ऑस्ट्रेलिया में 'राष्ट्रीय संकट' बनी महिलाओं के खिलाफ हिंसा
२९ अप्रैल २०२४35 साल की चैतन्या श्वेता मदगानी का शव ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न के करीब एक शहर बकली में एक कूड़े के ढेर में मिला था. मार्च में हुई इस हत्या ने भारतीय ही नहीं, पूरे ऑस्ट्रेलियाई समुदाय को हिलाकर रख दिया था. इसलिए नहीं कि यह कोई पहली बार हुई घटना थी, बल्कि इसलिए कि महिलाओं की हत्याओं का यह सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है.
ऑस्ट्रेलिया में महिलाओं के खिलाफ हिंसा अब इतना बड़ा मुद्दा बन गई है कि प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी ने सोमवार को इसे ‘राष्ट्रीय संकट‘ बताया. रविवार को देशभर में हजारों लोगों ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा के विरोध में प्रदर्शन किया था.
इस प्रदर्शन की जरूरत इसलिए पड़ी कि 2.7 करोड़ की आबादी वाले देश में इस साल यानी चार महीनों में 27 महिलाओं की हत्याएं हो चुकी हैं और यह सिलसिला साल दर साल बढ़ता चला जा रहा है. इसलिए अल्बानीजी का भी ध्यान इस ओर गया और उन्होंने कहा कि रविवार को हुए प्रदर्शन ऑस्ट्रेलिया की सरकार द्वारा महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा पर कदम उठाए जाने की जरूरत का बड़ा संकेत हैं.
राष्ट्रीय संकट
स्थानीय टीवी चैनल नाइन नेटवर्क से बातचीत में अल्बानीजी ने कहा, "जाहिर है कि हमें और ज्यादा उपाय करने की जरूरत है. सिर्फ समानुभूति जता देना काफी नहीं है. हर चार दिन में अपने जीवन साथी के कारण एक महिला की मौत का औसत राष्ट्रीय संकट है.”
अल्बानीजी ने कहा कि वह इस मुद्दे पर राज्यों और क्षेत्रीय नेताओं की एक बैठक बुलाएंगे.
शनिवार और रविवार को ऑस्ट्रेलिया में 17 जगहों पर रैलियां हुईं. सिर्फ मेलबर्न में 15,000 लोग इस रैली में पहुंचे थे. कैनबरा में हुई एक रैली में जब प्रधानमंत्री और देश के महिला मामलों की मंत्री केटी गैलागर पहुंचे तो उन्हें लोगों की नाराजगी का सामना करना पड़ा. लोगों ने "अपना काम करो” और "हमें कार्रवाई चाहिए” जैसे नारे लगाए.
उस रैली में अल्बानीजी ने कहा कि अपराधियों और हिंसा रोकने पर ज्यादा ध्यान दिए जाने की जरूरत है. उन्होंने कहा, "हमें संस्कृति बदलने की जरूरत है. हमें नजरिया बदलने की जरूरत है. हमें न्याय व्यवस्था बदलने की जरूरत है.”
चिंताजनक आंकड़े
ऑस्ट्रेलिया में महिलाओं के खिलाफ उनके जीवनसाथी द्वारा हिंसा के मामले पिछले कई साल से चिंता का विषय बने हुए हैं. सालाना औसत बताती है कि हर 11 दिन में एक महिला की हत्या हो जाती है. लेकिन हत्या के अलावा भी हिंसा का संकट बहुत बड़ा हो चुका है.
देश के सांख्यिकी ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 2013 से 2023 के बीच पुरुषों द्वारा हत्या के मामलों में तो 16 फीसदी की कमी देखी गई लेकिन घायल करने की दर 20 फीसदी बढ़ गई. इसी तरह यौन हिंसा के मामलों में 50 फीसदी की वृद्धि हुई. शोषण और अपहरण के मामले 18 फीसदी बढ़े.
इसके पीछे कई विशेषज्ञ न्याय व्यवस्था को भी जिम्मेदार मानते हैं. बहुत मामलों में ऐसा देखा गया कि घरेलू हिंसा के कारण जेल में बंद किसी पुरुष ने जमानत मिलने के बाद पीड़िता की हत्या कर दी. 2019 से 2023 के बीच ऐसे 20 हजार से ज्यादा मामले सामने आए जबकि पुरुषों ने अपने ऊपर कोर्ट द्वारा लागू पाबंदियों का उल्लंघन किया. 2015 से 2019 के चार साल के मुकाबले यह 20 फीसदी की वृद्धि है.
अन्य देशों से तुलना
विकसित देशों के संगठन ऑर्गनाइजेशन ऑफ इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डिवेलपमेंट (ओईसीडी) की रिपोर्ट बताती है कि 37 विकसित देशों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों का औसत 23 फीसदी है. यानी एक साल में 23 फीसदी महिलाओं ने किसी ना किसी तरह की हिंसा झेली.
इस रिपोर्ट में ऑस्ट्रेलिया का औसत भी 23 फीसदी ही था. सबसे ज्यादा खराब स्थिति अर्जेंटीना की बताई गई, जहां 42 फीसदी महिलाओं ने हिंसा झेली, जबकि सबसे कम ऑस्ट्रिया और पोलैंड में हिंसा झेलने वाली महिलाओं का औसत 13 फीसदी रहा.
इसकी तुलना अगर भारत से की जाए तो पिछले साल के आंकड़े बताते हैं कि लगभग 30 फीसदी शादीशुदा महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक 2019 से 2021 के बीच "18 से 49 साल के बीच की 29.3 फीसदी शादीशुदा महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार हुईं.” 31.3 फीसदी गर्भवती महिलाओं ने गर्भ के दौरान शारीरिक हिंसा झेली थी.