परमाणु बिजली का कोई भविष्य है या नहीं?
भारत समेत दुनिया के कई देश परमाणु बिजली के जरिये अपनी ऊर्जा की भूख को शांत करने में लगे हैं. लेकिन चेर्नोबिल और फुकुशिमा जैसी त्रासदियां गवाह हैं कि बिजली बनाने का यह तरीका कितना खतरनाक है.
खतरनाक संकट
दुनिया की सबसे बड़ी परमाणु त्रासदी यूक्रेन के चेर्नोबिल में घटी थी, जब एक धमाके के बाद वातावरण में बड़ी मात्रा में विकिरण फैल गया. प्लांट के आसपास यूक्रेन, बेलारूस और रूस के इलाकों की आबोहवा बुरी तरह दूषित हो गई, जबकि इसका असर पूरे यूरोप में महसूस किया गया. प्लांट के आसपास के एक बड़े इलाके में आज भी लोगों को रहने की अनुमति नहीं है.
फिर एक बार संकट
मार्च 2011 में रिक्टर पैमाने पर 9 तीव्रता वाले भूकंप और फिर सुनामी के बाद जापान के फुकुशिमा पावर प्लांट के तीन रिक्टर पिघलने लगे. चार हाइड्रोजन धमाके भी हुए. इसके चलते इतना रेडियोधर्मी विकिरण फैला कि वह हिरोशिमा में 1945 में गिराए गए परमाणु बम से हुए विकिरण का 500 गुना था. इसकी सफाई में दशकों का समय लगेगा.
सेहत पर मार
चेर्नोबिल के बाद हजारों लोगों को कैंसर की बीमारी हो गई. फुकुशिमा में भी प्लांट के आसपास रहने वाले दो लाख लोगों को अपने घर गंवाने पड़े. उनमें भी कैंसर के मामले बढ़ गए. वहां बच्चों में थायराइड कैंसर के मामले दूसरे इलाकों की तुलना में 20 गुना ज्यादा हैं.
परमाणु बिजली का विरोध
चेर्नोबिल हादसे ने परमाणु बिजली के खिलाफ जनमत तैयार किया, खास तौर से यूरोप में. फुकुशिमा के बाद जापान में भी ऐसा ही हुआ. हादसे से पहले जापान की जरूरत की 30 प्रतिशत बिजली परमाणु प्लांटों से मिलती थी, जो बाद में घटकर एक प्रतिशत पर आ गई. सरकार फिर परमाणु पावर प्लांट चलाना चाहती है, लेकिन बहुत से लोग इसके विरोध में हैं.
संकट में परमाणु उद्योग
भारी विरोध के चलते आजकल परमाणु बिजली उद्योग भारी संकट का सामना कर रहा है. जापान, अमेरिका और फ्रांस में परमाणु बिजली संयंत्र घाटे में चल रहे हैं. ऐसे में, नये रिएक्टर बनाने की योजनाओं को टाला जा रहा है.
लटकती परियोजनाएं
फ्रांस को अपने नए न्यूक्लिटर रिएक्टरों से बड़ी उम्मीद थी जिन्हें प्रेशराइज्ड वाटर रिएक्टर (पीडब्ल्यूआर) कहा जाता है. इस टेक्नोलजी को सुरक्षित माना गया. फ्लामनविले के प्लांट को 2012 में शुरू होना था, लेकिन सुरक्षा के जुड़े मुद्दों के कारण अब यह 2018 से पहले शुरू नहीं हो पाएगा. इस पर 10 अरब यूरो का खर्च आएगा.
ब्रिटेन का इरादा
ब्रिटेन छह साल से पीडब्ल्यूआर रिएक्टर बनाने की योजना पर काम कर रहा है. इस पर 33 अरब यूरो का खर्च आएगा और इसे 2019 से शुरू किया जाना है. लेकिन इस बात को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि क्या इसे बनाना आर्थिक रूप से वाजिब है. इससे बनने वाली बिजली सोलर और विंड पावर से मिलने वाली बिजली से कहीं महंगी होगी.
बूढ़े होते रिएक्टर
परमाणु बिजली संयंत्र कभी बड़े आकर्षक समझे जाते थे. लेकिन अब उनमें से ज्यादातर पुराने पड़ गए और खस्ताहाल हैं. उनकी मरम्मत बहुत महंगा सौदा है. स्विस ऊर्जा निगम एलपिक ने हाल में अपने दो पुराने संयंत्र एक फ्रांसीसी ऊर्जा कंपनी को बेचने का फैसला किया, लेकिन कंपनी ने उन्हें लेने से इनकार कर दिया.
जर्मनी में जागरुकता
तीन दशक पहले चेर्नोबिल में हुए हादसे का असर यह हुआ कि जर्मनी में परमाणु बिजली के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया. जर्मनी में 2002 में एक कानून पास हुआ जिसके मुताबिक देश में 2022 में आखिरी परमाणु रिएक्टर को बंद कर दिया जाएगा. हालांकि मैर्केल की सरकार ने इस कानून को पलट दिया था, लेकिन फुकुशिमा हादसे के बाद उन्हें कदम पीछे हटाने पड़े.
बड़ी लागत
अब तक जर्मनी में नौ रिएक्टर बंद हो चुके हैं और बाकी बचे आठ रिएक्टर 2022 तक बंद कर दिए जाएंगे. रिएक्टरों से निकलने वाले कचरे के निपटारे के लिए उन्हें चलाने वाली कंपनियां संघीय सरकार को 23.6 अरब यूरो की रकम देंगी. प्लांट को डिस्मेंटल करने पर इन कंपनियों को इतनी ही रकम और खर्च करनी होगी.
हादसों का डर
यूरोपीय संघ और स्विट्जरलैंड में अभी कुल मिलाकर 132 परमाणु रिएक्टर काम कर रहे हैं. इन रिएक्टरों को 30-35 साल तक चलने के लिए डिजाइन किया गया था. लेकिन इन सभी रिएक्टरों की औसत आयु 32 साल हो गई है. अकसर उनमें गड़बड़ियां और सुरक्षा जुड़ी समस्याएं सामने आती हैं. इसलिए उन्हें बंद करने की मांगें लगातार उठ रही हैं.
चीन की दिलचस्पी
फुकुशिमा हादसे के बाद यूरोपीय संघ, जापान या रूस में कोई नया परमाणु बिजली संयंत्र नहीं बना है. लेकिन परमाणु बिजली में चीन की दिलचस्पी लगातार बनी हुई है. वह कोयले से बनने वाली बिजली पर निर्भरता कम करना चाहता है. लेकिन उसने विंड और सोलर पावर में भी निवेश बढ़ाया है.
कहां खडा है भारत
परमाणु प्लांट भारत में बिजली का चौथा सबसे बड़ा स्रोत हैं. उसने अमेरिका, रूस, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन जैसे कई देशों से परमाणु करार किए हैं. भारत में इस समय सात परमाणु पावर प्लांटों में 21 रिएक्टर काम कर रहे हैं जबकि छह और रिएक्टर बनाने पर काम चल रहा है. (रिपोर्ट: गेरो रॉयटर/एके)