कोलकाता की एक इमारत जो बांग्लादेश को चाहिए
बांग्लादेश ने भारत से अनुरोध किया है कि कोलकाता में चार, थिएटर रोड पर खड़ी इमारत को उसके उच्चायोग को दे दिया जाए. जानिए क्यों बांग्लादेश के लिए खास है भारत की ये इमारत.
चार, थिएटर रोड
इस इमारत को औरोबिन्दो भवन के नाम से जाना जाता है. मशहूर दार्शनिक और आध्यात्मिक गुरु औरोबिन्दो घोष का 1872 में यहीं पर जन्म हुआ था. लेकिन बांग्लादेश सरकार चाह रही है कि भारत ये मकान कोलकाता स्थित बांग्लादेश के उच्चायोग को सौंप दे.
बांग्लादेश स्वतंत्रता आंदोलन से संबंध
दरअसल इस मकान की एक और पहचान है. 1971 में यह बांग्लादेश की निर्वासित सरकार का केंद्र था. उस समय बांग्लादेश को पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था और वहां शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में पाकिस्तान से स्वतंत्रता हासिल करने का आंदोलन चल रहा था. भारत इस आंदोलन का समर्थन कर रहा था.
आंदोलन का मुख्यालय
1970 में पूर्वी पाकिस्तान में चुनाव हुए थे और उन चुनावों में रहमान की अवामी लीग ने भारी संख्या में सीटें जीती थीं. लेकिन मार्च 1971 में पाकिस्तानी सेना ने रहमान को गिरफ्तार कर लिया और पश्चिमी पाकिस्तान में एक जेल में डाल दिया. उसके बाद स्वतंत्रता आंदोलन को रहमान के साथियों ने चलाया. औरोबिन्दो भवन इस आंदोलन का मुख्यालय था.
निर्वासित सरकार का केंद्र
अप्रैल में अवामी लीग के इन निर्वाचित सदस्यों ने भारत की सीमा के नजदीक बांग्लादेश के निर्वासित सरकार बना ली. रहमान की गैर मौजूदगी में सैय्यद नजरुल इस्लाम इस सरकार के कार्यकारी राष्ट्रपति बनाए गए और कार्यकारी ताजुद्दीन अहमद प्रधानमंत्री. नौ महीनों तक निर्वासित सरकार औरोबिन्दो भवन से ही चलाई गई.
एक इमारत में सरकार
माना जाता है कि यह भवन उस सरकार की सभी गतिविधियों का केंद्र था. एक छोटे से कमरे में प्रधानमंत्री का दफ्तर था और उसके पीछे उनके लिए सोने का कमरा. कार्यकारी राष्ट्रपति, कैबिनेट मंत्री और सेना प्रमुख के लिए दफ्तर और सांसदों के लिए हॉस्टल जैसे कमरे भी थे.
नई पहचान
बाद के सालों में थिएटर रोड का नाम बदल कर शेक्सपियर सारणी कर दिया गया और इस भवन का पता हो गया आठ, शेक्सपियर सारणी. आज यहां औरोबिन्दो के जीवन से जुड़ी किताबें और अन्य सामान रखा हुआ है.
बांग्लादेश का अनुरोध
मुजीबुर रहमान की बेटी और बांग्लादेश की मौजूदा प्रधानमंत्री शेख हसीना ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध किया कि उनकी सरकार को इस इमारत को उनके पिता और बांग्लादेश की पहली सरकार की यादगार के रूप में संजोने की इजाजत दी जाए. भारत सरकार ने अभी तक इस मामले पर सार्वजनिक तौर पर कुछ नहीं कहा है. (सुब्रोतो गोस्वामी)