50 साल बाद बांग्लादेश के सिनेमाघरों में पहली भारतीय फिल्म
१२ मई २०२३एक्शन से भरपूर स्पाई थ्रिलर फिल्म ने इसी साल जनवरी में भारत में बॉक्स ऑफिस पर कई रिकॉर्ड ध्वस्त किए. बांग्लादेश ने भारत के सिनेमा पर 1971 में आजाद होने के साथ ही पाबंदी लगा दी थी. आजादी में भारत के भारी सहयोग के बावजूद स्थानीय फिल्म निर्माताओं के विरोध के कारण यह पाबंदी लगाई गई. राजधानी में एक सिनेमा हॉल के बाहर मौजूद 18 साल के सज्जाद हुसैन ने कहा, "मैं बहुत रोमांचित हूं क्योंकि पहली बार बांग्लादेश में हिंदी फिल्म रिलीज हुई है. हम सभी शाहरुख खान के फैन हैं. मैं पहली बार शाहरुख खान को बड़े पर्दे पर देखूंगा."
बुरे हाल में बांग्लादेशी सिनेमा
बांग्लादेशी सिनेमा की स्थिति बहुत खराब है. खराब दर्जे का सिनेमा बॉलीवुड की चकाचौंध का सामना नहीं कर सकता ना ही उतने दर्शक बटोर सकता है. बांग्लादेश के उम्रदराज अभिनेता शाकिब खान वहां के अकेले सितारे हैं. कई सिनेमाघर तो गैरकानूनी रूप से पोर्नोग्राफी के जरिये खुद को जिंदा रखे हुए हैं. बीते 20 सालों में यहां 1000 से ज्यादा सिनेमा बंद हो चुके हैं. इनमें से कइयों को शॉपिंग सेंटर या अपार्टमेंट में तब्दील किया जा चुका है.
ढाका में कभी सबसे बढ़िया सिनेमा हॉल रहे मोधुमिता के सामने कुछ नशेड़ी इस हफ्ते जिन्न फिल्म के पोस्टर के सामने बैठे नजर आए. यह बांग्लादेश में रिलीज हुई नई फिल्म है. एक थिएटर कर्मचारी ने कहा, "मैंने इतने कम दर्शक कभी नहीं देखे. केवल कुछ कतारें ही भर सकी हैं. कोई भी इन स्थानीय आर्ट मूवी या फिल्मों को नहीं देखता जिनमें बड़ी खराब कहानियां होती हैं."
सिनेमा बांग्लादेश के सोशल लाइफ का कभी मुख्य आधार हुआ करता था. 100 साल पुराने मूवी थिएटर मानोषी को 2017 में शॉपिंग कंप्लेक्स में बदल दिया गया. वहां मौजूद प्रदीप नारायण ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "यह हॉल ढाका के पुराने लोगों के लिए मिलने की जगह हुआ करता था. औरतें रात को भी यहां फिल्म देखने आती थीं. हमारी मां और बहनें आसपास के इलाकों से आती थीं और रात को 12 बजे के बाद जब शो खत्म होता था तो यहां जैसे मेला लग जाता था. सिनेमा का यहां इतना क्रेज था कि एक बार तो एक औरत ने यहीं एक बच्चे को जन्म दिया था."
पाबंदी हटाने का विरोध
अधिकारियों ने भारतीय सिनेमा पर 2015 में पाबंदी हटाने की कोशिश की थी. तब वांटेड और थ्री इडियट्स यहां दिखाई गई थी. हालांकि स्थानीय कलाकारों के विरोध ने थिएटरों में सिनेमा नहीं चलने दिया. आखिरकार पिछले महीने सरकार ने एक आदेश जारी कर हर साल भारत या दूसरे दक्षिण एशियाई देशों से यहां 10 फिल्मों को लाने की अनुमति दी है. सूचना मंत्री हसन महमूद का कहना है, "पाकिस्तान में सिनेमा घट कर एक समय 30-35 पर आ गए. इसके बाद उन्होंने हिंदी फिल्मों को दिखाना शुरू किया. इसके बाद वहां सिनेमा की संख्या बढ़ कर 1200 हो गई और पाकिस्तानी सिनेमा का स्तर भी बेहतर हुआ."
बांग्लादेश के फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर अनोनो ममून ने बताया, "पठान को पूरे देश के 41 सिनेमाघरों में रिलीज किया गया है और राजधानी में तो कई शो की सारी सीटें पहले ही बुक हो चुकी हैं." ममून का यह भी कहना है कि बॉलीवुड की फिल्मों को दिखाने की अनुमति गेमचेंजर साबित होगी, "हर कोई हिंदी सिनेमा को पसंद करता है. बहुत से लोग दक्षिण भारतीय सिनेमा भी पसंद करते हैं."
मोधुमिता सिनेमा के मालिक मोहम्मद इफ्तेखारुद्दीन बांग्लादेश मोशन पिक्चर एग्जिबिटर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष हैं. उनका मानना है कि कारोबार वापस लौटेगा, "मेरा ख्याल है कि 200-300 सिनेमा तो इसी से दोबारा खुल जाएंगे. मोनोपॉली कारोबार को बर्बाद कर देता है. जब प्रतिस्पर्धा होगी तो कारोबार भी होगा."
हालांकि बांग्लादेशी फिल्ममेकर इसे लेकर सशंकित हैं. कइयों ने तो धमकी दी है कि वो स्थानीय फिल्म उद्योग की मौत के प्रतीक के रूप में सफेद कफन पहन कर प्रदर्शन करेंगे. फिल्म निर्देशक खिजिर हयात खान कहते हैं, "क्या वो नेपाली फिल्म उद्योग के बारे में नहीं जानते. क्या वो यह नहीं देख सकते कि मेक्सिकन फिल्म उद्योग किस तरह बर्बाद हो गया?"
उधर दर्शक हिंदी फिल्में देखने के लिए बेचैन हैं और उन्हें लग रहा है कि उनकी मांग पूरी नहीं हो रही है. वन विभाग के अधिकारी राज अहमद खुलना से 250 किलोमीटर की यात्रा कर पठान देखने ढाका पहुंचे, मगर उन्हें टिकट नहीं मिला. उनका कहना है, "मुझे बहुत दुख है, मैं कई दिनों से शाहरुख खान को बड़े पर्दे पर देखने के लिए इंतजार कर रहा था."
एनआर/एमजे (एएफपी)