अमीर देशों की मुट्ठी की जकड़ी कोरोना वैक्सीन
९ दिसम्बर २०२०दुनिया के अमीर देशों में दुनिया की 14 फीसदी आबादी रहती है. लेकिन ये अमीर देश कोरोना वैक्सीन की 53 फीसदी खेप खरीद चुके हैं. इसका मतलब है कि विश्व की बाकी 86 फीसदी आबादी के लिए फिलहाल 47 फीसदी वैक्सीन बची है, जिसे उन देशों तक पहुंचाना भी एक बड़ी चुनौती है. यह दावा पीपुल्स वैक्सीन अलायंस ने किया है. अलायंस में ऑक्सफैम, एमनेस्टी इंटरनेशनल और ग्लोबल जस्टिस नाव जैसे संगठन शामिल हैं. अलायंस के मुताबिक अब तक सबसे असरदार मानी जा रही बायोनटेक-फाइजर और मॉर्डेना की करीबन पूरी खेप अमीर देश खरीद चुके हैं.
एक उदाहरण देते हुए कहा गया है कि कनाडा ने अपनी जरूरत से पांच गुना ज्यादा वैक्सीन ऑर्डर की है. यूरोपीय संघ, अमेरिका, ब्रिटेन, जापान स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, हांगकांग, मकाऊ, न्यूजीलैंड, इस्राएल और कुवैत भी वैक्सीन का पर्याप्त भंडार ऑर्डर कर चुके हैं.
मुनाफा नहीं, जिंदगी की सोचिए
अमीर देशों की इस होड़ के कारण दुनिया के 67 गरीब और पिछड़े देशों तक कोरोना की वैक्सीन तक पहुंचना मुश्किल हो रहा है. अलायंस ने वैक्सीन बनाने वाली दवा कंपनियों से अपील की है कि वे दवा बनाने का फॉर्मूला शेयर करें. विश्व स्वास्थ्य संगठन के जरिए फॉर्मूला साझा करने पर तमाम देशों में बड़े स्तर पर वैक्सीन बनाई जा सकेगी. और गरीब देशों तक भी पहुंचाई जा सकेगी.
पीपुल्स वैक्सीन अलायंस की एक सलाहकार मोहगा कमल-यानी ने समाचार एजेंसी थॉमस रॉयटर्स फाउंडेशन से बातचीत में कहा, "वैश्विक महामारी के इस अभूतपूर्व समय में लोगों की जिंदगी और आजीविका को दवा निर्माता कंपनियों के मुनाफे से आगे रखना चाहिए."
पिछड़े देशों की उम्मीदें
अलायंस के मुताबिक भूटान, इथियोपिया और हैती समेत 67 देश वैक्सीन पाने के मामले में पिछड़ सकते हैं. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्रा जिनेका ने वादा किया है कि वह 64 फीसदी वैक्सीन विकासशील देशों तक पहुंचाएंगे. लेकिन दावे के बावजूद वैक्सीन तक पहुंच वाले कुल लोगों की संख्या सिर्फ 18 फीसदी ही होगी.
इस बीच चीन की वैक्सीन साइनवैक भी नई उम्मीदें जगा रही है. यूएई के दवा नियंत्रक विभाग का दावा है कि उसके क्लीनिकल ट्रायल में साइनोवैक 86 फीसदी असरदार साबित हुई है. अगरऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी-एस्ट्रो जिनेका और साइनोवैक जैसी वैक्सीनें सफलता और सुरक्षा के पैमानों पर खरी उतरीं तो गरीब देशों के लिए यह बड़ी राहत की बात होगी.
ओएसेजे/एके (थॉमस रॉयटर्स फाउंडेशन)
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