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बिहार पुलिस में पहली बार दरोगा पद पर ट्रांसजेंडर की नियुक्ति

मनीष कुमार
११ जुलाई २०२४

बिहार में पहली बार पुलिस सब-इंसपेक्टर के रूप में ट्रांसजेंडर की नियुक्ति हुई है. हाल ही में हुई पुलिस की भर्तियों में तीन ट्रांसजेंडरों को भी सब-इंस्पेक्टर चुना गया है. इनमें एक ट्रांसवूमेन और दो ट्रांसमेन हैं.

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फोन पर बात करतीं बिहार की पहली ट्रांसजेंडर दरोगा मानवी मधु कश्यप
मानवी मधु कश्यप को दरोगा बनने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा लेकिन उन्होंने आखिरकार अपना सपना पूरा कर लिया. तस्वीर: Manish Kumar/DW

बिहार की मानवी मधु कश्यप पहली ट्रांसजेंडर हैं, जो सब-इंस्पेक्टर यानी दरोगा बनी हैं. पटना में डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘‘ट्रांसजेंडर भी ईश्वर की ही देन हैं, फिर उन्हें अलग तरह से क्यों देखा जाता है. समाज उन्हें गलत नजरिये से क्यों देखता है. उनके प्रति लोगों को अपना व्यवहार बदलने की जरूरत है. मैं इन्हें इज्जत दिलाना चाहती हूं, समाज का नजरिया बदलना चाहती हूं. ट्रांसजेंडर भी समाज की मुख्यधारा में शामिल होकर अपना मुकाम बना सकते हैं.'' 

बीते मंगलवार को बिहार पुलिस अधीनस्थ चयन आयोग (बीपीएसएससी) ने दारोगा भर्ती परीक्षा का परिणाम घोषित किया. इसमें 1275 उम्मीदवार सफल हुए, जिनमें 822 पुरुष, 450 महिलाएं और 3 ट्रांसजेंडर हैं. मानवी मधु कश्यप ट्रांसवूमेन हैं, जबकि अन्य दो रोनित झा और बंटी कुमार ट्रांसमैन हैं. भारत में बिहार ऐसा पहला राज्य बन गया है, जहां एक साथ तीन ट्रांसजेंडरों की नियुक्ति सब-इंस्पेक्टर के पद पर होगी.  

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पॉलिटिकल साइंस में स्नातक हैं मानवी मधु कश्यप

मानवी बांका जिले के एक छोटे से गांव पंजवारा की रहने वाली हैं. उनके पिता नरेंद्र प्रसाद सिंह की मौत माधवी के बचपन में ही हो गई थी. कश्यप ने 2021 में भागलपुर के तिलकामांझी यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में स्नातक की डिग्री ली. स्कूली पढ़ाई गांव के ही हाईस्कूल से हुई.

बिहार पुलिस के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेतीं महिला पुलिसकर्मी
बिहार पुलिस में पहली बार ट्रांसजेंडर के लिए कोटा तय किया गया हैतस्वीर: Manish Kumar/DW

पटना में डीडब्ल्यू को उन्होंने बताया, ‘‘मेरा यहां तक का सफर काफी मुश्किलों भरा रहा. जब कक्षा नौ में थी, तो पता चला कि मैं एक सामान्य लड़की नहीं हूं. परिवार में एक भाई और दो बहनें भी हैं. मैं सभी से कट कर, अलग-थलग रहने लगी. आस-पड़ोस क्या, अपने लोग भी ताने मारने लगे. इस बीच पिता गुजर गए. हालात ऐसे हो गए कि घर छोड़ना पड़ गया. दस साल हो गए, मैं घर नहीं गई हूं.''

कश्यप का बचपन संघर्षों के बीच बीता. उन्होंने आर्थिक तंगी के उस दौर में गांव में घर-घर अखबार पहुंचाने का काम भी किया. वह कहती हैं, ‘‘स्त्री या पुरुष कभी खुद के स्त्री या पुरुष होने का रोना नहीं रोते तो ट्रांसजेंडर क्यों अपना रोना रोएं. पुरुष के लिए फर्स्ट या फिर स्त्री के लिए सेकेंड जेंडर तो कहीं लिखा नहीं है, किंतु ट्रांसजेंडर के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में थर्ड जेंडर लिख कर दिया है तो क्या हम इज्जत या सम्मान के योग्य नहीं है?’’ कश्यप का यह भी कहना है कि पुलिस की सेवा में आने पर अपने सहकर्मियों उनकी यही अपेक्षा रहेगी कि उन्हें बराबरी मिले, "वे मेरा सम्मान करें और मैं उनका सम्मान करूं. सारी लड़ाई तो इज्जत-प्रतिष्ठा की है."

