मिस्र में डिजिटल तरीके से हटाई गईं फैरो की पट्टियां
२९ दिसम्बर २०२१फैरो आमेनहोतेप प्रथम की ममी की खोज 1881 में हुई थी और यह पहली बार है जब उसके रहस्य खुले हैं. काफी विकसित थ्रीडी इमेजरी तकनीक की मदद से शोधकर्ताओं ने ममी बनाने की उन नई तकनीकों का पता लगाया जिनका इस्तेमाल फैरो के लिए किया गया था.
आमेनहोतेप प्रथम 1500 साल ईसापूर्व से भी पहले मिस्र पर राज किया करते थे. इस शोध का नेतृत्व किया काहिरा विश्वविद्यालय में रेडियोलोजी के प्रोफेसर सहर सलीम और जाने माने मिस्र विशेषज्ञ जाहि हवास ने. हवास मिस्र के प्राचीन कालीन वस्तुओं के मंत्री भी रह चुके हैं.
विकसित तकनीक की मदद
इसी मंत्रालय ने एक बयान में बताया, "सलीम और हवास ने विकसित एक्स-रे तकनीक, सीटी स्कैनिंग और विकसित कंप्यूटर सॉफ्टवेयर कार्यक्रमों का इस्तेमाल कर" ममी को डिजिटल तरीके से खोला. मंत्रालय ने यह भी कहा कि यह सब एक "सुरक्षित, गैर आक्रामक तरीके से किया गया जिसमें ममी को छूने की जरूरत ही नहीं पड़ी."
बयान में यह भी बताया गया कि इस अध्ययन में पहली बार फैरो के "चेहरे, उम्र और स्वास्थ्य" के बारे में पता चला. इसके अलावा इस ममी को बनाने के "अनूठे तरीके और उसे फिर से दफनाने के कई रहस्यों पर से भी पर्दा हटा."
विश्लेषण से पता चला कि आमेनहोतेप प्रथम पहले ऐसे फैरो थे जिन्हें उनकी बाजुओं को मोड़ कर ममी बनाया गया था. इसके अलावा वो आखिरी ऐसे फैरो थे जिनके दिमाग को सिर में से निकला नहीं गया था.
टोमोग्राफी स्कैन में पता चला कि 21 साल के अपने शासन में कई सैन्य अभियान करने वाले इस फैरो की मौत 35 साल में ही हो गई थी. कारण या कोई चोट थी या बीमारी.
दक्षिणी मिस्र के लक्सर में मिली यह ममी एकलौती ऐसी ममी है जिसकी कासी हुई पत्तियों को पुरातत्वविदों ने नहीं हटाया. वो चाहते थे कि इस ममी के मास्क और उसके इर्द गिर्द बालों की तरह फैली फूलों की मालाओं को सुरक्षित रखा जाए.
सलीम ने बताया कि इसी तरीके से 2012 में "हैरम षड़यंत्र" सामने आया था, जिसके तहत रामसेस तृतीय का गाला काट दिया गया था. वो एक पत्नी के द्वारा रचा हुआ षड़यंत्र था को एक प्रतिद्वंदी के पहले बच्चे की जगह अपने बेटे को राजगद्दी पर देखना चाहती थी.
सीके/एए (एएफपी)