बांग्लादेश से इंडोनेशिया भाग रहे हैं रोहिंग्या शरणार्थी
१ दिसम्बर २०२३ऐसे रोहिंग्या शरणार्थियों की संख्या बढ़ती जा रही है जो बांग्लादेश के दक्षिणपूर्वी तट पर स्थित कॉक्स बाजार के भीड़ भरे कैंपो से निकल कर, इंडोनेशिया की ओर भाग रहे हैं. वे समुद्र के रास्ते 1800 किलोमीटर का खतरनाक सफर जर्जर नावों से कर रहे हैं.
इंडोनेशिया की पुलिस और मछुआरों ने पिछले सप्ताह बताया कि शरणार्थियों की नौकाओं को रोकने के लिए उन्होंने सुमात्रा के पश्चिमोत्तर छोर पर आछेह प्रांत में गश्त लगाना शुरू कर दिया है. इस महीने वहां 1000 से ज्यादा रोहिंग्या पहुंचे हैं. 2015 के बाद ये उनकी सबसे ज्यादा तादाद है.
करीब दस लाख रोहिंग्या मुसलमान कॉक्स बाजार के बदहाल शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं. 2017 में, म्यामांर की सेना ने राखाइन प्रांत में रोहिंग्या लोगों का दमन करना शुरू किया था. इसमें गांव के गांव उजड़ गए और हजारों लोग मारे गए.
ऐसे में, हजारों लोग सीमा पार कर बांग्लादेश भाग आए. बाद में संयुक्त राष्ट्र ने सैन्य दमन को "जातीय सफाए की स्पष्ट मिसाल" करार दिया था.
कॉक्स बाजार से भागते शरणार्थी
बांग्लादेश में भी रोहिंग्या शरणार्थियों की जिंदगी मुश्किल ही रही है. उन्हें ठसाठस भरे शिविरों में रहना पड़ता है. वे भोजन, सुरक्षा, शिक्षा और काम के अवसरों की कमी से जूझ रहे हैं. ह्युमन राइट्स वॉच की इस साल प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक अपराधियों के गैंग और कट्टरपंथी इस्लामी हथियारबंद समूह, शरणार्थी शिविरों में डर का माहौल बना रहे थे.
हाल में अपने परिवार के साथ आछेह प्रांत पहुंचने वाली 19 साल की एक रोहिंग्या शरणार्थी ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि कॉक्स बाजार में अपराधी, रोजाना उन्हें और उनके परिवार को धमकाते थे. लड़की ने ये बताया कि इंडोनेशिया तक नाव से पहुंचने के लिए उन्हें लगभग 1800 डॉलर देने पड़े.
बांग्लादेशी पुलिस का कहना है कि इस साल अभी तक कॉक्स बाजार शिविरों में करीब 60 रोहिंग्या मारे जा चुके हैं. एक एक्टिविस्ट नेटवर्क, फ्री रोहिंग्या कोएलिशन के सह-संस्थापक नाय सान ल्विन ने डीडब्लू को बताया कि बहुत से शरणार्थी, शिविरों में जारी हिंसा से बचकर भाग रहे हैं.
उन्होंने बताया, "आपराधिक गैंग रातों में शिविरों को अपने नियंत्रण में कर लेते हैं. इससे शरणार्थियों में डर बैठ गया है. उनके लिए हालात चुनौतीपूर्ण हो गए हैं."
ल्विन ने ये भी बताया कि इस साल के शुरू में विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्लूएफपी) ने शरणार्थियों के खाने के राशन में कटौती कर दी जबकि रोहिंग्या के लिए वो मदद, डूबते को तिनके का सहारा जैसी थी.
उन्होंने डीडब्लू से कहा, "शिविरों में, लोग डब्लूएफपी के राशन कोटे पर निर्भर होते हैं, इन दिनों पर्याप्त भोजन मिल पाना नामुमिकन हो गया है- एक व्यक्ति के लिए पूरे महीने का राशन 8 डॉलर की पड़ रहा है."
