पेड़ों की छाल से बनाई कलाकृतियां
दक्षिणी फिनलैंड की एक छोटी सी झोपड़ी में 87 साल के अर्की पेकारिनेन के अद्भुत हुनर के कई नमूने हैं. वो भूर्ज पेड़ों की छाल की नाजुक पट्टियों से सुंदर सुंदर चीजें बनाते हैं.
छोटी उम्र से शुरुआत
अर्की पेकारिनेन कहते हैं, "मैंने 10 साल की उम्र में प्रैक्टिस करना शुरू कर दिया था. आप कह सकते हैं कि मैं 77 सालों से भोजपत्र (भूर्ज पेड़ों की छाल) से खेल रहा हूं." असिकला शहर में स्थित उनकी आर्ट गैलरी में अनगिनत समान प्रदर्शनी पर है. हर चीज सिर्फ भोजपत्र की पट्टियों से बनी है जिसे उन्होंने बिना गोंद या कील का इस्तेमाल किए, सिल कर बनाया है.
रचनात्मकता की कोई सीमा नहीं
काले और सफेद रंग के इस पेड़ के शहद के रंग की गत्ते जैसी इस छाल को सही तरीके से प्रोसेस कर बिना मेहनत के काटा और मोड़ा जा सकता है. लकड़ी को आम तौर पर मजबूत और कड़ा पदार्थ माना जाता है, लेकिन पेकारिनेन का मानना है कि सही तकनीक का इस्तेमाल कर भोजपत्र से "जो भी आप कल्पना कर सकते हैं" वो बनाया जा सकता है.
गहने, बैग और खिलौने
पेकारिनेन ने लकड़ी के गहनों और हैंडबैग से लेकर खिलौने वाली बत्तख और बैकपैक तक बनाए हुए हैं. पूर्वी फिनलैंड के लीक्सा कस्बे में पैदा हुए पेकारिनेन कहते हैं कि उन्हें सबसे पहली बार भोजपत्र में दिलचस्पी अपनी जवानी के दिनों में जगी थी, जब वो एक लकड़हारे का काम करते थे.
लकड़हारे से कलाकार
उनकी सर्वोत्तम रचना है एक पूरा सूट, जिसमें एक टोपी, एक ब्रीफकेस और जूते भी हैं. वो जब इस सूट को पहनते हैं तो चरमराहट और सरसराहट की आवाजें आती हैं. लेकिन यह आश्चर्यजनक रूप से लचीला है और पेकारिनेन इसे पहन कर अपनी झोपड़ी में इधर से उधर घूमते हैं.
आसानी से मिल जाता है सामान
पेकारिनेन की कार्यशाला असिकला में है जो दक्षिणी फिनलैंड में लाहटी शहर से करीब 20 किलोमीटर उत्तर की ओर छोटी सी नगरपालिका है. उनके आस पास जंगल ही जंगल हैं, जिसकी वजह से उन्हें अपनी कलाकृतियां बनाने के लिए जरूरी सामान के लिए दूर नहीं जाना पड़ता है.
प्राचीन परंपरा
स्कैंडिनेविया में भोजपत्र के पूरे के पूरे सूट भले ही दुर्लभ रहे हों, लेकिन उसका इस्तेमाल कर रोजमर्रा की चीजें बनाना एक प्राचीन परंपरा का हिस्सा है. भोजपत्र की शुरुआत पाषाण युग में हुई थी, जब इसकी कुछ वैसी ही भूमिका थी जैसी आज के जमाने में प्लास्टिक की है. इससे डब्बों से लेकर खिलौने तक बनाए जाते थे.
भोजपत्र ने फिन्निश भाषा को दिया रूप
भोजपत्र कभी इतना मूल्यवान था कि उसने फिन्निश भाषा को आकार दिया. "भोजपत्र इकट्ठा करना" वाक्यांश का मतलब आज भी "पैसे कमाना" है. पेकारिनेन को उनके दोस्तों और रिश्तेदारों से जो भोजपत्र की सप्लाई मिलती है उससे जो भी उनके दिमाग में आता है, वो बना देते हैं.
बारीकी से प्रेम
इन छोटे से जूतों की तरह पेकारिनेन की हर कलाकृति दिखाती है कि वो अपने काम को कितनी लगन से करते हैं. (यूली हूएनकेन)