महारानी के निधन के साथ ऑस्ट्रेलिया में गणतंत्र की मांग तेज
१२ सितम्बर २०२२ब्रिटेन और नॉर्दर्न आयरलैंड की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय कई अन्य देशों की भी राष्ट्राध्यक्ष थीं. ऑस्ट्रेलिया उन्हीं देशों में से एक है. यह कॉमनवेल्थ का हिस्सा है और यहां का प्रधानमंत्री पहले ब्रिटेन की महारानी की मंजूरी से नियुक्त होता था, जो भूमिका अब महाराज चार्ल्स निभाएंगे. ऑस्ट्रेलिया के पांच डॉलर के करंसी नोट पर राष्ट्राध्यक्ष की ही तस्वीर होती है. अब तक इस पर महारानी एलिजाबेथ द्वितीय की तस्वीर थी. वे नोट अब हटाए जाएंगे और उनकी जगह नए नोट लेंगे जिन पर महाराज चार्ल्स की तस्वीर होगी.
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यूं तो देश में शाही परिवार को लेकर खासा प्यार और सम्मान है लेकिन महारानी के निधन के बाद एक बार फिर उस बहस ने जोर पकड़ लिया है कि ऑस्ट्रेलिया को शाही परिवार के आधीन नहीं होना चाहिए और एक गणतंत्र बन जाना चाहिए.
एलिजाबेथ द्वितीय की मृत्यु के बाद ऑस्ट्रेलिया की सरकार को समर्थन दे रही शामिल ग्रीन्स पार्टी के नेता एडम बेंट ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए लिखा कि अब ऑस्ट्रेलिया को आगे बढ़ना चाहिए. उन्होंने ट्वीट किया, "क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय की आत्मा को शांति मिले (RIP). हमारी संवेदनाएं उनके परिवार और चाहने वालों के साथ हैं. अब ऑस्ट्रेलिया को आगे बढ़ना चाहिए. हमें प्रथम राष्ट्र के लोगों के साथ समझौता चाहिए. हमें गणतंत्र बन जाना चाहिए.”
देश के बहुत से लोगों ने बेंट के इस संदेश को अपमानजनक माना और गमी के वक्त ऐसी बातें करने पर उनकी आलोचना भी की. लेकिन लंबे समय से जारी गणतंत्र बनाम ऑस्ट्रेलियन कॉमनवेल्थ की बहस ने जोर पकड़ लिया. यहां तक कि प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी को भी इस पर बयान देना पड़ा. हालांकि उन्होंने भी कहा कि इस वक्त गणतंत्र के बारे में बात करना अनुचित है.
ऑस्ट्रेलिया 22 सितंबर को शोक दिवस मना रहा है जबकि महारानी एलिजाबेथ द्वितीय को 19 को सुपुर्दे खाक किया जाएगा. अल्बानीजी और अन्य ऑस्ट्रेलियाई नेता समारोह में हिस्सा लेने के लिए लंदन जा रहे हैं. लेकिन गणतंत्र के सवाल पर उन्होंने कहा कि इस बारे में अभी बात करना ठीक नहीं होगा.
एक पत्रकार के सवाल के जवाब में अल्बानीजी ने कहा, "संवैधानिक बदलाव के बारे में अभी बात करना ठीक नहीं लगता. अभी जो उचित है वो ये है कि हम महारानी एलिजाबेथ द्वितीय की सेवाओं को याद करें.”
पुरानी है गणतंत्र बनाने की मांग
ऑस्ट्रेलिया को गणतंत्र बनाने की मांग उतनी ही पुरानी है, जितनी पुरानी देश की संसद है. 1901 में देश की विभिन्न ब्रिटिश कॉलोनियों को मिलाकर राष्ट्रमंडल बनाया गया था जिसका अध्यक्ष ब्रिटेन के राजा अथवा रानी को नियुक्त किया गया. लेकिन ऑस्ट्रेलियन रिपब्लिकन एसोसिएशन (एआरए) की स्थापना इससे कई दशक पहले हो चुकी थी. एआरए की मांग थी कि कॉलोनियों में गवर्नर का पद समात्प किया जाएगा और ब्रिटिश साम्राज्य के बाहर एक गणतंत्र स्थापित किया जाए.
