1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

लॉकडाउन में बढ़ा साइबर बुलिंग का खतरा

स्तुति मिश्रा
१२ जून २०२०

कोरोना वायरस की वजह से हुए लॉकडाउन ने लोगों की इंटरनेट के ऊपर निर्भरता बहुत बढ़ा दी है. इस दौरान बच्चों का भी ऑनलाइन रहने का वक्त पहले के मुकाबले काफी बढ़ गया है.

https://p.dw.com/p/3dgsz
तस्वीर: picture-alliance/dpa/O. Berg

आम जीवन में बच्चों को सावधान रहने के लिए कई सारी चीजें सिखाई जाती हैं. उन्हें अनजान लोगों से बात ना करने को कहा जाता है या फिर किसी की बातों में ना आने को. पर फेसबुक पर अकाउंट बनाने से पहले या ऑनलाइन गेम्स खेलना सिखाते वक्त बच्चों को नहीं बताया जाता कि इंटरनेट पर क्या करना चाहिए और क्या नहीं. लॉकडाउन ने सभी बच्चों को इंटरनेट के इस्तेमाल पर मजबूर कर दिया है. इसके साथ ही उन्हें अनजान खतरों के सामने भी ला दिया है. जापान में पिछले दिनों साइबर बुलिंग के कारण हन्ना किमुरा की आत्महत्या चर्चा में रही है लेकिन सरकारें अब तक इसे पूरी तरह रोक पाने में विफल रही हैं.

पहले जो काम रोजमर्रा में किया जा सकता था उसके लिए इंटरनेट आज सबसे बड़ी जरूरत है. स्कूल बंद हैं और क्लास ऑनलाइन हो रहे हैं. बच्चों का पढ़ाई से लेकर दोस्तों से बातचीत तक सबका एक ही जरिया है, इंटरनेट. इंटरनेट पर जहां बड़े भी अकसर फ्रॉड और गलत जानकारी का शिकार हो जाते हैं, वहीं बच्चों पर कई खतरे मंडरा रहे होते हैं, जिनमें से एक बड़ा खतरा है ऑनलाइन बुलिंग यानी इंटरनेट के जरिए धमकी या उत्पीड़न का सामना. बच्चे जानकारी और बचाव के तरीकों के अभाव में ऐसे खतरों में आसानी से पड़ सकते हैं.

क्या है साइबर बुलिंग?

बेहद आम होती जा रही साइबर बुलिंग को सरल भाषा में समझाया जाए तो कहा जा सकता है कि अभद्र-अश्लील भाषा, चित्रों और धमकियों से इंटरनेट पर किसी को परेशान करना साइबर बुलिंग की श्रेणी में आता है. इसकी कई किस्म हो सकते हैं, जैसे कि किसी को ट्रोल करना, किसी दूसरे की पहचान का इस्तेमाल करना, किसी की निजी फोटो या बात को सार्वजनिक करना या फिर अश्लील फोटो या वीडियो भेजना. यानी किसी भी तरह से ऑनलाइन परेशान किए जाने को साइबर बुलिंग कहा जाता है.

जिस तरह ज्यादा से ज्यादा बच्चे सोशल मीडिया पर समय बिता रहे हैं,उससे साफ है कि फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर पर हो रही बातों का उनपर काफी असर पड़ रहा है. बच्चे दोस्तों से होने वाली बातचीत यूं भी अपने माता-पिता को नहीं बताते, फिर ऑनलाइन माध्यमों पर हो रही बातों को वे माता-पिता को बताएं, ऐसी उम्मीद कैसे की जाए?हाल ही में इंस्टाग्राम पर ‘बॉयज लॉकर रूम' नाम के एक ग्रुप में हुई आपत्तिजनक चैट के कुछ मैसेज वायरल हुए थे, जिसके बाद बच्चों के ऑनलाइन व्यवहार को लेकर काफी बहस हुई थी.

10 फीसदी बच्चे साइबर बुलिंग का शिकार

हाल ही में बाल सहायता संगठन चाइल्ड राइट्स एंड यू के दिल्ली में किए गए सर्वे में सामने आया कि 630 बच्चों में से 9.2 फीसदी ने अपने जीवन में कभी ना कभी साइबर बुलिंगा का अनुभव किया है. लेकिन उनमें से आधे बच्चों ने कभी इसके बारे में पेरेंट्स या किसी बड़े को नहीं बताया. इसी सर्वे में ये भी सामने आया कि बच्चे जितना ज्यादा वक्त ऑनलाइन बिताते हैं, उतना ही ज्यादा उनपर साइबर बुलिंग जैसी चीजों का खतरा होता है.

