सरकारों ने किया बच्चों की निजता से खिलवाड़ः रिपोर्ट
२६ मई २०२२तुर्की के इस्तांबुल में रहने वाला 9 साल का रोडिन सुबह आठ बजे उठता है. नहा धोकर वह अपनी ऑनलाइन क्लास में बैठ जाता है. और उम्मीद करता है कि किसी को पता नहीं चल पाएगा कि वह उनींदा है या उसने होमवर्क पूरा नहीं किया है.
ब्रेक में रोडिन दोस्तों से चैट करता है. स्क्रीन पर मस्तीभरी तस्वीरें बनाता है. और उसके बाद गणित की क्लास में खास ध्यान देता है. शाम को वह अपने होमवर्क की तस्वीर ग्रुप में पोस्ट करता है. यह सब करते हुए रोडिन को, और उसके माता-पिता को इस बात का जरा भी भान नहीं है कि कोई पल-पल उसे देख रहा है.
वैश्विक जांच
ट्रैकिंग करने वाली तकनीकों का पूरा एक अदृश्य जाल है, जो रोडिन की ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखता है. ह्यूमन राइट्स वॉच की एक ताजा रिपोर्ट बताती है कि लॉग इन करते ही रोडिन के बारे में तमाम सूचनाओं पर नजर रखी जा रही होती है, जैसे कि वह कहां है, घर के किस कमरे में कितनी देर बिता रहा है, स्क्रीन पर क्या कर रहा है, दोस्तों से क्या बात कर रहा है आदि.
ह्यूमन राइट्स वॉच की यह रिपोर्ट वैश्विक स्तर पर प्रयोग की जा रही शिक्षण तकनीक की एक खोजी पड़ताल के बाद तैयार की गई है. इस तकनीक को 49 देशों की सरकारों ने महामारी के दौरान बच्चों को शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए इस्तेमाल किया था. इस तकनीक का इस्तेमाल करने वाले 164 उत्पादों का तकनीकी और नीतिगत विश्लेषण करने के बाद ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि इस तकनीक के इस्तेमाल के जरिए सरकारों ने बच्चों की निजता का या तो सीधे तौर पर उल्लंघन किया या फिर उसे खतरे में डाला.
सरकारों ने नहीं दिया ध्यान
रिपोर्ट कहती है, "महामारी के दौरान बच्चों को वर्चुअल क्लास रूम तक पहुंचाने की जल्दबाजी में बहुत कम सरकारों ने इस बात की जांच की कि जिन तकनीकों या उत्पादों का प्रयोग किया जा रहा है, वे सुरक्षित भी हैं या नहीं. नतीजा यह हुआ कि जिन बच्चों के परिवार इंटरनेट और उत्पादों का खर्च वहन कर सकते थे, या जिन्होंने ऐसा करने के लिए जीतोड़ मेहनत की, अपने ही बच्चों की निजता से खिलवाड़ कर बैठे."
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मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच ने पिछले साल मार्च से अगस्त के बीच यह विश्लेषण किया. 164 उत्पादों के विश्लेषण में पता चला कि 89 प्रतिशत यानी 146 उत्पाद ऐसे थे जिनका काम करने का तरीका बच्चों की निजता को खतरे में डाल रहा था, डाल सकता था या फिर उन्होंने ऐसा कर ही दिया.
रिपोर्ट कहती है,"ये उत्पाद खुफिया तरीके और बिना माता-पिता की सहमति लिए बच्चों पर नजर रख रहे थे. बहुत से मामलों में वे बच्चों के बारे में ऐसी जानकारियां जुटा रहे थे जैसे कि वे कौन है, कैसा व्यवहार करते हैं, उनके परिजन और दोस्त कौन हैं और उनके परिवार किस तरह की तकनीक या उत्पाद खरीदने की क्षमता रखते हैं."
बच्चों को दिखाए गए विज्ञापन
रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले 49 देशों की सरकारों ने बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन किया है. संस्था में बाल अधिकारों पर काम करने वाले तकनीकी शोधकर्ता ह्ये जुंग हान कहती हैं, "स्कूलों में बच्चे सुरक्षित होने चाहिए, फिर चाहे वे शारीरिक रूप से वहां मौजूद हों या ऑनलाइन हाजिर हों. बिना जांच किए तकनीकों के इस्तेमाल की सिफारिश करके सरकारों ने कंपनियों के लिए बच्चों की जासूसी के दरवाजे खोल दिए और उनकी बेहद निजी जिंदगी को उघाड़ दिया."
इस रिपोर्ट के ज्यादातर ऑनलाइन लर्निंग प्लैटफॉर्म बच्चों के डेटा को विज्ञापन तकनीकों को उपलब्ध करवा रहे थे. ऐसा करके बच्चों को व्यवहार आधारित विज्ञापनों की दायरे में लाया गया और बहुत से मामलों में ऐसे विज्ञापन दिखाए भी गए.
ह्यूमन राइट्स वॉच ने #उत्पादनहींहैंबच्चे (#StudentsNotProducts) नाम से एक वैश्विक अभियान शुरू किया है, जिसके जरिए माता-पिता, शिक्षकों और बच्चों को जागरूक किया जा रहा है और उन्हें निजता व अन्य बाल अधिकारों के लिए आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है.
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हान ने कहा, "पढ़ाई करने के बदले बच्चों को अपनी निजता खोने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए. सरकारों को तुरंत बच्चों संबंधी आंकड़ों की सुरक्षा के लिए कदम उठाने चाहिए और कानून लाने चाहिए ताकि बच्चों की जासूसी रोकी जा सके."
रिपोर्टः विवेक कुमार