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समानताऑस्ट्रेलिया

ध्रुवों पर अधिकतर महिलाओं के अनुभव खराब रहेः रिपोर्ट

विवेक कुमार
१३ जून २०२४

आर्कटिक और अंटार्कटिक क्षेत्रों में काम करने वाली अधिकतर महिलाओं ने कहा है कि उनके अनुभव खराब रहे. लिंगभेद से लेकर जरूरी सुविधाओं की कमी तक उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा.

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नॉर्वे के आर्कटिक क्षेत्र में काम में जुटे वैज्ञानिक
ध्रुवों पर होने वाले शोधकार्य में महिलाओं को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता हैतस्वीर: CRAIG JACKSON via REUTERS

आर्कटिक और अंटार्कटिक जैसे दुरूह क्षेत्रों में काम करना अपने आप में एक चुनौती है. इसके ऊपर महिलाओं को इसलिए अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि वे महिलाएं हैं. एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि 79 फीसदी महिलाओं के अनुभव खराब रहे हैं.

विशेषज्ञों ने ध्रुवीय क्षेत्रों में काम कर चुकीं दुनियाभर की 300 से ज्यादा महिलाओं से बातचीत के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार की है. यह रिपोर्ट शोध पत्रिका पीएलओएस क्लाइमेट (PLOS) में प्रकाशित हुई है.

रिपोर्ट कहती है कि महिलाओं के सामने जो सबसे प्रमुख पांच दिक्कतें आईं, वे अन्य लोगों के साथ काम करने का माहौल, संवाद, लिंगभेद, आराम ना मिल पाना और मौसम से जुड़ी थीं.

शोध करने वालों में से एक रेबेका डंकन सिडनी की टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी (UTS) में पीएचडी कर रही हैं. इस शोध के बारे में लिखे एक लेख में डंकन कहती हैं कि उनकी टीम को इन समस्याओं के बारे में पहले से पता था लेकिन शोध के दौरान उन्हें अहसास हुआ कि इनका विस्तार कितना ज्यादा और गहरा है.

डंकन कहती हैं, "आर्कटिक और अंटार्कटिक क्षेत्रों में होने वाले शोध विज्ञान के लिए बेहद अहम हैं... महिलाएं इनमें बहुत जरूरी भूमिका निभाती हैं. वे शोध सहायक से लेकर टीम लीडर तक अलग-अलग भूमिकाओं में काम करती हैं. लेकिन हमारे सर्वे से पता चला कि बहुत बड़े स्तर पर महिलाओं के अनुभव खराब रहे हैं.”

सर्वे के नतीजों का आधार

रेबेका डंकन और उनकी टीम ने पिछले साल सितंबर से नवंबर के बीच 300 से ज्यादा उन महिलाओं से बातचीत की जिन्होंने ध्रुवीय क्षेत्रों में काम किया है. इन महिलाओं में 18 वर्ष से लेकर 70 वर्ष से भी अधिक की महिलाएं शामिल थीं जो अलग-अलग देशों और राष्ट्रीयता के अलावा अनुभव में भी अलग-अलग थीं.

सर्वे का निष्कर्ष है कि आर्कटिक और अंटार्कटिक में काम करते हुए 79 फीसदी महिलाओं के अनुभव खराब रहे. इन महिलाओं ने जो समस्याएं बताईं, वे टीम के बीच विवाद से लेकर शोषण के लिए जवाबदेही के ना होने से लिंगभेद तक फैली हुई थीं.

एक चौथाई महिलाओं ने कहा कि उन्होंने यौन शोषण, मनोवैज्ञानिक यातनाएं, हिंसा, नस्लवाद या समलैंगिक नफरत आदि झेला. 18 फीसदी से ज्यादा के अनुभव महिलाओं के साफ-सफाई से जुड़ी सुविधाओं की कमी के कारण खराब रहे जबकि इतनी ही महिलाओं ने यौन शोषण की शिकायत की.

36 फीसदी महिलाओं के अनुभव खराब होने की वजह मौसम था जबकि 28 फीसदी से ज्यादा महिलाओं ने कहा कि आराम का समय बहुत कम मिला. सिर्फ एक तिहाई महिलाओं ने कहा कि उन्हें समुचित निजता उपलब्ध हुई, जबकि 11 प्रतिशत से ज्यादा महिलाओं ने यौन या शारीरिक हिंसा का सामना किया.

शोध पत्र कहता है कि 83 फीसदी महिलाओं ने इस बात से सहमति जताई कि ‘उनके काम को समुचित सम्मान मिला' लेकिन 30 फीसदी महिलाओं ने कहा कि इस ‘समुचित सम्मान के लिए उन्हें अपने सहयोगियों से ज्यादा मेहनत करनी पड़ी.'

रिपोर्ट के मुताबिक एक महिला ने कहा, "महिलाओं को अक्सर प्रयोगशालाओं में काम दिया जाता है जबकि पुरुष अक्सर बाहर जाते हैं और महिलाओं के लिए नमूने लेकर आते हैं, जिन्हें वे रात को बैठकर जांचती हैं.”

एक अन्य ने कहा कि "महिलाएं क्या कर सकती हैं, इसे लेकर अवधारणा में फर्क होता है, जैसे कि बड़ी मशीनों के इस्तेमाल को लेकर.”

महिला वैज्ञानिकों के लिए बदलाव की जरूरत

डंकन कहती हैं कि कामकाज का मौजूदा ढांचा पुरुषों के अनुरूप है जिसे बदलने जाने की जरूरत है. मसलन, शौचालयों की उचित सुविधा नहीं है जिसके कारण जब महिलाओं को इन सुविधाओं का इस्तेमाल करना होता है तो उन्हें बाहर जाना होता है और पूरे कपड़े (ध्रुव पर पहना जाने वाला बंद लिबास) उतारने पड़ते हैं.

आर्कटिक की बर्फ में जहाज चलते देखेंगे हम?

रिपोर्ट में जिन बदलावों की सिफारिश की गई है उनमें महिलाओं को अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए ज्यादा सशक्त बनाने की जरूरत पर खास जोर दिया गया है.

दुनिया में महिला वैज्ञानिकों की संख्या में कमी वैसे ही चिंता का विषय रहा है. डंकन कहती हैं कि इन हालात को बदलने के लिए कई तरह के कदम उठाए जाने की जरूरत है, जैसे कि एक आचार संहिता होनी चाहिए. वह कहती हैं, "हमने पाया है कि बहुत कम शोध अभियानों में एक स्पष्ट आचार संहिता या शोषण के खिलाफ शिकायत के लिए एक ढांचा उपलब्ध था. यह एक बेहद अहम तत्व है और इसे संस्थागत स्तर पर सुधारा जाना चाहिए ताकि महिलाएं बोलने में सुरक्षित महसूस कर सकें.”

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