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दारोगा बनने की थी तमन्ना

बड़ी होने के कारण कश्यप पर घर की भी जिम्मेदारी थी. ट्रांसजेंडर होने के कारण कई तरह की समस्याएं झेलनी पड़ी. उन्होंने कभी इसकी परवाह नहीं की कि लोग क्या सोचते हैं. मानवी कहती हैं, ‘‘पिता का साया हट गया तब मैंने शेल्टर होम में नौकरी की. ऐसी जगह रहने लगी, जहां मुझे कोई पहचानता नहीं था. इन मुश्किलों के बीच भी मैंने अपने सपने को मरने नहीं दिया. दारोगा बनने की तमन्ना के साथ करीब ढाई साल पहले पटना आ गई. देश की सेवा के साथ-साथ सोच यह भी थी कि दारोगा बन ट्रांसजेंडरों को सम्मान दिलाने की भी कोशिश करूंगी.''

पुलिस डे के मौके पर परेड में हिस्सा लेते बिहार पुलिस के अधिकारी और जवान. यह तस्वीर साल 2023 की है.
बिहार पुलिस में महिलाओं के लिए 30 फीसदी सीटें आरक्षित की गई हैं. फिलहाल बिहार पुलिस में 30,000 से ज्यादा महिलाएं काम कर रही हैंतस्वीर: Manish Kumar/DW

पटना में कोचिंग वालों ने उन्हें एडमिशन देने से मना कर दिया. "माहौल खराब हो जाएगा," कहकर डांट-डपट कर भगा दिया. आखिर में कश्यप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने वाले गुरु रहमान सर से मिली. उन्होंने माधवी का साथ दिया और अंतत: वह मंजिल पाने में मैं कामयाब रही. दारोगा परीक्षा में सफल हुए तीनों ट्रांसजेंडर गुरु रहमान के ही स्टूडेंट हैं. उन्होंने तीनों छात्रों से कोई शुल्क नहीं लिया है.

वर्दी में घर जाकर मां को सैल्यूट करेंगी

कश्यप ने कहा, ‘‘हमारे जैसे लोगों के साथ समान व्यवहार किया जाना बहुत बड़ी बात है. पुलिस में सेवा करने का मौका मिलने से मैं बहुत खुश हूं, क्योंकि एक ट्रांसजेंडर का यहां तक पहुंचना काफी मुश्किल होता है. यह मेरे लिए भी मुश्किल रहा, किंतु अब समाज में सिर ऊंचा करके गर्व से रह सकूंगी. ट्रेनिंग पूरी करने के बाद वर्दी में घर जाकर सैल्यूट करूंगी और उसी दुपट्टा को लहराऊंगी, जिससे चेहरा ढक कर मां को मुझसे मिलने आना पड़ता था.''

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मानवी मधु कश्यप 2022 में भी मद्य निषेध विभाग में सिपाही के पद पर भर्ती के लिए लिखित परीक्षा में सफल रही थीं, किंतु वह शारीरिक परीक्षा में पास नहीं हो सकीं. वह बीते डेढ़ साल से रोजाना आठ घंटे से अधिक पढ़ाई कर रही थीं. बिहार में मानवी से पहले एक ट्रांसवूमेन गुड़िया कुमारी का चयन मद्य निषेध विभाग में तथा एक अन्य ट्रांसजेंडर का चयन बिहार तकनीकी सेवा आयोग द्वारा किया जा चुका है.

पटना हाईकोर्ट के एक आदेश को ध्यान में रखते हुए इस वर्ग के लिए बिहार पुलिस की ताजा भर्ती में पांच सीट आरक्षित किए गए थे, जिनमें तीन ही सफल हो सके. शेष दो सीट को सामान्य कोटे से भरा गया. राज्य सरकार के गृह विभाग ने हाई कोर्ट में हलफनामा दायर कहा था कि प्रदेश के हरेक जिले में इस श्रेणी से एक सब-इंस्पेक्टर और चार कांस्टेबल को तैनात करेगी. वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार बिहार में ट्रांसजेंडर लोगों की आबादी 40,827 थी.