कौन से ब्लड ग्रुप को है कोरोना का ज्यादा खतरा
यह तो आप जानते ही हैं कि एक ही परिवार के सदस्यों का ब्लड ग्रुप अलग-अलग हो सकता है. लेकिन क्या आपको पता है कि किस ब्लड ग्रुप वालों को कोरोना वायरस से ज्यादा खतरा हो सकता है और किसे कम.
कितने तरह के ब्लड ग्रुप
कुल चार तरह के ब्लड ग्रुप होते हैं. किसी व्यक्ति की लाल रक्त कोशिकाओं में पाए जाने वाले प्रोटीन कंपाउंड ’ए’ और ‘बी’ एंटीजेन के आधार पर इनका नामकरण किया जाता है. जिनमें केवल ए या बी पाया जाता है उनका ब्लड ग्रुप ‘ए’ या ‘बी’ कहलाता है. इसी तरह जिनमें दोनों पाए जाते हैं उन्हें ‘एबी’ और जिसमें दोनों नहीं पाए जाते हैं, उन्हें ‘ओ’ कहा जाता है.
इम्युनिटी में होता है अंतर
इम्युनिटी यानि बीमारियों से लड़ने की क्षमता किसी ब्लड ग्रुप में दूसरों से कम या ज्यादा हो सकती है. रिसर्चर बताते हैं कि खून चढ़ाने पर कुछ ब्लड ग्रुप दूसरों के मुकाबले ज्यादा कड़ी प्रतिक्रिया भी दे सकते हैं. इसके अलावा एक और कारक होता है जिसे ‘रीसेस फैक्टर’ कहते हैं - जो कि कुछ लोगों में पाया जाता है जबकि कुछ में नहीं.
कोविड-19 से कैसा संबंध
कुछ लोगों में कोरोना का संक्रमण होने पर बहुत गंभीर प्रतिक्रिया होती है तो वहीं कुछ लोगों को पता तक नहीं चलता, जिन्हें एसिम्टमैटिक कहा जा रहा है. नई रिसर्च दिखा रही है कि लोगों के ब्लड ग्रुप का इस तरह की प्रतिक्रिया से संबंध हो सकता है. इससे तय होता है कि किसी व्यक्ति की इम्यून प्रतिक्रिया कितनी कमजोर या मजबूत होगी.
ब्लड ग्रुप और कोरोना पर शोध
जर्मनी और नॉर्वे के रिसर्चरों ने कोरोना के साथ अलग अलग रक्त समूहों के संबंध का अध्ययन किया. इनकी खोज को ‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ में प्रकाशित किया गया. उन्होंने इटली और स्पेन के 1,610 मरीजों का अध्ययन किया, जिनमें कोविड-19 के कारण सांस लेने का तंत्र फेल हो गया था. ये गंभीर मामले से थे जिनमें से कई की जान चली गई.
ब्लड ग्रुप ‘ए’ सबसे आगे
पता चला है कि ‘ए’ ब्लड ग्रुप वालों को कोरोना से गंभीर रूप से प्रभावित होने का खतरा सबसे ज्यादा है. कोविड-19 से संक्रमित होने पर इनको ऑक्सीजन देने या वेंटिलेटर पर रखने की जरूरत पड़ने की संभावना ‘ओ’ ग्रुप वाले से दोगुनी होती है. जर्मनी में 43 प्रतिशत लोगों का ब्लड ग्रुप ए है जबकि ‘ओ’ ग्रुप वाले 41 प्रतिशत लोग हैं.
क्या ‘ओ’ वाले कोरोना से सुरक्षित हैं
अब तक सामने आए मामलों को देखकर कहा जा सकता है कि ओ वाले काफी खुशकिस्मत हैं. ऐसा नहीं है कि वे कोरोना पॉजिटिव नहीं होंगे लेकिन स्टडी से पता चलता है कि संक्रमण होने के बावजूद उनमें इसके गंभीर लक्षण नहीं दिखे. ओ ग्रुप वाले यूनिवर्सल डोनर भी होते हैं यानि जरूरत पड़ने पर उनका खून किसी को भी चढ़ाया जा सकता है.
‘बी’ और ‘एबी’ को कितना खतरा
इन दोनों ब्लड ग्रुप के लोग अपेक्षाकृत कम ही होते हैं. इनमें कोरोना होने पर हालत गंभीर होने का खतरा भी मध्यम रेंज में ही होता है. मलेरिया जैसी बीमारी का भी ब्लड ग्रुप के साथ संबंध स्थापित किया जा चुका है. कोरोना की ही तरह ‘ओ’ वालों को मलेरिया से बहुत खतरा नहीं होता. ‘ए’ ग्रुप वालों को प्लेग का खतरा भी कम होता है.
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