दिल्ली सेवा बिल: उपराज्यपाल होंगे कितने शक्तिशाली
८ अगस्त २०२३दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन संशोधन विधेयक 2023, दिल्ली सरकार में नौकरशाही पर केंद्र सरकार को नियंत्रण देता है. इस विधेयक के दोनों सदनों से पारित होने के बाद जल्दी ही कानून बन जाने के आसार हैं. इसके लागू होने पर दिल्ली सरकार की शक्तियां काफी हद तक कम हो जाएंगी और दिल्ली के उपराज्यपाल के पास अधिकार ज्यादा हो जाएंगे.
उपराज्यपाल के हाथ में नियंत्रण
अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़े अधिकार दिल्ली के उपराज्यपाल के पास होंगे. दिल्ली में जो भी ग्रेड-ए अधिकारी तैनात होंगे, उन पर दिल्ली सरकार की जगह उपराज्यपाल का नियंत्रण होगा. विधेयक केंद्र दिल्ली में अधिकारियों और कर्मचारियों के कार्यों, नियमों और सेवा की अन्य शर्तों समेत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के मामलों के संबंध में नियम बनाने का अधिकार देता है.
दिल्ली के लिए केंद्र सरकार को अध्यादेश की जरूरत क्यों पड़ी
यह विधेयक उपराज्यपाल को कई अहम मामलों पर अपने विवेक का इस्तेमाल करने का भी अधिकार देता है. विधेयक में अंतिम अधिकार उपराज्यपाल को देने का प्रावधान है. किसी भी मतभेद की स्थिति में उपराज्यपाल का फैसला मान्य होगा. उपराज्यपाल को दिल्ली विधानसभा द्वारा अधिनियमित बोर्डों या आयोगों के प्रमुखों को नियुक्त करने की भी शक्ति होगी.
दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच अधिकारियों के तबादले को लेकर कई बार विवाद हुआ जिसके बाद यह बिल लाया गया था. इस विधेयक के जरिए उपराज्यपाल को अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग जैसे कई मामलों में अधिकार मिलता है.
अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार
कानून बनते ही दिल्ली के उपराज्यपाल के अधिकार बढ़ जाएंगे और दिल्ली सरकार की शक्तियां सीमित हो जाएंगी. दिल्ली के अफसरों की ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़े विषयों पर उपराज्यपाल का अधिकार होगा. अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग से संबंधित मुद्दों पर निर्णय लेने के लिए एक अथॉरिटी बनेगी.
अथॉरिटी में तीन सदस्य होंगे, जिनमें मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और प्रमुख गृह सचिव शामिल होंगे. जिसका मतलब है कि निर्वाचित मुख्यमंत्री के निर्णय को दो वरिष्ठ गैर-निर्वाचित नौकरशाह वीटो या खारिज कर सकते हैं. अथॉरिटी में फैसले बहुमत के आधार पर होंगे और अगर उपराज्यपाल इस अथॉरिटी के फैसले से सहमत नहीं होंगे तो वह इन फैसलों को पुनविर्चार के लिए दोबारा अथॉरिटी के पास भेज देंगे. ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि चुनी हुई सरकार द्वारा लिए गए फैसले को उपराज्यपाल पलट सकते हैं.
आप: भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में काला दिन
विधेयक के पारित होने के बाद राजनीतिक दलों की खींचतान तेज हो गई है. आम आदमी पार्टी (आप) ने इसकी आलोचना करते हुए कहा कि इससे राष्ट्रीय राजधानी में राशन वितरण प्रभावित होगा. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि यह भारत के लोकतंत्र के लिए "काला दिन" है और उन्होंने केंद्र सरकार पर पिछले दरवाजे से सत्ता "हथियाने" की कोशिश करने का आरोप लगाया. केजरीवाल के निशाने पर केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी है.
केजरीवाल ने आरोप लगाया कि यह दिल्ली के लोगों की पीठ में "छुरा घोंपने" जैसा है और कहा कि यह दिल्ली के लोगों के मताधिकार का "अपमान" है. विधेयक पर बहस के दौरान राज्य सभा में केंद्रीय गृह मंत्री और सत्ताधारी दल बीजेपी के नेता अमित शाह ने कहा कि विधेयक का मकसद दिल्ली में भ्रष्टाचार मुक्त शासन देना है. उन्होंने कहा, "बिल आपातकाल लगाने या लोगों के हक छीनने के लिए नहीं लाया गया है. यह दिल्ली के लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए है."
अमित शाह ने कहा कि सर्विसेज या ट्रांसफर पोस्टिंग में 1991 से 2015 तक जो व्यवस्था थी, उसी को बरकार रखा गया है. बहस के दौरान कांग्रेस के सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि विधेयक के जरिए केंद्र सरकार दिल्ली में "सुपर सीएम" बनाने की कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा, "यह दिल्ली के लोगों पर सीधा हमला और संघवाद का उल्लंघन है."
आप के समर्थन में आई कांग्रेस
बहस के दौरान विपक्ष ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार किसी ना किसी तरह से दिल्ली की सत्ता पर काबिज होना चाहती है. कांग्रेस की तरफ से बोलते हुए सिंघवी ने कहा कि दिल्ली के निवार्चित मुख्यमंत्री की भूमिका को कम कर दिया गया है. इस विधेयक के बाद दिल्ली के उपराज्यपाल और केंद्रीय गृह मंत्रालय की भूमिका अहम हो जाएगी और मुख्यमंत्री के पास कोई शक्ति नहीं होगी.
आम आदमी पार्टी के राज्य सभा सदस्य राघव चड्ढा ने कहा कि यह विधेयक अध्यादेश बनाने की शक्तियों का दुरुपयोग है. उन्होंने कहा कि विधेयक एक निर्वाचित सरकार से उसके अधिकार छीन लेता है और इसे उपराज्यपाल के अधीन नौकरशाहों के हाथों में सौंप देता है.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था
11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को राहत देते हुए फैसला दिया था कि पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और जमीन को छोड़कर बाकी सभी सेवाएं दिल्ली सरकार के नियंत्रण में होगी. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि इन सेवाओं पर दिल्ली सरकार का विधायी और प्रशासकीय नियंत्रण होगा यानी अफसरों के तबादले और पोस्टिंग सरकार के हाथ में होगी.
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों की बेंच ने कहा था दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है लेकिन अनुच्छेद 239 एए के तहत उसे विशेष दर्जा मिला हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा था अफसरों पर चुनी हुई सरकार का ही नियंत्रण होना चाहिए. नहीं तो प्रशासन की सामूहिक जिम्मेदारी प्रभावित होगी.
लेकिन कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र सरकार दिल्ली पर अध्यादेश लेकर आई थी और अध्यादेश में कहा गया कि अफसरों की ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़ा अंतिम निर्णय लेने का हक उपराज्यपाल को वापस दे दिया गया. मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.