1901 में राष्ट्रमंडल की स्थापना के बाद यह मांग कमजोर पड़ती चली गई लेकिन खत्म कभी नहीं हुई. देश की दक्षिणपंथी पार्टियों और लेबर पार्टी के बीच यह बहस का बड़ा मुद्दा भी बना रहा. हालांकि लेबर पार्टी ने द्वितीय विश्व युद्ध तक कभी खुलकर गणतंत्र की मांग नहीं की बल्कि ऑस्ट्रेलिया के लिए ज्यादा अधिकारों की मांग की. एक श्वेत देश के रूप में ऑस्ट्रेलिया की जनता का समर्थन शाही परिवार के प्रति स्पष्ट था. 1954 जब एलिजाबेथ द्वितीय ने ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया तो 90 लाख की आबादी वाले ऑस्ट्रेलिया में खबरों के मुताबिक लगभग 70 लाख लोगों सड़कों पर निकल आए थे. यह समर्थन कम-ज्यादा होता रहा है लेकिन खत्म कभी नहीं हुआ.
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1991 में लेबर पार्टी ने ऑस्ट्रेलिया को गणतंत्र बनाने को पहली बार आधिकारिक तौर पर अपनी नीति बनाया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री बॉब हॉक ने इसे "अवश्यंभावी” करार दिया था. इस कदम के बाद गणतंत्र बनाने की मांग को और मजबूती मिली जिसका नतीजा 1999 में जनमत संग्रह के रूप में सामने आया.
6 नवंबर 1999 को ऑस्ट्रेलिया में गणतंत्र बनाने के सवाल पर जनमत संग्रह हुआ. एक करोड़ 90 लाख लोगों ने इस जनमत संग्रह में हिस्सा लिया और दो सवालों के जवाब दिए. पहला थाः क्या ऑस्ट्रेलिया को गणतंत्र बनना चाहिए, जिसमें गवर्नर जनरल और सम्राट की जगह राष्ट्रपति को मिले? और दूसरा सवाल थाः क्या ऑस्ट्रेलिया को संविधान में संशोधन कर प्रस्तावना जोड़नी चाहिए? 55 प्रतिशत मतदाताओं ने पहले सवाल का जवाब ना में दिया और गणतंत्र बनाने की मांग पर पानी पड़ गया.
कितनी है संभावना?
फिलवक्त देश के सबसे बड़े राजनीतिक दल लेबर पार्टी ने 1991 के बाद से ही ऑस्ट्रेलिया को गणतंत्र बनाने की मांग को लगातार आगे बढ़ाया है. 2021 में उसने कहा था कि लेबर पार्टी "ऑस्ट्रेलिया को गणतंत्र बनाने और ऑस्ट्रेलियाई को राष्ट्राध्यक्ष बनाने की मांग का समर्थन करती है और स्थापित करने के लिए काम करेगी.”
मई में हुए चुनावों में लेबर पार्टी तीन लगातार कार्यकालों तक सत्ता से बाहर रहने के बाद सत्ता में लौटी है और प्रधानमंत्री अल्बानीजी ने अपने मंत्रिमंडल में गणतंत्र मंत्री (असिस्टेंट मिनिस्टर फॉर द रिपब्लिक) नियुक्त किया है, जो अपने आप में इस बात का संकेत है कि देश के राजशाही छोड़कर गणतंत्र बन जाने की संभावना को बल मिला है.
गणतंत्र के समर्थक रहे प्रधानमंत्री अल्बानीजी की सरकार को ग्रीन्स पार्टी का समर्थन है और ग्रीन्स के नेताओं ने लगातार इस मांग को जोर-शोर से उठाया है. महारानी के निधन के बाद ग्रीन्स के कई नेताओं ने इस बारे में बोलने से जरा भी परहेज नहीं किया. देश की पहली मुस्लिम सांसद और ग्रीन्स नेता पाकिस्तानी मूल की महरून फारूकी ने तो यहां तक कहा कि वह नस्लवादी साम्राज्य के नेता के निधन पर शोक नहीं मनाएंगी.
फारूकी ने ट्विटर पर लिखा, "जो लोग महारानी को जानते थे उन्हें संवेदनाएं. जो नस्लवादी साम्राज्य कॉलोनी बनाए गए लोगों की चुराई हुई जिंदगियों, जमीन और धन पर बना हो, मैं उसके नेता के मरने पर शोक नहीं मना सकती.”
फारूकी ने लिखा कि यह वक्त याद दिलाता है कि "ब्रिटिश साम्राज्य की कॉलोनियों के गणतंत्र बनना आपातकालीन रूप से जरूरी है.” प्रधानमंत्री अल्बानीजी ने इस बात को खारिज नहीं किया है कि उनके अगले कार्यकाल में एक बार फिर जनमत संग्रह कराया जा सकता है.