटिश सेना ने अफ़ीम युद्ध जीता था. उस समय हुई संधि के अनुसार विदेशी चीन में मुक्त व्यापार करने के लिए स्वतंत्र हो गए थे. वे चीनी वस्तुओं की कीमत अफ़ीम से चुका सकते थे. इसी वर्ष (1858) जापान को हैरिस संधि करना पड़ी थी और अमेरिकी हितों की कीमत पर भी व्यापार करने को बाध्य होना पड़ा था. जापान अमेरिकी दबाव में रहा, लेकिन भारत और चीन से अलग यह अपनी प्रभुसत्ता को बनाए रखने में कामयाब रहा.
1858 में भारत और चीन की तुलना में जापान, अमेरिका और ब्रिटेन अधिक सम्पन्न थे, लेकिन अगर हम सैकड़ों वर्षों पीछे लौटें तो पाएंगे कि भारत और चीन में प्रति व्यक्ति आय यूरोप की तुलना में काफ़ी आगे थी.
लेकिन 1850 का दशक भारत में गुलामी का समय था. औद्योगिक प्रगति ठप थी और उस समय अमेरिका, ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था तरक्की कर रही थी. सदी के अंत तक इन देशों के लोगों के स्वास्थ्य में सुधार आ रहा था. जापान भी इन देशों की बराबरी पर आने की कोशिश कर रहा था तब भारत नीचे की तरह जा रहा था. नई सदी में इन देशों में स्वास्थ्य की बेहतरी हुई, लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के दौरान दुनिया में बहुत सारी मौतें हुईं और आर्थिक समस्याओं ने सिर उठाया. ऐसे में ब्रिटेन की स्थिति बिगड़ी और प्रथम विश्व युद्ध के बाद स्पैनिश फ़्लू ने असर दिखाया.
प्रथम विश्व युद्ध के बाद भारत और चीन ग़ुलामी में ही धीरे-धीरे प्रगति करते रहे. इनकी जनसंख्या बढ़ी, लेकिन संसाधन कम होते गए. 1930 में जापान भी युद्ध में शामिल हो गया. दूसरा विश्व युद्ध जापान के लिए आर्थिक रूप से बहुत भयानक साबित हुआ. पर जापान ने बड़े दम खम से इस समस्या पर क़ाबू पाया और अपनी स्थिति संभाल ली.
वर्ष 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिली, लेकिन इसकी समस्याएं बड़ी और बड़ी होती गईं. 1949 में आधुनिक चीन का उदय हुआ और चीन ने सारी दुनिया को चौंकाया. स्वंतत्रता के बाद स्वास्थ्य में सुधार हुआ, शिक्षा में सुधार हुआ और माओ त्से तुंग के शासन काल ने चीन को सुधारा और इस बीच भारत ने भी आगे बढ़ने की कोशिश की. माओ के बाद देंग शियाओ पिंग का जमाना आया.
दोनों देशों ने अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ाया और बाजार सुधारों को आज़माया. आज भी दोनों देशों के बीच अंतरों की तुलना में समानताएं बहुत अधिक हैं. दोनों देशों ने प्रगति की है, लेकिन अगर आप चीन की प्रगति देखें तो पता चलेगा कि यहां एक इलाका शंघाई का है, जो अमेरिका के किसी इलाक़े से ज्यादा समृद्ध है पर दूसरी ओर गुईझाओ भी है जो पिछड़ा और सबसे ग़रीब क्षेत्र है.
अगर आप शहरी और ग्रामीण गुईझाओ की तुलना करते हैं तो पाएंगे कि शहरी इलाक़े की तुलना में ग्रामीण क्षेत्र अधिक ग़रीब हैं. इस तरह चीन में तेज़ आर्थिक वृद्धि के बीच बहुत अधिक असमानता है.