सर्वे में पाया गया कि 13 से 18 साल की उम्र के जो बच्चे दिन में तीन घंटे से ज्यादा इंटरनेट का इस्तेमाल करते थे, उनमें बुलिंग जैसी घटनाओं का सामना करने वालों की संख्या 22 फीसदी थी. वहीं चार घंटे इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों में यह संख्या 6 फीसदी से बढ़कर 28 फीसदी तक थी. इस स्टडी से एक और डराने वाला आंकड़ा निकल कर आया. सर्वे में शामिल बच्चों में 10 में से 4 लड़कों ने अपनी मॉर्फ्ड यानी बदली तस्वीर या वीडियो देखी. इनमें से आधे बच्चों ने कभी पुलिस में इस बात की शिकायत नहीं की.

खतरों के बारे बताने की जिम्मेदारी पैरेंट्स की

बच्चों की साइबर बुलिंग जैसे मामलों पर काम करने वाली मनोवैज्ञानिक पलक उप्पल का कहना है कि आज बच्चे जिस तरह टेकेनोलॉजी से भरे माहौल में बड़े हो रहे हैं, वैसा माहौल उनके माता-पिता ने अपने बचपन में नहीं देखा. इसलिए ऑनलाइन सही आदतें क्या हैं, क्या शेयर करना चाहिए क्या नहीं, लोगों से क्या और कैसे बात करनी चाहिए, किन वेबसाइट्स पर जाना चाहिए और किन पर नहीं, पोस्ट करते वक्त सही भाषा का इस्तेमाल जैसे कई टॉपिक्स पर माता-पिता से बच्चों की बात नहीं होती.

पलक उप्पल का कहना है कि साईबर बुलिंग जैसे खतरों से बचाने के लिए माता-पिता का इंटरनेट की दुनिया को समझना बेहद जरूरी है क्योंकि ज्यादातर माता-पिता खुद सोशल मीडिया का उतना ज्यादा या उस तरह इस्तेमाल नहीं करते जैसे बच्चे करते हैं. इसलिए वे कई खतरों से वाकिफ भी नहीं होते. पलक का मानना है कि माता-पिता को इंटरनेट के इस्तेमाल पर कुछ नियम बनाने की जरूरत है, जैसे कि कितनी देर इंटरनेट पर रहें, कौनसी वेबसाइट इस्तेमाल करें, कौन सी नहीं, या किससे क्या बात करें. लेकिन ये जरूर ध्यान रखें कि बच्चों को उन नियमों के पीछे का कारण समझाएं. अगर आप उनके सोशल मीडिया अकाउंट पर नजर रखते हैं, तो ध्यान रखें कि इसके बारे में बच्चों को पता हो.

बुली होने और करने दोनों से बचाएं

सोशल मीडिया के माहौल में बच्चे अकसर दूसरों से देखकर सीखते हैं. बहस और ट्रोलिंग आज हमारी जिंदगी का हिस्सा हैं. ऑनलाइन पर कई बिना पहचान के अकाउंट्स होने के कारण अभद्र और अश्लील भाषा का इस्तेमाल भी अकसर देखने को मिलता है. क्योंकि ज्यादातर मामलों में माता-पिता के पास इसपर नजर रखने का कोई साधन नहीं होता. इसलिए बच्चों को बुलिंग से बचाने के साथ-साथ दूसरों को बुली करने जैसी गलत आदतों से बचाना भी जरूरी है.

पलक उप्पल का मानना है कि ये पहचानने के लिए कि बच्चा बुली हो रहा है या किसी को बुली कर रहा है, पेरेंट्स को व्यवहार में बदलाव के लक्षण पहचानने होंगे. साथ ही ये भी जरूरी है कि माता-पिता बच्चों से साइबर बुलिंग के कानून के बारे में बात करें और उन्हें बताएं की इसके क्या परिणाम को सकते हैं. इंटरनेट जिंदगी का अहम हिस्सा बनता जा रहा है और इसका इस्तेमाल हर काम के लिए जरूरी होता जा रहा है. इंटरनेट की दुनिया भले ही वर्चुअल दुनिया हो, लेकिन नियम वही होते हैं, जो सामान्य जिंदगी के हैं. जरूरी है कि बच्चों को शुरुआत से ही सही शिक्षा मिले ताकि वे जिम्मेदार इंटरनेट यूजर बन सकें.

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी