गैर मुस्लिम से शादी इस्लाम में अमान्यः एडवाइजरी
१७ अगस्त २०२१एडवाइजरी कहती है कि लड़के-लड़कियों के मोबाइल पर नजर रखी जानी चाहिए, लड़कियों को सिर्फ महिला विद्यालय में पढ़ाना चाहिए और उनकी जल्दी शादी की जानी चाहिए. बहुत सी मुस्लिम महिलाओं ने इस तरह की एडवाइजरी को हास्यास्पद बताया है.
इसी महीने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने यह एडवाइजरी जारी की है. इसके पीछे गैर मजहब में शादी के बढ़ते मामलों को वजह बताया गया है. इस एडवाइजरी में अंतरधार्मिक विवाह को मुद्दा बनाया गया है लेकिन मुस्लिम लड़कियों के लिए कई बातें हैं जैसे उनके मोबाइल पर नजर रखे जाने की जरूरत, गर्ल्स कॉलेज में पढ़ना, लड़कियों की जल्दी शादी इत्यादि.
एडवाइजरी के अनुसार, इन मामलों में जहां मुस्लिम लड़कियों ने गैर मुस्लिम लड़के से शादी कर ली, उनकी बाद की जिंदगी बड़ी तकलीफ से गुजरी. इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कार्यकारी सचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने सात सूत्रीय एडवाइजरी जारी की है.
क्यों जारी हुई एडवाइजरी?
इस एडवाइजरी में मुख्यतः इस बात को समझाया गया है कि एक मुसलमान लड़की का निकाह मुसलमान लड़के के साथ ही हो सकता है. वैसे ही, लड़का भी गैर मुस्लिम लड़की से शादी नहीं कर सकता. अगर कर भी ले, तो इस प्रकार की शादी इस्लामिक शरिया द्वारा अमान्य होगी.
एडवाइजरी में मुस्लिम विद्वानों को ताकीद की गई है कि इस तरह की घटनाएं रोकने के लिए युवाओं को ‘जागरूक' करें. मौलानाओं से कहा गया है कि वे जुमे में ऐसी बातों के दीनी नुकसान बताएं व लोगों में ये जागरूकता लाई जाए कि उन्हें अपने बच्चों की परवरिश किस तरह से करनी चाहिए.
एडवाइजरी में ये भी बताया गया है कि लड़के-लड़कियों के मोबाइल पर गहरी नजर रखी जाए. इसके अलावा जहां तक हो सके, लड़कियों को लड़कियों के स्कूल में पढ़ाने की कोशिश करे. इस बात का प्रबंध करें कि स्कूल के सिवा समय घर से बाहर न गुजरे व उनको समझाएं कि एक मुसलमान के लिए मुसलमान ही जिंदगी का साथी हो सकता है.
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आम तौर पर जो युवा रजिस्ट्री ऑफिस में निकाह करते हैं, उनके नामों की लिस्ट पहले से जारी कर दी जाती है. एडवाइजरी कहती है कि धार्मिक संस्थाएं और जमातें, मदरसों के शिक्षक व समाज के महत्वपूर्ण व्यक्ति ऐसे युवाओं को उनके घर जाकर समझाएं कि इस नाममात्र निकाह की सूरत में उनकी पूरी जिंदगी हराम में गुजरेगी. लड़कों और विशेषकर लड़कियों के अभिभावकों को कहा गया गया है कि इस बात की फिक्र करें कि शादी में देरी न हो क्योंकि इसी कारण ऐसी घटनाएं हो सकती हैं.
क्या कहती हैं मुस्लिम महिलाएं?
चाहे दूसरे धर्म में शादी करना हो, मोबाइल पर नजर रखना या फिर जल्दी शादी करना, ज्यादातर मुस्लिम महिलाओं ने पाबंदियों को गलत बताया है. नाहिद अकील एक समाजसेवी हैं और ‘प्रयत्न फाउंडेशन' नाम से एक संस्था चलाती हैं. सीधे-सीधे शब्दों में नाहिद कहती हैं कि बोर्ड कोई इस्लाम नहीं है, जैसे उनकी संस्था है वैसे ही एक संस्था मात्र है.
डीडब्ल्यू से उन्होंने कहा, "बोर्ड आए दिन ऐसा करता है. हर चीज में उनका अपना फायदा नुकसान रहता है. उनकी इस एडवाइजरी को मैं बिलकुल भी पास नहीं करती. हम लोग अपने अधिकारों के प्रति खुद जागरूक हैं और जानते हैं कि इस्लाम में हमें कितनी आजादी है. 21वीं सदी में बोर्ड की ऐसी बातें का कोई मतलब नहीं है.”
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तसनीम फातिमा उत्तर प्रदेश के देवा शरीफ कस्बे में रहती हैं. देवा शरीफ में विश्व प्रसिद्ध सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की मजार है, जहां लाखों श्रद्धालु आते हैं. तसनीम एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और महिलाओं के मुद्दों पर मुखर रहती हैं. उनके अनुसार इस प्रकार की एडवाइजरी का कोई औचित्य नहीं है.
तसनीम कहती हैं, "किसी से शादी करना हमारा अधिकार है जो संविधान में दिया हुआ है. अब उस पर भी बहस करना कि कौन, किससे शादी करेगा फिजूल की बात है. सीधी सी बात है कि लड़की की जल्दी शादी कर दी जाए जिससे वो घर के काम तक सीमित हो जाएगी. फिर उसकी पढ़ाई, करियर, भविष्य जैसे सवालों पर बात ही नहीं होगी. इसीलिए तो नजर रखना चाहते हैं.”
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लखनऊ में अपना ब्यूटी पार्लर चलाने वालीं तहसीन शीरीं भी इस एडवाइजरी को फिजूल बताती हैं. लड़कियों के मोबाइल पर नजर रखने जैसी बातों पर शीरीं कहती हैं, "ये तो लड़कियों को दबाने वाली बात हो गई. लड़कियां भी इंसान हैं. उनको भी हक होना चाहिए, अपना साथी चुनने का. यह बात अलग है कि आप अपने पैरेंट्स से सलाह लीजिये लेकिन लड़कियों को अपना करियर चुनने, मर्जी से पढ़ने-लिखने का पूरा अधिकार होना चाहिए."
रिपोर्टः फैसल फरीद, लखनऊ