वह कहते हैं, "शिविरों में आवाजाही की पाबंदियों के चलते बाहर काम करना भी दूभर है. रोजीरोटी के लिए कोई वैकल्पिक अवसर उपलब्ध नहीं और सही ढंग से घरवापसी की भी कोई उम्मीद नहीं, जिसकी वजह से शरणार्थी बेहतर जिंदगी की तलाश में दूसरी जगहों पर हाथ-पांव मार रहे हैं."
बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थियों को नौकरी करने या उचित शिक्षा हासिल करने का अधिकार नहीं है. उन्हें स्थानीय बंगाली भाषा सीखने की मनाही भी है क्योंकि बांग्लादेशी अधिकारी नहीं चाहते कि वे समाज की मुख्यधारा में घुल-मिल जाएं. म्यामांर में भी उन्हें औपचारिक तौर पर नागरिकता नहीं दी गई है.
कॉक्स बाजार में एक रोहिंग्या शोधकर्ता रेजाउर रहमान लेनिन ने डीडब्लू को बताया, "गरिमा और आत्मसम्मान के साथ आजीविका न चला पाने की वजह से, म्यामांर के नरसंहार से बच कर आए ये लोग कैंपों से भागकर, मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम देशों की ओर खतरनाक सफर कर रहे हैं."
उन्होंने ये भी बताया कि इंडोनेशिया और मलेशिया में एक बड़ा रोहिंग्या समुदाय रहता है और कई शरणार्थी मानते हैं कि वे दूसरे देशों में कमा-धमा सकते हैं.
उनके मुताबिक "इसके अलावा, गैंग हिंसा, सुरक्षा एजेंसियों की क्रूरता, जबरन वसूली, अपहरण, शारीरिक हमलों जैसी आपराधिक घटनाएं और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य की देखभाल में कमी जैसे कारण भी हैं."
जर्मनी स्थिति रोहिंग्या एक्टिविस्ट नाय सान ल्विन कहते हैं कि किसी तरह प्रतिबंधित शिविरों तक पहुंच जाने वाले अपराधी, शरणार्थियों की मजबूरी का फायदा उठाकर उन्हें समन्दर के रास्ते जोखिम भरी यात्रा के लिए उकसाते रहते हैं.
उन्होंने डीडब्लू को बताया, "निराशा से भरे हालात से गुजरते शरणार्थी, मानव तस्करों के झांसे में आकर जोखिम भरे सफर के लिए तैयार हो जाते हैं. कई लोग समन्दर में ही दम तोड़ देते हैं या तस्करों की यातना का शिकार बन जाते हैं."
मानव तस्करी से लड़ने का बांग्लादेश का दावा
बांग्लादेश में शरणार्थी राहत और उन्हें वापस लेने भेजने के मामलों के आयुक्त मोहम्मद मिजानुर रहमान ने डीडब्ल्यू को बताया कि उन्हें नहीं लगता शरणार्थी सुरक्षा कारणों से कैंप छोड़कर जा रहे हैं.
वो कहते हैं, "उनका कोई घर कोई देश नहीं, और हम उन्हें बांग्लादेश में इंटीग्रेट होने की इजाजत नहीं दे रहे. ये हमारे लिए मुमकिन नहीं. लिहाजा अपनी अगली पीढ़ी की खातिर वे उन देशों में जाने की कोशिश कर रहे हैं जहां उन्हें लगता है कि बेहतर जिंदगी मिल पाएगी."
आयुक्त ने ये भी कहा कि स्थानीय पुलिस और सुरक्षा एजेंसी मानव तस्करी को खत्म करने की कोशिश कर रही है. भविष्य में हालात से निपटने के लिए और कड़े उपाय किए जाएंगे.
रहमान ने डीडब्ल्यू को बताया, "दो या तीन दिन पहले, पुलिस ने 58 रोहिंग्या को समन्दर के रास्ते मलेशिया या इंडोनेशिया जाने से रोका था. इलाके में मानव तस्करी से जुड़े मामले दर्ज किए जा रहे हैं. कई गिरफ्तारियां भी हुई हैं."
वो कहते हैं, "वैसे बेशुमार भीड़ वाले शिविरों में, उनकी लोकेशन और दूसरे कारणों के मद्देनजर, कानून व्यवस्था बनाए रखना मुश्किल होता है."