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नए विवाद पैदा करता चीन-पाक आर्थिक कॉरीडोर

शामिल शम्स२ सितम्बर २०१६

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरीडोर को अपने देश के विकास में मील का पत्थर बताया है. लेकिन नए विवादों के बीच इस परियोजना के विरोध में तेजी में आ रही है.

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Karte China Pakistan geplanter Wirtschaftskorridor Gwadar - Kaschgar
तस्वीर: DW

पिछले साल चीन ने पाकिस्तान के साथ 41 अरब यूरो के आर्थिक प्रोजेक्ट की घोषणा की थी. चीन आर्थिक कॉरीडोर के साथ पाकिस्तान में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है. साथ ही इसके जरिये वह अमेरिका और भारत के प्रभाव को भी कम करना चाहता है. यह आर्थिक कॉरीडोर अरब सागर में स्थित पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को चीन के पश्चिमी शिनजियांग क्षेत्र के साथ जोड़ेगा. कॉरीडोर में रेल, रोड और तेल पाइपलाइन बनाने की भी योजना है.

बीते हफ्ते नवाज शरीफ ने कहा कि यह आर्थिक कॉरीडोर परियोजना पाकिस्तान के लिए गेमचेंजर साबित होगी. उनका यह भी मानना है कि यह परियोजना पूरे इलाके में शांति और समृद्धि लाएगी. पाकिस्तान लंबे समय से गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि चीनी मदद वाली ये परियोजना देश में इच्छित आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा दे सकती है.

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प्रोजेक्ट का विरोध

लेकिन चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरीडोर का स्थानीय समुदायों और कबायली ग्रुपों के अलावा छोटे प्रांतों के नेता भी विरोध कर रहे हैं जिनका कहना है कि बड़ा पंजाब प्रांत उनकी जमीन और संसाधनों का इस्तेमाल कर सारे फायदे ले जाएगा. उत्तर में गिलगिट बाल्टिस्तान से लेकर पश्चिम में बलूचिस्तान और दक्षिण में सिंध प्रांत तक इस्लामाबाद सरकार और स्थानीय ग्रुपों के बीच विवाद के संकेत उभरने लगे हैं.

पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर में वजीरिस्तान में स्थित एक विशेषज्ञ सैयद मसूद आलम का कहना है कि सैनिक और असैनिक प्रशासन ने देश के आबादीबहुल प्रांत पंजाब के फायदे के लिए आर्थिक कॉरीडोर का रास्ता बदल दिया है. वह कहते हैं, "खैबर पख्तूनख्वा, गिल्गिट बाल्टिस्तान, बलूचिस्तान और सिंध प्रांतों के लोग मौजूदा रूप में आर्थिक कॉरीडोर के खिलाफ हैं. हम इसका विरोध करेंगे." आलम का कहना है कि यदि सरकार अपना मन नहीं बदलती है तो देश में हिंसा भड़क सकती है.

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सेना का वर्चस्व

स्थानीय समुदायों की चिंताओं को नजरअंदाज कर इस्लामाबाद ने हर कीमत पर परियोजना को लागू करने पर जोर दिया है. आर्थिक कॉरीडोर में दिलचस्पी ले रही सेना का कहना है कि परियोजना का विरोध करने वाले पाकिस्तान की समृद्धि के विरोधी हैं और वे देशद्रोही हैं. सेना प्रमुख राहील शरीफ ने हाल में कहा, "हम तब तक नहीं रुकेंगे जब तक आतंक मुक्त पाकिस्तान का हमारा अंतिम लक्ष्य हासिल नहीं हो जाता." लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान की सेना आर्थिक कॉरीडोर की परियोजना पर अमल में वर्चस्व हासिल करना चाहती है. ब्रसेल्स स्थित दक्षिण एशिया विशेषज्ञ सिगफ्रीड वोल्फ का कहना है, "आर्थिक कॉरीडोर पाकिस्तानी सेना को देश की राजनीति में और पक्का कर देगा और देश को लोकतांत्रिक बदलाव की प्रक्रिया में लाने के प्रयासों को नुकसान पहुंचाएगा."

वोल्फ कराची में सेना की कार्रवाई को नागरिक प्रशासन से स्वतंत्र अकेले फैसला लेने का एक उदाहरण मानते हैं. पाकिस्तान की आर्थिक नगरी कराची पर नियंत्रण की लड़ाई भी तेज हो गई है. सेना ने शहर के प्रभावी राजनीतिक पार्टी एमक्यूएम पर हमले तेज कर दिए हैं. पत्रकार सत्तार खान कहते हैं, "चीन का असर सिर्फ आर्थिक कॉरीडोर तक सीमित नहीं है. पाकिस्तान सरकार बीजिंग को हर तरह के कॉन्ट्रैक्ट दे रही है और कराची इस्लामाबाद सरकार के लिए बहुत मायने रखता है."

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नागरिक अधिकारों को खतरा

चीनी पाकिस्तानी पहल का सबसे मुश्किल हिस्सा यह है कि इस्लामी कट्टरपंथ और बलूचिस्तान में अलगाववादी आंदोलन के असर वाले इलाकों में उन पर अमल कैसे होगा. बलूच गुटों ने परियोजना का विरोध करने की धमकी दी है. उनका कहना है कि यह उनके संसाधनों और अधिकारों का शोषण है. डॉयचे वेले के साथ एक इंटरव्यू में स्विट्जरलैंड में निर्वासन में रहने वाले बलोच रिपब्लिकन पार्टी के ब्रहमदाग बुग्ती ने कहा था कि चीन और पाकिस्तान के बीच अरबों का आर्थिक कॉरीडोर डील सुरक्षा के नाम पर बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के हनन को बढ़ा सकता है. बुग्ती ने कहा, "प्रांत में वित्तीय हितों की रक्षा के लिए पाकिस्तान सैनिक अभियानों में तेजी ला सकती है."

विकास मामलों के विश्लेषक मकसूद अहमद जान की आशंका है कि आर्थिक कॉरीडोर परियोजना पाकिस्तान को चीन का आर्थिक उपनिवेश बना देगी. आर्थिक कॉरीडोर से चीन से आने वाले धन की वजह से बलूचिस्तान में पारदर्शिता की मांग करने वालों को पाकिस्तान सुरक्षा एजेंसियों की मार झेलनी होगी. पाकिस्तान के लिए चीन महत्वपूर्ण होता जा रहा है. जान कहते हैं, "पाकिस्तान के पास और कोई विकल्प नहीं है. सऊदी अरब उतना बड़ा निवेश नहीं कर सकता, अमेरिका भरोसेमंद नहीं है और पाकिस्तान की सरकार को फौरन धन की जरूरत है." पाकिस्तान की सरकार को भरोसा है कि यह परियोजना देश की अर्थव्यवस्था को बदलने वाली साबित होगी.