साम्यवादी चीन में भी खेलों के रास्ते राष्ट्रवाद
२० अगस्त २०२१"मैं आप सबसे माफी मांगती हूं." टोक्यो ओलंपिक के मिक्स्ड डबल्स में जापानी टीम से खिताब हारने के बाद चीन की टेबल टेनिस खिलाड़ी ल्यू शिवेन ने कुछ इस तरह से देशवासियों का सामना किया. खिताब हारने के बाद उन्होंने अफसोस जाहिर करते हुए आगे लिखा, "मुझे लगता है कि मेरी वजह से टीम हार गई." मैच हारने के बाद देशवासियों से माफी मांगने वाली ल्यू अकेली एथलीट नहीं हैं. इसी तरह का माफीनामा 10 मीटर राइफल शूटिंग में क्वालिफाई न कर पाने वाले वांग लुयाओ ने भी जारी किया था.
वीबो पर एक सेल्फी पोस्ट करते हुए वांग ने लिखा था कि देशवासियों को नीचा दिखाने के लिए उन्हें बहुत अफसोस है. हालांकि गुस्से से भरी तमाम टिप्पणियों के बाद उन्होंने यह पोस्ट डिलीट कर दी. एक नागरिक की टिप्पणी थी, "मैच हारने के बाद सेल्फी पोस्ट करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे पड़ गई?"
इसी तरह का एक अन्य उदाहरण ली जुन्हुई का है जिन्होंने बैडमिंटन की पुरुषों की डबल्स प्रतिस्पर्धा में अपने साथी ल्यू युचेन के साथ पिछले शनिवार को रजत पदक जीता था. चीन की लोकप्रिय माइक्रोब्लॉगिंग साइट वीबो पर वो लिखते हैं, "मुझे अफसोस है. हमने पूरी कोशिश की, फिर भी आप सबको निराश होना पड़ा." ली ने यह टिप्पणी ताइवान के बैडमिंटन खिलाड़ियों ली यांग और वान चिलिन से हारने के बाद की थी. ओलंपिक खेलों में ताइवान का नाम "चीनी ताइपे" था और बैडमिंटन में यह उनका पहला स्वर्ण पदक था.
मैच के बाद, ली और ल्यू को भारी नाराजगी का सामना करना पड़ा. चीन की सोशल मीडिया में इस पर बहुत ही तीखी प्रतिक्रियाएं व्यक्त की गईं. कई चीनी नागरिकों ने खिलाड़ियों पर अच्छा प्रदर्शन न करने का आरोप लगाया. एक चीनी नागरिक की प्रतिक्रिया थी, "चीन का नाम बदनाम न करो, आप पर शर्म आती है."
'यह एक युद्ध की तरह है, उन्हें जीतना ही होगा'
चीन में जनता की उम्मीदों पर एथलीटों के खरा न उतर पाने के लिए माफी मांगना बहुत आम है. हालांकि, चीन और अन्य देशों के बीच बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव ने गुस्से में राष्ट्रवादी टिप्पणियों की संख्या और तीव्रता को और ज्यादा बढ़ा दिया है. शू गुओकी हॉन्ग कॉन्ग विश्वविद्यालय में वैश्वीकरण के इतिहास के प्रोफेसर और विशेषज्ञ हैं और उन्होंने चीन और खेल पर एक पुस्तक भी लिखी है. उन्होंने इस बात का उल्लेख किया है कि चीन की सरकार एथलीटों के प्रशिक्षण पर काफी पैसा खर्च करती है. इसलिए, उनसे अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद की जाती है और ऐसा करना एथलीटों की जिम्मेदारी समझी जाती है.
डीडब्ल्यू से बातचीत में शू गुओकी कहते हैं, "यह एक युद्ध की तरह है, उन्हें जीतना ही होगा." शू जोर देकर कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों के बारे में चीन का दृष्टिकोण पश्चिमी देशों से अलग है. वो कहते हैं, "यह सब राष्ट्रवाद के बारे में है. चीन अच्छे प्रदर्शन के माध्यम से पूरी दुनिया को दिखाना चाहता है कि वो खेलों में कितना समृद्ध और मजबूत है." शू कहते हैं कि चीन का राष्ट्रवाद साल 2008 में बीजिंग ओलंपिक के दौरान अपने चरम पर था.
चीन को महान और मजबूत दिखाने को उत्सुक
टोबियास जुसर हॉन्ग कॉन्ग विश्वविद्यालय में ग्लोबल स्टडीज प्रोग्राम में लेक्चरर हैं. जुसर भी कहते हैं कि यहां यह बात आमतौर पर प्रचलित है कि चीन के एथलीटों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी राष्ट्र की सेवा करना है. ज़ुसर कहते हैं कि पिछले ओलंपिक खेलों के समय की तुलना में, चीनी राष्ट्रवाद इस साल वर्तमान भू-राजनीतिक माहौल को देखते हुए हो सकता है कि कुछ ज्यादा ही बढ़ गया हो. वे कहते हैं, "कोविड-19 महामारी के मद्देनजर चीन विरोधी बयानबाजी में वृद्धि ने निश्चित रूप से इस राष्ट्रवाद को बढ़ाने में योगदान दिया है. चीन घरेलू राजनीतिक एजेंडे को प्राथमिकता देना चाहता है, अपने स्वयं के नागरिकों के प्रभुत्व को प्रदर्शित करता है और महाशक्ति कथा को रेखांकित करता है."
