जलवायु अनुकूल खेती महिलाओं को कैसे सशक्त बना रही है
८ जनवरी २०२२गीता मोनी मंडल अपने घर में दिन में कई घंटे बिताती है जहां वो इस सर्दी में कई तरह की सब्जियों की खेती कर रही हैं. एक दिहाड़ी मजदूर की पत्नी और दो बच्चों की मां मंडल ने दो साल पहले अपने पति की आमदनी में आई कमी के बाद अपने यार्ड में सब्जियां उगाना शुरू कर दिया था.
वो कहती हैं, "अत्यधिक बाढ़ और जलभराव ने कई खेत मालिकों को कृषि उत्पादन छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया. मेरे पति जैसे दिहाड़ी मजदूरों के लिए नियमित काम मिलना मुश्किल था. मैं अब सब्जियां बेचकर अपने परिवार और अपने बच्चों की पढ़ाई लिखाई का इंतजाम कर रही हूं.”
मंडल इस क्षेत्र में अकेली ऐसी महिला नहीं हैं बल्कि बांग्लादेश के तटीय क्षेत्रों में रहने वाली कई महिलाओं की ऐसी ही कहानियां हैं, जहां जलवायु परिवर्तन से जुड़ी मौसमी अति की घटनाएं नियमित रूप से स्थानीय समुदायों में दुख का कारण बनती हैं.
जलवायु परिवर्तन के प्रति बेहद संवेदनशील
बांग्लादेश उन देशों में से एक है जो जलवायु आपदाओं के प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं. देश में लगातार बाढ़, सूखा, नदी के किनारे का कटाव, तटीय कटाव और बंगाल की खाड़ी में बनने वाले चक्रवातों का सामना करना पड़ता है.
देश का दक्षिणी तटीय भाग, जहाँ करीब तीन करोड़ लोग रहते हैं, वह इलाका अक्सर जलवायु से संबंधित प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित होता है और लाखों लोगों को वहां से विस्थापित होना पड़ता है. जमीन का एक बड़ा हिस्सा अक्सर जलमग्न हो जाता है.
दिहाड़ी मजदूरों को अक्सर इन आपदाओं का खामियाजा भुगतना पड़ता है क्योंकि कई लोग अपनी आमदनी के स्रोतों को खो देते हैं.
तेज और लगातार बाढ़, भारी वर्षा, ज्वार-भाटा और पानी के खारेपन ने भी पिछले कुछ वर्षों में फसल उत्पादन को प्रभावित किया है, जिसका असर कृषि श्रमिकों पर भी हुआ है. बांग्लादेश में कृषि कार्यों में लगे श्रमिक देश की कुल श्रम शक्ति का करीब 60 फीसद और ग्रामीण गरीबों का 70 फीसद हैं.
प्रतिकूल जलवायु घटनाओं से महिलाएं बुरी तरह प्रभावित होती हैं. इन क्षेत्रों में महिलाएं ज्यादातर अपनी आजीविका के लिए छोटे पैमाने की कृषि, मवेशी, मुर्गी पालन के साथ ही हस्तशिल्प पर निर्भर हैं. कृषि को प्रभावित करने वाली जलवायु संबंधी समस्याओं के कारण, गरीब परिवारों की महिलाएं खासतौर पर बुरी तरह प्रभावित हुई हैं.
जलवायु शोधकर्ता मोहम्मद अब्दुर रहमान ने डीडब्ल्यू को बताया कि पारंपरिक खेती क्षेत्र में महिलाओं की आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है. लेकिन प्रतिकूल जलवायु घटनाएं जैसे जलभराव और लवणता उन्हें पारंपरिक खेती के तरीकों का उपयोग करके सब्जियां उगाने से रोक रही हैं.
जलवायु तनाव और इसके परिणामस्वरूप आमदनी में आई गिरावट ने नौकरियों की तलाश में गांवों से शहरों की ओर पुरुषों के प्रवास को बढ़ा दिया है लेकिन महिलाएं ऐसी स्थितियों में अक्सर घर पर ही रह जाती हैं. जलवायु चुनौतियां इस क्षेत्र में महिलाओं के सामने आने वाली अन्य सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों को और भी जटिल बना देती हैं.
