चीन की पांडा-डिप्लोमेसी
चीन के प्रधानमंत्री ली चियांग ऑस्ट्रेलिया गए तो उन्होंने पांडा भेजने का वादा किया. मूल रूप से चीन में पाए जाने वाले पांडा उसके के लिए कूटनीति का एक औजार रहे हैं. देखिए, कैसे काम करती है चीन की पांडा-कूटनीति.
क्या है चीन की पांडा डिप्लोमेसी?
पांडा भालू चीन में ही पाए जाते हैं. अक्सर चीन इन्हें विदेशों को तोहफे में देता है. इसे चीन की तरफ से दोस्ती का हाथ बढ़ाने के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है.
कब शुरू हुई यह कूटनीति?
1949 में पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना के बाद से ही चीन ने पांडा कूटनीति का इस्तेमाल किया है. 1957 में चीनी नेता माओ त्से तुंग ने सोवियत संघ की 40वीं वर्षगांठ पर पांडा भेंट किए थे. 1972 में जब अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन चीन की ऐतिहासिक यात्रा पर गए थे, तो उन्हें भी पांडा भेंट किए गए.
अब उपहार नहीं
1984 के बाद चीन ने पांडा उपहार में देना बंद कर दिया क्योंकि उनकी आबादी घट रही थी. अब ये विदेशी चिड़ियाघरों को उधार पर दिए जाते हैं. अक्सर यह उधार 10 साल के लिए होता है और एक जोड़ा पांडा एक साल रखने के लिए चीन 10 लाख डॉलर तक लेता है.
खुश करने के लिए
2013 में ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी ने एक अध्ययन में कहा था कि चीन पांडा कूटनीति का इस्तेमाल व्यापारिक साझीदारों को खुश करने के लिए करता है. जैसे कि कनाडा, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया को जब पांडा उपहार में दिए गए तो उस वक्त उन देशों से चीन ने यूरेनियम को लेकर समझौता किया था.
नाराजगी जाहिर करने के लिए
2010 में चीन ने अमेरिका में जन्मे दो पांडा, ताई शान और माई लान को वापस बुला लिया. उसके बाद उसने तत्कालीन अमरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की तिब्बत के नेता दलाई लामा के साथ मुलाकात पर आपत्ति जताई.
बढ़ रही है आबादी
एक वक्त चीन में पांडा की प्रजाति खतरे में पड़ गई थी. लेकिन पिछले सालों में उनकी संख्या में वृद्धि हुई है. 1980 के दशक में वहां 1,100 पांडा थे जो 2023 में बढ़कर 1,900 हो गए. अन्य देशों में फिलहाल 728 पांडा हैं.