ग्रीस के आखिरी खानाबदोश गड़ेरिये
भेड़-बकरियों के साथ स्थायी खेती का चलन सदियों से चला आ रहा है. मिलिए कुछ ऐसे लोगों से जिन्होंने औद्योगिक कृषि, पर्यटन और जलवायु परिवर्तन के दबाव के बावजूद इस परंपरा को जीवित रखा हुआ है.
दशकों से गड़ेरिये का काम
इलेनी त्जिमा और उनके पति नासोस त्जिमा करीब 53 सालों से अपने पशुधन को गर्मियों में चरने लायक घास तक उत्तर पश्चिम ग्रीस के पहाड़ी इलाकों में ले जाते हैं और फिर सर्दियों में तराई में स्थित अपने घर वापस ले आते हैं.
हजारों साल पुरानी परंपरा
त्जिमा परिवार हजारों साल पुरानी परंपरा का हिस्सा है. मौसम के मुताबिक वे अपने जानवरों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं. लेकिन ग्रीस में इस तरह की परंपरा खत्म हो रही है और वे देश में इस प्रकार की खेती करने वाले कुछ ही लोगों में से हैं.
बुढ़ापे में भी जीवित रखी है परंपरा
गर्मियों के महीनों के दौरान ये दंपति जो कि 80 साल के करीब हैं, एक रेडियो, मोबाइल फोन और रोशनी के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग करते हुए, एक अस्थायी झोपड़ी में रहते हैं. वे अल्बानिया के साथ लगने वाली ग्रीस की सीमा के पास पहाड़ी पिंडस नेशनल पार्क में "डियावा" के रूप में जाने जाने वाले एक वार्षिक ट्रेक में भाग लेने वाले सबसे पुराने चरवाहों में से हैं.
संघर्ष करते हुए
इलेनी त्जिमा कहती हैं, "हम हर दिन सुबह से शाम तक संघर्ष करते हैं. मैंने कभी भी एक दिन की छुट्टी नहीं ली क्योंकि जानवर भी कभी छुट्टी नहीं लेते." वे बताती हैं कि उन्हें पहाड़ों में गर्मी का मौसम पसंद है और उन्हें वहां शांति मिलती है. वे कहती हैं, "मैंने इस जीवन को नहीं चुना, लेकिन अगर मेरे पास कोई विकल्प होता, तो वह यही होता."
गायब होती सांस्कृतिक विरासत
मौसम के मुताबिक जानवरों को चराने ले जाने का दस्तूर मुख्य तौर पर ग्रीस के स्वदेशी समूहों जैसे व्लाच्स और साराकात्सानी द्वारा किया जाता है, साथ ही अल्बानिया और रोमानिया के प्रवासियों द्वारा भी किया जाता है. 1960 और 70 के दशक में मशीनीकृत कृषि और नई खेती प्रौद्योगिकी जब लोकप्रिय हुई तो इस तरह की परंपरा खत्म होती चली गई.
यूनेस्को से मिली पहचान
यूनेस्को ने 2019 में पशु चराने के इस अभ्यास को एक "अमूर्त सांस्कृतिक विरासत" नाम दिया और इसे कृषि पशुधन के लिए सबसे टिकाऊ और कुशल तरीकों में से एक के रूप में करार दिया.
खत्म होते रास्ते
आज कम ही चरवाहे पहले से बने हुए रास्तों पर जाते हैं. एक समय में गड़ेरियों ने मार्गों का एक व्यापक नेटवर्क स्थापित किया था और अब वह नेटवर्क धीरे-धीरे खत्म हो रहा है. साथ ही जंगल भी सिमटते जा रहे हैं.
जानवरों को अलग रखने के लिए रंग
थोमस जियाग्कस अपने भेड़ों को लाल मिट्टी की मदद से रंग दे रहे हैं ताकि वे अन्य जानवरों के झुंड से मिल ना जाए. आजकल वह शायद ही रास्ते पर अन्य चरवाहों से मिलते हैं.
दूध का कारोबार
यहां के चरवाहे आमतौर पर दूध का इस्तेमाल पनीर बनाने के लिए करते हैं. इस तरह के दूरदराज के स्थानों से दूध को प्रोसेसिंग प्लांट तक ले जाना मुश्किल है. कभी-कभी वे उन स्थानीय लोगों या व्यापारियों को पनीर बेचते हैं जो उनसे यहां मिलने आते हैं.
पहाड़ी घास के फायदे
गड़ेरिये निकोस सैटाइटिस बताते हैं कि पहाड़ी घास से भेड़ों को उच्च गुणवत्ता वाला चारा मिलता है. जिससे स्वस्थ पनीर, दूध और दही का उत्पादन होता है जो खेतों से मेल नहीं खाता. हालांकि चरवाहों को अपने उत्पाद को कम कीमतों पर बेचने के लिए मजबूर किया जाता है. उनके मुताबिक डेयरी फार्म में बनने वाले उत्पादों से उनके उत्पादों की तुलना सही नहीं है क्योंकि उसके लिए वे कड़ी मेहनत करते हैं.