कुछ इसी तरह के विचार नेशनल ताइवान नॉर्मल यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर चुआंग जिया यिंग भी रखती हैं. वो कहती हैं कि हाल के वर्षों में देश की आक्रामक कूटनीतिक रणनीति के कारण चीन की वैश्विक छवि प्रभावित हुई है. इसलिए राष्ट्रवादी चीनी चिंतित हैं और दुनिया को यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि देश महान और मजबूत है.
चीन में अति राष्ट्रवादी लोगों को "लिटिल पिंक" कहा जाता है. चुआंग कहती हैं कि ये लोग इंटरनेट का उपयोग करने वाले युवा लोग हैं जो चीन को इंटरनेट पर सेंसर करने पर अन्य इंटरनेट माध्यमों को अपने राष्ट्रवादी विचारों को व्यक्त करने के लिए चुन लेते हैं. वो कहती हैं, "ऐसे लोगों की संख्या बढ़ रही है और राष्ट्रवाद को प्रेरित करने का यह नया तरीका है. विदेशी एथलीटों और ताइवान सेलेब्रिटीज की ट्रोलिंग करना भी इसमें शामिल है."
हालांकि चीन के ऐसे ट्रॉल्स की लिस्ट में सिर्फ चीन के ही एथलीट नहीं है. जिम्नास्टिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले जापान के जिम्नास्ट डाइकी हाशिमोटो को चीनी नागरिकों ने "राष्ट्रीय अपमान" तक कह डाला. स्कोर बोर्ड पर छेड़छाड़ का आरोप लगाते हुए इन लोगों ने ओलंपिक जजों को भी इस बात के लिए कठघरे में खड़ा कर डाला कि हाशिमोटो के लिए पक्षपात किया गया. इस आलोचना के कारण इंटरनेशनल जिम्नास्टिक फेडरेशन को एक बयान देकर स्पष्ट करना पड़ा कि जजों ने "निष्पक्ष और सही" काम किया.
एक अन्य जापानी एथलीट मीमा इटो भी चीनी राष्ट्रवादियों के सोशल मीडिया में निशाने पर रहीं जब अपने पार्टनर मिजुतानी के साथ उन्होंने टेबल टेनिस के मिक्सड डबल्स में चीनी खिलाड़ियों को हराकर गोल्ड मेडल पर कब्जा कर लिया. इटो और मिजुतानी ने दावा किया कि उन्हें सोशल मीडिया पर गालियां दी गईं और जान से मारने की धमकी तक दी गई. जुसर कहते हैं कि जापानियों को टार्गेट करना चीनी लोगों के लिए कोई नई बात नहीं है क्योंकि चीन और जापान एक-दूसरे के ऐतिहासिक प्रतिद्वंद्वी हैं.
कुछ भी हो, चीन में इस साल लोगों के उम्मीदें अपेक्षाकृत बहुत ज्यादा रहीं और जब राष्ट्र गौरव की बात आ जाती है तो ऐसा होना स्वाभाविक है और ऐसा लगता है कि तब सब कुछ दांव पर लगा दिया जाए. चीन के राष्ट्रवादी लोगों की ट्रॉलिंग सिर्फ एथलीटों तक सीमित नहीं है बल्कि मनोरंजन जगत भी इससे अछूता नहीं है. ताइवान के टीवी होस्ट डी ह्सू और ताइवान के पॉप स्टार जोलिन त्साई ट्रॉल्स के निशाने पर खूब रहे हैं.
ह्सू ने ताइवान के एथलीटों की उपलब्धि पर अपनी खुशी को इंस्टाग्राम पर शेयर किया और उन्हें "राष्ट्रीय खिलाड़ियों" की संज्ञा दी. चीनी ट्रॉल्स ने इसे ताइवान की आजादी के तौर पर व्याख्यायित किया गया. इस बीच, त्साई ने ताइवान एथलीटों को उनकी जीत पर बधाई देते हुए अपनी फेसबुक पेज पर उनकी तस्वीरें पोस्ट कीं. चीनी नागरिकों ने उनकी इस बात के लिए आलोचना की कि उन्होंने चीनी खिलाड़ियों की जीत का जश्न क्यों नहीं मनाया. चीन, ताइवान को अपना एक हिस्सा मानता है और दोनों के बीच पिछले कुछ सालों से काफी तनाव रहा है.
ट्रॉलिंग को लेकर एथलीट चिंतित हैं
यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि ओलंपिक खेलों के दौरान ट्रॉलिंग का ट्रेंड क्या चीन में राष्ट्रवाद की वृद्धि को दर्शाता है. लेकिन दूसरे देशों के एथलीट इस बात को लेकर जरूर चिंतित हैं कि वो चीनी नागरिकों के निशाने पर हैं. उदाहरण के लिए, जर्मनी के टेबल टेनिस खिलाड़ी दिमित्रि ओव्टाकारोव ने सोशल मीडिया में एक तस्वीर पोस्ट करते हुए लिखा कि ताइवान के खिलाड़ी के खिलाफ मुकाबला जीतना बड़ा कठिन था और उसके अगले दिन यानी 3 अगस्त को उन्हें जापान के खिलाड़ी का सामना करना होगा.
कुछ चीनी नागरिकों ने इस पोस्ट पर यह कहते हुए टिप्पणी की कि ताइवान को "चीनी ताइपे" कहना चाहिए. दो घंटे के बाद ओव्टाकारोव को अपनी पोस्ट को एडिट करना पड़ा और उन्होंने "ताइवान" और "जापान" शब्दों को बिना कोई वजह बताए हटा दिया.
रिपोर्ट: सुंग सिएन ली