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कंपनी के बोर्ड में महिलाओं के लिए 40 फीसदी कोटा तय

८ जून २०२२

यूरोपीय संघ के सभी देशों में लिस्टेड कंपनियों के बोर्ड में महिलाओं के लिए 40 फीसदी का न्यूनतम कोटा रखने पर सहमति बन गई है. इसका मकसद बड़ी कंपनियों में वरिष्ठ स्तर पर जल्द से जल्द लैंगिक बराबरी हासिल करना है.

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Frauenquote I Boys Clubs und Equal Pay
देखा गया है कि न्यूनतम कोटा तय करने से लैंगिक बराबरी के लक्ष्य तक तेजी से पहुंचने में मदद मिलती हैतस्वीर: Robert Schlesinger/picture alliance

ताजा समझौते के अनुसार ईयू के 27 देशों के शेयर बाजार में लिस्टेड कंपनियों के बोर्ड की नॉन-एक्जीक्यूटिव सीटों में कम से कम 40 फीसदी महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी. इसके अलावा, एक्जीक्यूटिव और नॉन-एक्जीक्यूटिव मिलाकर भी कम से कम 33 फीसदी सीटों का कोटा महिलाओं के लिए रखने पर सहमति बन गई है.

यूरोप आधारित कंपनियों के पास इस कोटा को लागू करने के लिए 2026 के मध्य तक का समय होगा. इस ऐतिहासिक डील पर प्रतिक्रिया देते हुए यूरोपीय संसद में ऑस्ट्रिया की सदस्य एवलिन रेगनर ने ट्वीट कर लिखा, "इस नई शर्त से ईयू में लैंगिक बराबरी की प्रक्रिया जरूर तेज होगी और सबके लिए बराबर मौके बढ़ेंगे." अगला कदम यूरोपीय संसद और यूरोपीय संघ के 27 सदस्य देशों का इस समझौते को आधिकारिक रूप से स्वीकार करना होगा, जिसके बाद से पूरे ईयू में यह कोटा लागू हो जाएगा.

नए कानून का मकसद बोर्ड में भर्ती को प्रक्रिया में ज्यादा पारदर्शिता लाना और इसके लिए कंपनियों के सामने साफ लक्ष्य रखना है. जहां भी एक पद के लिए एक जैसी योग्यता वाले कई उम्मीदवार होंगे, वहां कम प्रतिनिधित्व वाले जेंडर के उम्मीदवार को वरीयता मिलनी चाहिए.

Symbolbild Frauenquote
आर्थिक रूप से विकसित यूरोपीय देशों में भी लैंगिक बराबरी के मामले में विकास की काफी गुंजाइश बाकी है तस्वीर: Westend61/imago images

एक दशक पहले यूरोपीय परिषद का लाया गया यह प्रस्ताव तब से अटका हुआ था. इसी साल जर्मनी और फ्रांस के समर्थन के कारण इसमें नई जान आ गई. हाल के सालों में जर्मनी समेत यूरोप के नौ देशों ने महिला बोर्ड मेंबरों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अपना-अपना न्यूनतम कोटा तय किया है. अब ईयू के स्तर पर सहमति बनने के बाद यूरोपीय परिषद की अध्यक्ष उर्सुला फॉन डेय लायन ने ट्विटर पर लिखा, "यूरोप में महिलाओं के लिए यह एक महान दिन है. यह कंपनियों के लिए भी एक बड़ा दिन है."

यूरोपीय संसद की ओर से इस मामले में मुख्य वार्ताकार रहीं डच समाजवादी लारा वोल्टर्स ने रॉयटर्स से बातचीत में कहा, "आखिरकार हम स्लीपिंग ब्यूटी को अपने किस से जगा पाए हैं."

मौजूदा स्थिति

करीब 45 करोड़ की आबादी वाले यूरोपीय ब्लॉक के अलग-अलग देशों की कंपनियों के बोर्ड में महिलाओं की हिस्सेदारी में बहुत अंतर है. यूरोपीय संसद ने बताया कि जहां साइप्रस जैसे देश में केवल 8.5 फीसदी नॉन-एक्जीक्यूटिव सीटों पर महिलाएं हैं, वहीं फ्रांस जैसे देश में 45 फीसदी से भी ज्यादा पर. फ्रांस ने तो अपने लिए पहले से एक कानूनी लक्ष्य तय किया हुआ है, जो कि 40 फीसदी का है. पूरे ईयू में फ्रांस ही ऐसा एकलौता देश है, जो अपने तय न्यूनतम लक्ष्य के भी आगे निकल गया.

यूरोपियन इंस्टीट्यूट फॉर जेंडर इक्वॉलिटी (EIGE) ने 2021 में बताया था कि कुछ देशों में बाध्यकारी कोटा सिस्टम होना इसके ना होने के मुकाबले कहीं ज्यादा प्रभावी साबित हुआ है. एजेंसी का कहना है कि इससे बोर्ड में संतुलन बनाने में काफी मदद मिलती है. सन 2010 में फ्रांस, जर्मनी और इटली जैसे देशों में इसे लेकर राष्ट्रीय नीतियां आने के बाद से बोर्ड में महिलाओं का प्रतिनिधित्व जरूर बढ़ा, लेकिन फिर वह एक स्तर पर थम सा गया. इस समय ईयू की सबसे बड़ी लिस्टेड कंपनियों की नॉन-एक्जीक्यूटिव सीटों में से एक तिहाई से भी कम पर महिलाएं हैं.

आशा है कि मंगलवार शाम को होने वाली वार्ता इस दौर की आखिरी बैठक होगी. इसमें यूरोपीय संसद के साथ यूरोपीय संघ के 27 देशों के प्रतिनिधि मिल कर एक निर्णय पर पहुंचेंगे. इस बार डील को लेकर काफी आशान्वित महसूस कर रही मुक्य वार्ताकार वोल्टर्स ने बताया कि यूरोपीय संसद कोटा के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए 2025 तक का समय तय करवाना चाहती है, जबकि पहले इसे 2027 तक हासिल करने का प्रस्ताव था.

लक्ष्य हासिल ना करने पर क्या होगा?

इस बात पर भी सबकी नजर है कि इन लक्ष्यों को समय रहते पूरा ना कर पाने पर कैसी कार्रवाई होगी. इस पर अभी भी चर्चा चल रही है और कोई एकमत नहीं बना है. इस पर वोल्टर्स का कहना है कि किसी को लक्ष्य ना हासिल करने के लिए "नाम लेकर शर्मिंदा करने" के प्रयासों के चलते कई बार एक समझौता होते-होते रह जाता है. उनके हिसाब से यह समझौता एक ऐतिहासिक कदम होना चाहिए, जिसे आगे चल कर उन बड़ी कंपनियों में भी लागू किया जाए जो लिस्टेड नहीं हैं. वोल्टर्स कहती हैं कि यूरोपियन सेंट्रल बैंक जैसे ईयू के अपने संस्थानों में भी भविष्य में इसे लागू किया जाना चाहिए, "दरवाजे के अंदर यह पहला कदम होगा और उसके बाद तो चलते ही जाना है."

एडिटर, डीडब्ल्यू हिन्दी
ऋतिका पाण्डेय एडिटर, डॉयचे वेले हिन्दी. साप्ताहिक टीवी शो 'मंथन' की होस्ट.@RitikaPandey_