इसी तरह अगर आप भारत को देखें तो पाएंगे कि यहां एक-दूसरे प्रकार की असमानता है. उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा राज्य है, लेकिन सबसे अधिक ग़रीब भी. शेष भारत की तुलना में यहां स्वास्थ्य की हालत खराब है. दूसरी ओर केरल है, जो विकसित है और स्वास्थ्य के मामले में उतना ही विकसित है जितना कि अमेरिका. दूसरी ओर महाराष्ट्र है, जो आगे बढ़ रहा है.
भारत में राज्यों के बीच असमानताओं की तुलना में राज्यों में ही बहुत सी असमानताएं देखने को मिलेंगी, पर अगर असमानता किसी ग्रोथ सेंटर के पास है तो इसे धीरे-धीरे कम किया जा सकता है.
प्रथम विश्व युद्ध के बाद भारत और चीन ग़ुलामी में ही धीरे-धीरे प्रगति करते रहे. इनकी जनसंख्या बढ़ी, लेकिन संसाधन कम होते गए. 1930 में जापान भी युद्ध में शामिल हो गया. दूसरा विश्व युद्ध जापान के लिए आर्थिक रूप से बहुत भयानक साबित हुआ.
आप देख सकते हैं कि शिक्षा और स्वास्थ्य के मामले में दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा आगे बढ़ रहा है, लेकिन अफ़्रीका और चीन के गुईझाओ जैसे इलाक़े में लोगों का स्वास्थ्य निचले स्तर का है और उनकी अर्थव्यवस्था भी बहुत निम्न स्तरीय है. दुनिया में बहुत अधिक असमानताएं हैं लेकिन दुनिया के बीच का हिस्सा बड़ी तेजी से आगे की ओर बढ़ रहा है.
वर्ष 1858 में विदेशी शासन के अधीन चीन की प्रति व्यक्ति आय भारत के ही क़रीब थी, जबकि ब्रिटेन और अमेरिकी और अमीर होते चले गए. दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका ब्रिटेन से भी आगे निकल गया. पर अब भारत और चीन में वृद्धि तेज हो रही है और आर्थिक सुधारों पर ज़ोर है. 2014 तक दोनों देशों के आगे बढ़ते जाने का समय है.
जबकि दूसरी ओर अमेरिका में लेहमैन ब्रदर्स जैसी दिग्गज कंपनियां ध्वस्त हो रही हैं, लेकिन एशियाई देशों में प्रगति धीमी लेकिन निरंतर हो रही है. इसलिए जो लोग प्रगति को देखते हैं उनकी निगाहें एशिया पर लगी हैं. पर भारत-चीन में असमानताएं बहुत अधिक और गहरी हैं.
समूची जनसंख्या को प्रगति और सम्पन्नता की ओर लिए जाने के लिए जरूरी है कि घरेलू बाजार विकसित हो, सामाजिक असमानता कम हो और स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी जरूरतों में सामाजिक निवेश ज्यादा हो. ऊर्जा भारत और चीन के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण है.
जलवायु में होने वाले परिवर्तन भारत और चीन को बहुत प्रभावित कर सकते हैं. इसलिए भारत और चीन को अच्छी वैश्विक जलवायु नीति में सहयोग करना चाहिए. एक और बड़ी चिंता युद्ध की है, जो भारत और चीन की आर्थिक परेशानियों को और गहरा सकती है.
साथ ही जो देश सम्पन्न हैं, वे जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर भरपाई करने की कोशिश भी नहीं करेंगे. ये देश नहीं चाहेंगे कि विश्व अर्थव्यवस्था में परिवर्तन हो और पिछले 100 से 150 वर्षों से चल रही स्थिति पर एशियाई वर्चस्व बन पाए, पर अगर जलवायु परिवर्तन, युद्ध और असमानताओं पर क़ाबू पाने में यह देश सफल रहते हैं तो 2048 में और 27 जुलाई के दिन भारत, चीन की अर्थव्यवस्थाएं अमेरिका और ब्रिटेन की अर्थव्यवस्थाओं को पीछे छोड़ देंगी.