नागालैंड के ओटिंग में घर-घर में मातम
२४ दिसम्बर २०२१2004 में मोन जिले के जंगलों में नेनवांग कोनयाक पर एक भालू ने हमला कर दिया था. ओटिंग गांव के उसके लोगों ने उन्हें बचाया था. उस घटना में मिले घावों से उनके चेहरे पर एक निशान आज भी है.
इस महीने की शुरुआत में, 4 दिसंबर को गांव में खबर आई कि कुछ मजदूर जो काम करने गए थे, अब तक नहीं लौटे हैं. लोग उनकी तलाश में निकले तो कोनयाक और उनका 23 वर्षीय जुड़वां भाई भी साथ हो लिए. उन्हें नहीं पता था कि वे सारे मजदूर भारतीय सेना की गोलियों का शिकार हो चुके हैं.
तलाश करने गए लोगों की सेना से झड़प हुई और सात लोग और मारे गए. मरने वालों में कोनयाक का जुड़वां भाई भी था. एक ही गांव के 14 निर्दोष लोग एक ऐसी घटना का शिकार हो चुके हैं जिसकी कोई वजह समझ नहीं आ रही. नागालैंड का यह पूरा गांव मातम में है.
क्या हुआ उस दिन?
घटना तब हुई जब म्यांमार सीमा के पास भारतीय सैनिकों ने एक ट्रक पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं. इस ट्रक में मजदूर सवार थे जो काम के बाद घर लौट रहे थे. इस गोलीबारी में छह लोगों की मौत हो गई. जब इन मजदूरों के परिवार इन्हें खोजने निकले और शव मिलने पर सेना से सवाल जवाब किए तो उन्होंने फिर से गोलीबारी की.
नागालैंड के पुलिस अधिकारी संदीप एम तामागाड़े ने कहा, "दोनों पक्षों के बीच विवाद हुआ और सुरक्षाबलों ने गोली चला दी जिसमें सात और लोग मारे गए."
भारतीय सेना ने कहा कि विरोध कर रहे नागरिकों के साथ विवाद में एक सैनिक की मौत हो गई है और कई जवान घायल हुए. सेना ने कहा कि सैनिक ‘भरोसेमंद सूचना के आधार पर' कार्रवाई कर रहे थे कि इलाके में विद्रोही सक्रिय हैं और उन पर हमला करने की तैयारी में हैं.
गांव में मातम
मरने वाले लोग ओटिंग गांव के थे जहां के हर घर में मामत है. इस गांव की अधिकतर आबादी ईसाई है. 50 वर्षीय अमोंग कहती हैं, "क्रिसमस भी हमें कोई खुशी नहीं दे रही. हमारे दिल दुख रहे हैं. वे हमारे बच्चे थे."
वैसे इस इलाके का ऐसे दुखों से पुराना नाता है. यहां के लोग नागा सांस्कृति रूप से म्यांमार और चीन में रहने वाले लोगों के काफी करीब हैं. नागालैंड के 19 लाख लोगों में से 90 फीसदी ईसाई हैं. दशकों से नागा लोग भारत सरकार के साथ संघर्ष की स्थिति में हैं और शायद ही कोई ऐसा परिवार हो जिसने इस संघर्ष का दंश ना झेला हो.
हाल के सालों में हिंसा तो कम हुई है लेकिन राजनीतिक अधिकारों की मांग तेज हुई है. केंद्र सरकार की अलगाववादियों से लंबे समय से बातचीत चल रही है. 1997 में यह शांति वार्ता नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड के आईजैक-मुईवाह धड़े के साथ युद्ध विराम समझौते पर दस्तखत के रूप में शुरू हुई थी.
मुआवजा नहीं चाहिए
सेना और सरकार ने जांच कराने की बात कही है लेकिन गांव वाले निष्पक्ष जांच चाहते हैं. उन्होंने सरकारी मुआवजा भी खारिज कर दिया है. सेना की गोली से बच गए एक मजदूर फोनाई भी अपने साथी गांव वालों को खोजने गए थे. वह बताते हैं, "मैं ट्रक से शव उतारने में बाकियों की मदद कर रहा था जब सेना ने हम पर गोलियां दागनी शुरू कर दीं. मैं अपनी जान बचाने के लिए भागा और छिप गया. जवानों ने हमारी तरफ ही गोलियां दागीं. मेरे साथ छिपे हुए दो लोग मारे गए.”
शोमवांग का वह ट्रक आज भी क्राइम सीन टेप से घिरा खड़ा है. उस पर गोलियों से बने छेद हैं. वह घटना की एक दर्दनाक याद है जिसने पूरे गांव को एक श्मशान सी चुप्पी ओढ़ा दी है. गांव के मुखिया की मां नाओफे वांगचा कहती हैं, "दर्द असहनीय है. हमें बस इस खबर का इंतजार है कि दोषियों को वो सबक मिला जिसके वे हकदार हैं.”
ओटिंग के इस मातम का असर राज्य के कई शहरों तक पहुंच चुका है. घटना के बाद से कई जगह विरोध प्रदर्शन हुए हैं और समर्थन मार्च निकाले गए हैं. राज्य भर के लोग भारतीय सेना को असीमित शक्तियां देने वाले कानून आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर्स ऐक्ट (AFSPA) हटाने की मांग कर रहे हैं. हालांकि यह मांग दशकों से हो रही है और फिलहाल इसके हटने की कोई संभावना नहीं है.
वीके/एए (एपी)