जर्मनी की कोयला खदानों में मिले प्राचीन रोमन खंडहर
३० जून २०२३पश्चिमी जर्मनी के रेनिश लिग्नाइट क्षेत्र में विशाल खुले गड्ढों वाले कई कोयला खदान हैं. इस साल की शुरुआत में यह क्षेत्र उस समय सुर्खियों में आया था जब जलवायु कार्यकर्ताओं ने लुत्सेराथ गांव में खनन रोकने के लिए बड़े स्तर पर प्रदर्शन किया था.
इस क्षेत्र में कोयले के खनन की वजह से जलवायु पर पड़ने वाले प्रभावों की काफी चर्चा की गई है, लेकिन कुछ ही लोगों को पता है कि यहां खुदाई के दौरान प्राचीन पुरातात्विक अवशेष भी मिल रहे हैं. इसमें लुत्सेराथ गांव के पास खोजे गए एक रोमन विला का अवशेष भी शामिल है.
अभी तक हुई खोजों से पता चला है कि इनमें से कुछ अवशेष उस समय के हैं जब जूलियस सीजर ने गैलिक युद्ध (58 से 51 ईसा पूर्व) शुरू किया था और प्राचीन रोमन स्थानीय जर्मन जनजातियों का पूरी तरह सफाया कर राइन नदी के किनारे बस गए थे. ट्रीयर और आखन की तरह ही कोलोन शहर भी रोमन ने ही बसाया था. कोलोन के साथ-साथ आसपास के उपजाऊ इलाकों में भी कई रोमन बस्तियां बसाई गईं.
अल्फ्रेड शूलर एक पुरातत्वविद हैं. वह जो कोलोन के नजदीक राइनलैंड के टित्स में पुरातात्विक स्मारकों के संरक्षण के लिए बने एलवीआर कार्यालय में काम करते हैं. वह बताते हैं, "यही कारण है कि रोमन काल के खेत-खलिहान एक-दूसरे के समीप मिले और उस समय यहां शायद ही जंगल था. लगभग हर चीज का इस्तेमाल कृषि के लिए किया जाता था.”
शूलर बताते हैं कि कैसे यहां फसलें उगाई जाती थीं और नोयस या कोलोन जैसे अन्य शहरों में ले जाकर बेचा जाता था. साथ ही, किस तरह उन्हें रोमन सैनिकों के लिए भेजा जाता था. यह सभी आपूर्ति शहरी आबादी के लिए की जाती थी. उन्होंने कहा, "यह क्षेत्र रोमन साम्राज्य का अन्न भंडार वाला क्षेत्र था.”
कोयला खनन और पुरातत्व का खजाना
आज कोलोन, आखन और मोएंजेनग्लाडबाख के बीच के क्षेत्र को ‘राइनिश ब्राउनकोलरेवियर' यानी जर्मनी में ब्राउन कोयला क्षेत्र के तौर पर जाना जाता है.
लोग अब इस जगह को प्राचीन रोमन इलाके की जगह भूरे कोयले के खनन वाले क्षेत्र के रूप में ज्यादा जानते हैं. जनवरी महीने में हजारों पर्यावरण कार्यकर्ता जर्मनी की दिग्गज कोयला कंपनी आरडब्ल्यूई को लुत्सेराथ गांव में कोयला खनन क्षेत्र का विस्तार करने से रोकने के लिए इकट्ठा हुए थे. इनमें फ्राइडे फॉर फ्यूचर की संस्थापक ग्रेटा थुनबर्ग भी शामिल थीं.
खनन करने वाली कंपनी ने मशीनों की मदद से विशाल गड्ढा बना दिया है, जो ना सिर्फ स्थानीय गांवों को खत्म कर रहा है, बल्कि संभावित रूप से प्राचीन बस्तियों के अवशेषों को भी मिटा रहा है. इस सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए आरडब्ल्यूई, नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया राज्य और एलवीआर ने 1990 में एक साथ मिलकर पुरातात्विक अवशेषों का पता लगाने के उद्देश्य से पुरातात्विक फाउंडेशन बनाया.
