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जब फरवरी में ये हाल है तो जून में क्या होगा

ओंकार सिंह जनौटी
२३ फ़रवरी २०२३

पेड़ पौधे और वन्य जीव नई जगह बसने लगे हैं. लेकिन घरों में रहने का आदी हो चुका इंसान, लगातार ताकतवर होते जलवायु संकट से कैसे निपटेगा? फरवरी का महीना कई चेतावनियां दे रहा है.

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जनवरी में पकता काफल
तस्वीर: Onkar Singh Janoti/DW

सुर्ख लाल रंग का बुरांस, ये फूल हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, नेपाल, सिक्किम, भूटान और अरुणाचल प्रदेश की पहचान है. अलग अलग रंगों वाला बुरांस, कहीं राज्य पुष्प है तो कहीं राष्ट्रीय. पर्वतीय इलाकों में 1700 मीटर से ज्यादा की ऊंचाई पर मिलने वाले इस पेड़ में अप्रैल-मई में फूल खिलता है और पूरे जंगल लाल रंग से भर जाते हैं.

लेकिन इस बार कई जगहों पर बुरांस दिसंबर अंत में ही खिलने लगा. 19 दिसंबर 2022 को अल्मोड़ा जिले में स्थित मशहूर बिनसर अभ्यारण में लाल बुरांस चमकने लगा. कुछ हफ्तों बाद आस पास के कई अन्य स्थानों पर भी जनवरी में ये फूल खिला और कुछ दिन बाद झड़ भी गया. इसी दौरान मई जून में पकने वाला बेरीनुमा फल, काफल भी तीन महीने पहले पकता नजर आने लगा.

बुरांस
बुरांसतस्वीर: Onkar Singh Janoti/DW

जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा खतरा अमेरिका, चीन और भारत कोः रिपोर्ट

आम तौर पर जहां काफल और बुरांस होते हैं, वहां सर्दियों में अच्छी खासी बर्फ भी गिरती है. लेकिन इस बार उत्तराखंड और हिमाचल की दर्जनों चोटियां बर्फ के लिए तरस गईं. 1800 मीटर की ऊंचाई तो दूर, इस बार 2200 और 2500 मीटर ऊंचे इलाकों में भी बर्फ नहीं पड़ी. वहां बस कुछ घंटों के लिए बर्फीले छीटे जरूर दिखे. बारिश का भी यही हाल रहा. जनवरी में बुग्यालों (हिमालय के करीब घास से ढके इलाके) में आग की घटनाएं सामने आने लगी. इन मौसमी बदलावों ने पहाड़ों का बुरी तरह सुखा दिया है. गर्मियों में पानी के लिए हाहाकार मचना तय है.

खतरे में मैदानी जनजीवन

फरवरी में कई दिन पहाड़ों में औसत तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा रहा तो वहीं मैदानी इलाकों में पारा आए दिन 30 डिग्री के पार जाता रहा. बनारस में 35 डिग्री, दिल्ली 33 डिग्री और भुज में 40.3 डिग्री सेल्सियस, इस तरह फरवरी की गर्मी ने कई दशकों के रिकॉर्ड तोड़ दिए. गर्म मौसम और ना के बराबर बारिश.

गर्म होती जलवायु ने एक और बड़ा बदलाव किया. उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में इस बार आम और लीची जैसे फलों में जनवरी में ही बौर आ गया. आम तौर पर इन पेड़ों में वसंत के बाद बौर आता है. लेकिन इस बार आम और लीची जैसे पेड़ डेढ़ महीना आगे चल रहे हैं. किसान हैरान भी है और परेशान भी. उन्हें नहीं पता कि इस बार फसल कैसी होगी. इसकी भी वही वजह है, गर्म होती जलवायु. कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक सूखे और गर्मी की वजह से इस बार उत्तर भारत में गेंहू की फसल प्रभावित हो सकती है. गेहूं यानि एक अरब लोगों की रोटी.

खत्म होने के करीब है पिंडार नदी का स्रोत पिंडारी ग्लेशियर
खत्म होने के करीब है पिंडार नदी का स्रोत पिंडारी ग्लेशियरतस्वीर: Onkar Singh Janoti/DW

इंसान का क्या होगा

बदलती जलवायु की वजह से कई वन्य जीव और पौधे नए इलाकों में पहुंचने लगे हैं. उत्तराखंड में ठंडे माने जाने वाले कई इलाकों में आम और अमरूद जैसे गर्म जलवायु के पौधे पनपने लगे हैं. गुनगुनी जलवायु पसंद करने वाले मोर और हाथी भी पहाड़ों के भीतर घुसने लगे हैं. 2600 मीटर की ऊंचाई पर सांप मिलने लगे हैं. मतलब साफ है कि पौधे और वन्य जीव खुद को परिवर्तन के मुताबिक ढालने में व्यस्त हैं.

क्या नई जगह बसाकर बचाए जा सकेंगे विलुप्त हो रहे पेड़-पौधे

लेकिन भारत की 1.4 अरब वाली इंसानी आबादी, जो अपने घरों में रहने की आदी है, वो इन बदलावों का सामना कैसे करेगी? भारतीय समाज और प्रशासन का बड़ा तबका फिलहाल इस सवाल को नकार रहा है. वो सोशल मीडिया पोस्ट और छुट्टी बिताने के लिए हिमालय तक पहुंचता तो है लेकिन पिघलते पहाड़ों की फिक्र उसमें कम दिखती है. बढ़ती गर्मी को थामने के लिए हर स्तर पर कार्बन उत्सर्जन कम करने के प्रयासों के बजाए ज्यादा लगातार ताकतवर एयरकंडीशनर की मांग बढ़ रही है. शहरों को साइकिल फ्रेंडली बनाने के बजाए, कारों के लिए सड़कें लगातार चौड़ी की जा रही हैं.

शहरीकरण की रफ्तार के कारण तेजी से घट रही है हरियाली
शहरीकरण की रफ्तार के कारण तेजी से घट रही है हरियालीतस्वीर: Charu Kartikeya/DW

दूसरी ओर भारत के ज्यादातर शहरों और उनके आस पास के इलाकों में, वन विभाग लगातार अपनी जमीन खोता जा रहा है. बढ़ती आय और जीवनस्तर में वृद्धि के सापेक्ष सार्वजनिक परिवहन पर पर्याप्त निवेश नहीं हो रहा है. पर्यावरण संरक्षकों की चिंता ये है कि अगर भारत में यूरोप जैसा सूखा पड़े या पाकिस्तान जैसी बाढ़ आए तो क्या देश उसके लिए तैयार है?