यहां पितृसत्तात्मक सामाजिक मानदंडों का मतलब है कि महिलाओं की गतिशीलता और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में उनकी भागीदारी बहुत अधिक प्रतिबंधित है. उनके पास भूमि और अन्य उत्पादक संपत्तियों तक पहुंच बहुत ही सीमित है और संपत्ति के स्वामित्व मामले में तो यह स्थिति और भी खराब है.
इसके अलावा, बाजार और पूंजी तक उनकी पहुंच सीमित है, जबकि उनमें से कई को घरेलू हिंसा और कम उम्र में शादी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
पर्यावरणीय लचीलेपन का निर्माण
कई स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय संगठन स्थानीय समुदायों, विशेषकर महिलाओं को जलवायु संबंधी समस्याओं के प्रभावों से उबरने में मदद करने के प्रयास कर रहे हैं.
उदाहरण के लिए, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी), बांग्लादेश की सरकार के साथ जुड़ गया है और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और लवणता जैसी समस्याओं से निपटने के लिए सतखिरा और खुलना जिलों में लोगों, खासकर महिलाओं और लड़कियों की मदद कर रहा है. स्विस एनजीओ हेल्वेटास भी इस क्षेत्र में सक्रिय रहा है जिससे स्थानीय लोगों को स्थाई खेती के तरीकों में मदद मिल रही है. इसमें उपयुक्त जल प्रबंधन प्रणाली का निर्माण शामिल है जो वर्षा के पानी को खेतों में प्रवाहित करने और जलवायु के अनुकूल बीजों और जैविक उर्वरकों के उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है.
साथ ही किसानों को बाजार से जोड़ने में भी मदद की जाती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि उनकी उपज उपभोक्ताओं तक पहुंच जाए. एनजीओ का कहना है कि इस सहायता से महिलाओं की आय बढ़ाने में मदद मिली है. हेल्वेटास के जलवायु परिवर्तन और आपदा जोखिम न्यूनीकरण विशेषज्ञ आशीष बरुआ ने डीडब्ल्यू को बताया कि देश भर में उनके संगठन की परियोजना ने कम से कम 1,800 महिलाओं को सहायता प्रदान की है.
वो कहते हैं, "अन्य सामाजिक-आर्थिक कारकों को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि जलवायु नम्य आजीविका दृष्टिकोण ने महिलाओं को उनकी स्थिति में सुधार करने में मदद की है.”
महिलाओं के वित्तीय सशक्तिकरण की कुंजी
बांग्लादेश के दक्षिणी बागेरहाट जिले के समदरखली गांव की रहने वाली श्यामली रानी अपने घर के पास एक भूखंड पर सब्जियां उगाती हैं. श्यामली ने एक स्थानीय एनजीओ की ओर से आयोजित प्रशिक्षण के दौरान वर्टिकल फार्मिंग करना सीखा.
वर्टिकल फार्मिंग के माध्यम से, शहरी क्षेत्रों में जगह बचाने और सिंचाई के लिए कम से कम ऊर्जा और पानी का उपयोग करने के लिए खड़ी खड़ी परतों में पौधों का रोपण करके खाद्य फसलों की खेती आसानी से की जा सकती है.
उन्होंने बताया कि इस पद्धति ने उन्हें न केवल बाढ़ से निपटने में मदद की है बल्कि भूमि के एक छोटे से टुकड़े का सर्वोत्तम उपयोग सुनिश्चित करने में भी मदद की है. वो कहती हैं, "अपने पति की मदद से, जो कि एक दिहाड़ी मजदूर हैं, मैं बगीचे में कई तरह की सब्जियां उगाती हूं और हर महीने 5,000 से 7,000 टका कमाती हूं.”
जलवायु शोधकर्ता अब्दुर रहमान कहते हैं कि जलवायु नम्य आजीविका दृष्टिकोण न केवल बागेरहाट और खुलना जिलों में, बल्कि देश के अन्य तटीय क्षेत्रों में भी सफल रहा है. वो कहते हैं कि इस तरह के तरीकों ने कम आय वाली महिलाओं को संसाधनों तक पहुंच प्रदान की और उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाया है.