डीडब्ल्यू से बात करते हुए रॉबिन पीटर्स बताते हैं कि विशेषज्ञ किस तरह पहले ही यह तय करते हैं कि खदान के किन हिस्सों में जमीन के अंदर मूल्यवान पुरावशेष हो सकते हैं.
उन्होंने कहा, "कोयले का खनन शुरू होने से पहले ही पुरातात्विक खुदाई होती है. हम हमेशा उस जगह पर खुदाई करते हैं जहां कोयला निकालने के लिए खुदाई नहीं की गई है. जहां खुला गड्ढा है वहां कोई पुरातात्विक अवशेष नहीं बचा होता है.”
वह आगे बताते हैं, "हम मिट्टी से अहम जानकारी हासिल करने की कोशिश करते हैं. इसलिए, मिट्टी की सतह को धीरे-धीरे हटाकर और मिट्टी की प्रकृति की मदद से अवशेषों को खोजने की कोशिश करते हैं.” वह बदरंग हो चुके अवशेषों की तरफ इशारा करते हुए बताते हैं कि ये लकड़ी की इमारतें, पोस्टहोल, दीवार के अवशेष या नींव के अवशेष हो सकते हैं.
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रोमन कब्र से लेकर कुएं तक
इस तरह से विशेषज्ञों ने हाल ही में कोलोन के पास बोर्शेमिष में एक रोमन पुजारिन की कब्र की खोज की. विशेषज्ञों ने कहा कि पुजारिन का अंतिम संस्कार दूसरी शताब्दी की शुरुआत में किया गया था. अंतिम संस्कार से पहले शव को सोने से बुने हुए कपड़े पहनाए गए थे और उसकी कब्र के ऊपर लकड़ी का मंदिर बनाया गया था.
पुरातत्वविदों को कछुआ के खोल पर की गई रोमन और मिस्र के देवताओं की नक्काशी, लकड़ी के संदूक और मोड़ी जा सकने वाली कुर्सी भी मिली. पुरातत्वविदों का कहना है कि इस कब्र को लोअर जर्मेनिया के रोमन प्रांत में सबसे असाधारण अंतिम संस्कार के कब्रों में से एक माना जाता है.
शूलर ने कब्र को खास बताते हुए कहा कि उस समय लोगों की देवताओं को लेकर अपनी मान्यता थी और वे उनसे प्रार्थना करते थे. उन्होंने कहा, "उन लोगों ने देवताओं को लेकर अपनी मान्यता को इन रोमन आकृतियों में उकेर दिया. वे इन आकृतियों से प्रार्थना करते थे. ऐसा करके वे उन्हें सम्मान देते थे जो उनसे पूरी तरह अलग थे.”
शूलर ने यह भी कहा, "रोमन बहुत खुले विचारों वाले और सहिष्णु थे. जब तक किसी ने रोमन देवताओं बृहस्पति, जूनो और मिनर्वा को आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी थी, तब तक वह जिनकी चाहें उनकी प्रार्थना करते थे.”
2020 में पुरातत्वविदों ने हामबाख में एक प्राचीन कुएं की खोज की. यह क्षेत्र भी पुराने जंगल की वजह से जलवायु कार्यकर्ताओं के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. कुएं में केंद्र में बृहस्पति की मूर्ति वाला एक स्तंभ दिखाई दिया.
कुल मिलाकर बात यह है कि जिन क्षेत्रों में कोयला खनन किया जा रहा है वहां सैकड़ों पुरावशेष दबे हुए हैं, जिनका पता पिछले दशकों में चला है. उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में कई और अवशेषों का पता चलेगा.
एलवीआर में कार्यरत शूलर और पीटर्स अपनी एक नई खोज का खुलासा करने के लिए उत्साहित हैं. उन्होंने मध्य युग के एक छोटे और गोलाकार महल का पता लगाया है. शूलर कहते हैं, "यह प्राचीन रोमन अवशेष नहीं है, लेकिन रोमन काल की तरह का ही है. इसकी तस्वीरें ली गई हैं, स्केच तैयार किए गए हैं, मापा गया है और संग्रहालय में भेज दिया गया है.