कंपनियां जिनका बज गया बैंड
कभी अरबों में खेलने वाली कई कंपनियां एक झटके में डूब जाती हैं. याद कीजिए, इन कंपनियों को.
पोलरायड
इंस्टामैटिक कैमरा यानी उसी वक्त फोटो प्रिंट करने वाले कैमरों की दुनिया में पोलरायड का राज था. लेकिन डिजिटल फोटोग्राफी आई तो कंपनी दीवालिया हो गई. 2001 में इसने खुद को दीवालिया घोषित कर दिया.
नोकिया
एक जमाने में लोगों के लिए मोबाइल फोन का मतलब ही नोकिया होता था. मोबाइल के क्षेत्र में नंबर वन रही फिनलैंड की यह टेक कंपनी 147 साल बाद खत्म हो गई. हालांकि कुछ समय बाद उसने वापसी की.
एनरॉन
यह अमेरिका में दीवालिएपन का सबसे बड़ा मामला था. 1985 में कंपनी शुरू हुई और कुछ ही साल में सातवीं सबसे बड़ी कंपनी बन गई. लेकिन पता चला कि कंपनी ने 50 करोड़ डॉलर का कर्ज ले रखा था जो बढ़ते बढ़ते 63.8 करोड़ डॉलर हो गया.
जनरल मोटर्स
अमेरिका के डेट्रॉयट में स्थापित जनरल मोटर्स के एक वक्त में 157 देशों में दो लाख कर्मचारी थे. लेकिन कारों की बिक्री घटने लगी और 2009 में आलम यह हो गया कि कंपनी दीवालिया हो गई. हालांकि सरकारी मदद से इसे दोबारा उठाया गया.
ट्रंप एंटरटेनमेंट रिजॉर्ट
2004 में कंपनी को बड़ा झटका लगा लेकिन किसी तरह बच गई. फिर 2008 में मंदी आई तो कसीनो चलाने वाली डॉनल्ड ट्रंप की इस कंपनी का बैंड बज गया. 2009 में जब कंपनी ने दीवालिएपन की अर्जी दी तो उस पर 1.74 अरब डॉलर का कर्ज था.
कॉम्पैक
1980 और 90 के दशक में कंप्यूटर्स की दुनिया में कॉम्पैक का राज था. लेकिन 2002 में एचपी कंपनी आई और कॉम्पैक को निगल गई. कॉम्पैक सिर्फ 20 साल जिंदा रही.
कोडैक
19वीं सदी के आखिर में शुरू हुई यह फोटोग्राफी कंपनी 2012 में इस हालत में पहुंच गई कि उसे दीवालिया घोषित करना पड़ा. डिजिटल फोटोग्राफी ने कंपनी की जान ले ली. इस पर 6.75 अरब डॉलर का कर्ज था.
डेल्टा एयरलाइंस
कभी अमेरिका की सबसे सफल एयरलाइंस में शुमार डेल्टा को ईंधन की बढ़ी कीमतें ले डूबीं. 2005 में उसने खुद को दीवालिया घोषित कर दिया. हालांकि 2007 में कंपनी फिर आसमान में थी.
डेवू मोटर्स
दक्षिण कोरिया की डेवू मोटर्स 1982 में शुरू हुई थी. भारत में लोग मटीज कार के जरिए इसे खूब पहचाने थे. लेकिन 1999 में कंपनी बिक गई. हालांकि इसे जिस जनरल मोटर्स ने खरीदा, बाद में वह भी दीवालिया हो गई.
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