इन देशों ने की है नोटबंदी
भारत समेत कई देश नोटबंदी का तरीका आजमा चुके हैं. कहीं इसने काम किया, तो कहीं नहीं भी. जानिए कहां कहां हुआ ऐसा.
वेनेजुएला (2018)
देश की मुद्रा से तीन शून्य हटाने का फैसला लिया गया है. इससे पहले 2008 में भी ऐसा किया जा चुका है लेकिन तब भी अर्थव्यवस्था को कोई फायदा नहीं हुआ था. वेनेजुएला में सबसे बड़ा नोट एक लाख बोलिवर का होता है, जो अब 100 के नोट में तब्दील हो जाएगा. एक किलो चीनी ढाई लाख बोलिवर की मिलती है, जिसकी कीमत अब ढाई सौ हो जाएगी.
भारत (2016)
देश में झटपट हुई नोटबंदी सफल रही या विफल, इस पर मतभेद हैं. कई रिपोर्टें इसे गैरजरूरी कदम बताती हैं, तो सरकार काले धन को खत्म करने पर अपनी पीठ थपथपाती दिखती है. अचानक ही लिए इस कदम से नागरिकों को मुश्किलें तो हुई ही.
पाकिस्तान (2016)
भारत से एक साल पहले पड़ोसी देश पाकिस्तान ने भी नोट बदले. हालांकि यहां भारत जैसा असमंजस का माहौल नहीं दिखा. 10,50,100 और 1,000 के पुराने नोटों की जगह नए नोट बाजार में आए. 18 महीने पहले इसकी तैयारी शुरू हुई और नागरिकों को नोट बदलने के लिए अच्छा खासा वक्त दिया गया.
जिम्बाब्वे (2015)
आपको जान कर हैरानी होगी कि जिम्बाब्वे का सबसे बड़ा नोट एक लाख अरब का हुआ करता था. 2015 में पुरानी मुद्रा को हटा दिया गया और उसकी जगह अमेरिकी डॉलर ने ले ली. इस बदलाव में कुल तीन महीने का वक्त लगा.
उत्तर कोरिया (2010)
देश के तत्कालीन नेता किम जोंग इल ने इस उम्मीद में मुद्रा के दो शून्य हटा दिए कि अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा. लेकिन देश पर उल्टा ही असर देखने को मिला. महंगाई और बढ़ गई, देश में खाने के सामान की भी किल्लत पैदा हो गई.
यूरो जोन (2002)
यहां केवल नोट ही नहीं, पूरी मुद्रा ही बदल गई. यूरो जोन ने 1 जनवरी 2002 से यूरो को लागू किया. यह एक बेहतरीन उदाहरण है कि मुद्रा के साथ बदलाव में किस तरह की तैयारियों की जरूरत पड़ती है. चार साल पहले ही नोटों की छपाई शुरू हो गई थी, यूरोपीय सेंट्रक बैंक ने तीन साल पहले से अपने सिस्टम में बदलाव लाना शुरू कर दिया था.
ऑस्ट्रेलिया (1996)
काले धन से निपटने के लिए ऑस्ट्रेलिया ने 1996 में कागज के नोट हटा कर प्लास्टिक के नोट जारी किए. 1992 में ऑस्ट्रेलिया पहली बार प्लास्टिक के नोट बाजार में लाकर उन्हें टेस्ट कर चुका था. देश की अर्थव्यवस्था पर इस कदम का अच्छा असर देखने को मिला.
सोवियत संघ (1991)
मिखाइल गोर्बाचोव के नितृत्व में सरकार ने 50 और 100 के नोटों को बंद करने का फैसला किया. दिक्कत यह थी कि ये सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले नोट थे और बाजार में मौजूद कुल मुद्रा का एक तिहाई हिस्सा इन्हीं का था. इसके बाद अर्थव्यवस्था ऐसी चरमराई कि लोगों का सरकार पर से भरोसा ही उठ गया. कुछ इतिहासकार इसे सोवियत संघ के विघटन की एक बड़ी वजह भी मानते हैं.
म्यांमार (1987)
काले धन पर काबू पाने के लिए 1987 में म्यांमार की सेना ने देश की 80 फीसदी मुद्रा को अवैध घोषित कर दिया. इस कदम का असर यह हुआ कि देश ने पहला बड़ा स्टूडेंट आंदोलन देखा. देश में हिंसा भड़की जिसमें हजारों लोगों की जान गई.
नाइजीरिया (1984)
मुहम्मदू बुहारी के नेतृत्व में सैन्य सरकार ने नए नोट जारी किए. उद्देश्य था कर्ज में डूबे हुए देश को एक बार फिर ऊपर उठाना. लेकिन बुहारी को मुंह की खानी पड़ी. अगले ही साल जनता ने उनका तख्ता पलट कर दिया.
घाना (1982)
यह भी नोटबंदी का एक विफल प्रयास था. लोगों को नोट बदलवाने के लिए गांवों से चल कर शहर तक आना पड़ता था. समय सीमा खत्म हो जाने के बाद पुराने नोटों को अवैध घोषित कर दिया गया, जबकि बहुत से लोग उन्हें बदलवा नहीं पाए थे.
ब्रिटेन (1971)
इस साल ब्रिटेन ने डेसिमल सिस्टम अपनाया. पहले 12 पेनी की एक शिलिंग और 20 शिलिंग का एक पाउंड होता था. इस बदलाव के बाद से 100 पेनी का एक पाउंड स्टर्लिंग बना.
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