कोयला बंद करे भारत तो 50 लाख नौकरियां जाएंगी
२४ मार्च २०२३भारत अगर कल से ही कोयले का इस्तेमाल बंद कर दे तो उसके यहां 50 लाख लोग बेरोजगार हो जाएंगे. लेकिन अगले 30 साल में अगर भारत 900 अरब डॉलर यानी करीब 740 खरब रुपये खर्च करे तो किसी की नौकरी नहीं जाएगी और भारत कार्बन उत्सर्जन मुक्त स्वच्छ ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकेगा. यह अनुमान दिल्ली स्थित थिंक टैंक इंटरनेशनल फोरम फॉर एनवायर्नमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी (आईफॉरेस्ट) ने जारी किया है.
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भारत की अक्षय ऊर्जा तक की यात्रा के बारे में आईफॉरेस्ट ने दो विस्तृत रिपोर्ट जारी की हैं. इन रिपोर्टों में बताया गया है कि भारत किस तरह कोयले और अन्य जीवाश्म ईंधनों से पूरी तरह मुक्ति पा सकता है. रिपोर्ट यह भी बताती है कि स्वच्छ ऊर्जा की ओर जाने का वह कौन सा रास्ता हो सकता है जिससे कोयले और अन्य उद्योगों में लगे लोगों की नौकरी भी ना जाए और जलवायु सुरक्षा का लक्ष्य भी पूरा हो.
कैसे हुआ अध्ययन?
हाल के सालों में विश्लेषकों ने इस बात पर गहन अध्ययन किए हैं कि अक्षय ऊर्जा की ओर स्थानांतरण कैसे नुकसान रहित बनाया जा सकता है ताकि उन लोगों का नुकसान ना हो, जो अपनी आजीविका के लिए जीवाश्म ईंधनों पर निर्भर हैं.
आईफॉरेस्ट के प्रमुख चंद्र भूषण ने कहा, "न्यायपूर्ण स्थानांतरण को भारत द्वारा एक ऐसे मौके के तौर पर देखा जाना चाहिए जिसके जरिए जीवाश्म ईंधनों पर निर्भर जिलों और राज्यों को हरित विकास में मदद की जा सकती है."
आईफॉरेस्ट के मुताबिक इस पूरी कवायद के लिए भारत को 900 अरब डॉलर खर्च करने होंगे. इस आंकड़े तक पहुंचने के लिए संस्था ने कोयला-केंद्रित चार भारतीय जिलों में अध्ययन किया और आठ तरह की लागतों को ध्यान में रखा, मसलन नया ढांचा तैयार करना होगा और कामगारों को स्थानांतरण के लिए तैयार करना होगा.
नए ढांचे में निवेश की जरूरत
सबसे बड़ा निवेश स्वच्छ ऊर्जा पैदा करने वाले ढांचे के विकास में होगा. रिपोर्ट का अनुमान है कि 2050 तक इसके लिए 472 अरब रुपये खर्च करने होंगे. लोगों को स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्रों में नौकरी उपलब्ध कराने का खर्च कुल खर्च का मात्र दस फीसदी यानी करीब नौ अरब डॉलर होगा.
मृत खदानों को नया प्राकृतिक जीवन देने की कोशिश
रिपोर्ट के मुताबिक 900 अरब डॉलर में से 600 अरब डॉलर तो नए उद्योगों और ढांचागत विकास में निवेश के तौर पर खर्च होंगे जबकि 300 अरब डॉलर प्रभावित समुदायों की मदद में खर्च करने होंगे.
अमेरिका के वॉशिंगटन में स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर स्ट्रैटिजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज में सीनियर एसोसिएट संदीप राय कहते हैं कि इस पूरे हस्तांतरण का आकार तो विशालकाय है. उन्होंने कहा, "अगर संगठित और असंगठित क्षेत्रों के कामगारों को शामिल किया जाए तो हम एक ऐसे उद्योग की बात कर रहे हैं जिस पर डेढ़ से दो करोड़ लोगों की जिंदगी टिकी है. ऐसी रिपोर्ट बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि भारत में अभी स्वच्छ ऊर्जा की ओर जाने की बात बस शुरू हुई है.”
भारत की राह लंबी है
भारत कार्बन उत्सर्जन करने वाले सबसे बड़े देशों में से एक है. चीन, अमेरिका और पूरे यूरोपीय संघ के बाद भारत ही सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करता है. अपनी बिजली जरूरतों का 75 फीसदी हिस्सा वह कोयले से पूरा करता है जबकि कुल ऊर्जा जरूरतों का 55 फीसदी आज भी कोयले से आता है.
इसी महीने की शुरुआत में भारत सरकार ने आपातकालीन आदेश जारी कर कोयला संयंत्रों को पूरी क्षमता से बिजली पैदा करने को कहा था ताकि गर्मियों के दौरान बिजली की किल्लत ना हो. एक सरकारी अनुमान के मुताबिक 2035 से 2040 के बीच भारत में कोयले का इस्तेमाल अपने सर्वोच्च स्तर पर पहुंच जाएगा.
2021 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 2070 तक भारत कार्बन न्यूट्रल होना चाहता है. यानी तब भारत ग्रीन हाउस गैसों का उतना ही उत्सर्जन करेगा जितनी कुदरती और अन्य तरीकों से सोखी जा सकें. 20 मार्च को संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने सभी सरकारों से कहा था कि कार्बन न्यूट्रल होने की रफ्तार तेज करें. उन्होंने विकसित देशों से 2050 तक इस लक्ष्य को हासिल करने का विशेष अनुरोध किया था.
वीके/एए (एपी)