पर्यावरणीय न्याय पर अपील करेगा यूरोपीय संघ
२१ मई २०२१यूरोपीय संसद ने एक रिपोर्ट पारित की है जिसमें संयुक्त राष्ट्र से पर्यावरणीय न्याय पर वैश्विक कानूनी खांचा तैयार किए जाने की अपील की गई है. इस रिपोर्ट में यूरोपीय संघ से भी मानवाधिकारों और जलवायु परिवर्तन के आपसी संबंधों को अपनी नीतियों में रोपने का अनुरोध किया गया है. जैसे कि ऐसे देशों की एक सूची बनाने की बात की गई है जिनेक लिए यूरोप को पर्यावरण की सुरक्षा में लगे कार्यकर्ताओं और आदिवासियों की मदद बढ़ानी चाहिए.
इस रिपोर्ट का मसौदा तैयार करने वालीं स्पेन की सांसद मारिया सोराया रोड्रीगेज रामोस ने कहा, "मानवाधिकारों के पर्यावरण परिवर्तन से संबंध की जहां तक बात है तो हम चाहते हैं कि एक बड़ा कदम उठाया जाए."
विकासशील देशों पर जलवायु परिवर्तन के असर खारिज
यूरोपीय संसद ने एक अन्य रिपोर्ट को खारिज कर दिया है जिसमें विकसित देशों पर जलवायु परिवर्तन के असर की बात की गई है और यूरोपीय संघ से ऐसे देशों की आर्थिक मदद की अपील की गई है. विकसित देशों की जलवायु परिवर्तन से लड़ने में आर्थिक मदद के मामले में यूरोपीय संघ और इसके सदस्य देश सबसे ऊपर हैं. हालांकि सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं पर सहयोग बढ़ाने का दबाव है ताकि विकसाशील देशों में उत्सर्जन को तेजी से रोका जा सके.
लेकिन मदद बढ़ाने की अपील को यूरोपीय संसद ने थोड़े से बहुमत से खारिज कर दिया. इसके पक्ष में 255 मत पड़े जबकि 260 सदस्यों ने मदद बढ़ाने के विरोध में वोट डाला. 170 सांसद गैरहाजिर रहे. ग्रीन पार्टी के सौ से ज्यादा सदस्य गैरहाजिर रहे क्योंकि रिपोर्ट में से एक हिस्सा हटा दिया गया था. इस हिस्से में कहा गया था कि यूरोपीय संघ को जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले माइग्रेशन को शरण देने का एक आधार मानना चाहे. इस हिस्से को दक्षिणपंथी झुकाव वाले ईपीपी समूह ने हटा दिया.
फ्रांस की ग्रीन सांसद कैरोलाइन रूज ने कहा कि इस हिस्से के हटाए जाने के बाद यह रिपोर्ट इतनी कमजोर हो गई है कि इसका समर्थन नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा, "जलवायु परिवर्तन के कारण विस्थापित होने वाले लोगों की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है.”
क्लाइमेट जस्टिस क्या है?
‘पर्यावरणीय न्याय' जलवायु परिवर्तन के विभिन्न देशों पर अलग-अलग मात्रा में हो रहे प्रभावों की असमानता की बात करता है. उदाहरण के लिए जिन देशों और समुदायों का ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ाने में सबसे कम योगदान है, उन पर समुद्र के बढ़ते जल स्तर और भयावह तूफानों की मार सबसे ज्यादा पड़ रही है.
मार्च 2019 में संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण सुरक्षा पर हुई उच्च स्तरीय बैठक के दौरान आयरलैंड की पूर्व राष्ट्रपति मैरी रॉबिन्सन ने समझाया कि क्लाइमेट जस्टिस इस पूरे विमर्श को ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से अलग ले जाकर मानवाधिकार आंदोलन के रूप में पेश करता है और उन सबसे कमजोर लोगों और समुदायों की बात करता है जिन पर जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर हो रहा है. उन्होंने कहा, "हाल ही में युवाओं और स्कूली बच्चों ने जिस तरह पर्यावरण के समर्थन में प्रदर्शन और मार्च किए हैं, उससे हमें समझ आने लगा है कि जलवायु परिवर्तन किस तरह एक पीढ़ी का दूसरे पर अन्याय है. ”
क्लाइमेट जस्टिस की मांग करने वाले कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और बोझ का बंटवारा पीड़ितों के बीच न्यायसंगत होना चाहिए. यानी जो लोग या देश जलवायु परिवर्तन के लिए ज्यादा दोषी हैं, इसके खिलाफ लड़ाई में उनका योगदान भी ज्यादा होना चाहिए.
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)