भारत-चीन विवाद के कुछ तथ्य
भारत और चीन के सैनिक एक बार फिर झगड़ पड़े. दोनों पक्षों के बीच अरुणाचल सीमा पर उस इलाके में हाथापाई हुई, जिसे दोनों अपना बताते हैं. इस पूरे विवाद से जुड़े कुछ तथ्य...
3,500 किलोमीटर
चीन और भारत दोनों की सेनाएं हिमालय में कई चौकियों पर आमने-सामने रहती हैं. कई जगह तो यह दूरी कुछ सौ मीटर की है. दोनों देशों के बीच 3,500 किलोमीटर लंबी सीमा है जिसे लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल कहा जाता है.
कोई सीमा नहीं
भारत-चीन सीमा को कभी आधिकारिक रूप से चिह्नित नहीं किया गया. भारत की आजादी के बाद ऐसा होना था लेकिन दोनों पक्ष इस पर सहमत नहीं हुए और यह सीमा आज भी विवादित है.
1962 का युद्ध
सीमा विवाद के चलते 1962 में दोनों देश एक युद्ध लड़ चुके हैं. ऐसा तब हुआ जब भारत ने दावा किया कि चीन ने अक्साई चीन इलाके में उसका 38 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र कब्जा लिया है. युद्ध मुख्यतया उसी इलाके में हुआ था.
बातचीत हुई, लेकिन हल नहीं निकला
उस युद्ध के बाद कई साल तक सीमा पर लगभग शांत बनी रही. दोनों देशों के बीच सीमा विवाद सुलझाने के लिए कुछ बैठकें भी हुईं. 2003 में सीमा विवाद हल करने के लिए दूत नियुक्त किए गए, लेकिन आज तक कोई हल नहीं निकला.
गलवान की झड़प
2020 में दोनों देशों के सैनिकों के बीच गलवान में हाथापाई हुई. भारत के बीस और चीन के कई सैनिकों की जान चली गई. 1962 के युद्ध के बाद यह सबसे बड़ी हिंसा थी. तब से भारत-चीन संबंध लगातार तनाव में हैं.
अरुणाचल विवाद
चीन अरुणाचल प्रदेश को 'दक्षिणी तिब्बत का इलाका' कहता आया है और भारतीय नेताओं के वहां जाने पर आपत्ति जताता है. चीन ने 2009 में पीएम मनमोहन सिंह और 2014 में पीएम मोदी के दौरे पर आपत्ति जताई थी. 20 जनवरी 1972 को केंद्र शासित प्रदेश अस्तित्व में आया जिसे 1987 को अरुणाचल प्रदेश के रूप में एक अलग राज्य का दर्जा दिया गया.
क्यों चाहिए तवांग
तवांग में एक चार सौ साल पुराना बौद्ध मठ है जिसे चीन के दावे की एक वजह माना जाता है. बौद्ध लोगों के बीच तवांग की मान्यता और प्रतिष्ठा का इस्तेमाल बुद्ध धर्म पर नियंत्रण के रूप में करने की इच्छा इसे चीन के लिए अहम बना देती है.