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हर साल सिर्फ 320 रुपये बढ़ता है इस जापानी का वेतन

१६ मार्च २०२२

जापान में इस हफ्ते सालाना वेतन बढ़ाने पर बात हो रही है. लेकिन टोक्यो के एक नागरिक को कोई उम्मीद नहीं है. उनका वेतन हर साल चार डॉलर यानी करीब सवा तीन सौ रुपये ही बढ़ना है.

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विकसित देशों में शामिल है जापान
विकसित देशों में शामिल है जापानतस्वीर: Kazuhiro Nogi/AFP/Getty Images

जापान के टोक्यों में अकाउंटेंट मासामितु ने सालों से सिनेमा में कोई फिल्म नहीं देखी है. वह बाहर घूमने नहीं जा सकते और घर के बाहर खाना खाना तो कभी कभार ही हो पाता है. और ऐसा बरसों से हो रहा है. लगभग 25 लाख रुपये सालाना की उनकी तन्ख्वाह से घर का खर्च निकलना ही मुश्किल से हो पाता है. दस साल से उनका वेतन सालाना करीब 305 रुपये ही बढ़ा है.

50 साल के मासामितु बताते हैं, "मैं बचत नहीं कर सकता. बुढ़ापे के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है. मुझे बस काम करते रहना होगा." मासामितु ने अपना पूरा नाम इसलिए नहीं बताया कि कहीं उनकी छोटी सी इवेंट प्लानिंग कंपनी के अधिकारी नाराज ना हो जाएं. वह कहते हैं, "यहां से रिटायर होने के बाद मैं कुछ भी कर लूंगा. जो भी मिल जाए. शायद एक सिक्यॉरिटी गार्ड का काम कर लूंगा."

बड़ी संख्या में मजबूर लोग

मासामितु जैसी हालत जापान के छोटे और मध्यम दर्जे के उद्योगों में काम करने वाले बहुत से लोगों की है. 2020 में इन उद्योगों में औसत वेतन 38,515 डॉलर यानी लगभग 30 लाख रुपये सालाना था. और 1990 के दशक से इसमें कोई खास बदलाव नहीं हुआ है. इस कारण विकसित देशों के औसत वेतन (49,165 डॉलर) के मुकाबले जापान की हालत काफी खराब है.

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देश के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा ने लाभ कमा रहीं कंपनियों से आग्रह किया है कि इस बार के सालाना अप्रेजल में कर्मचारियों की तन्ख्वाह बढ़ाएं. फिलहाल देश की सभी बड़ी कंपनियों के प्रबंधक मिल बैठकर यूनियनों के साथ वेतन और काम के हालात आदि पर चर्चा कर रहे. इस चर्चा के बाद दिशा-निर्देश बनाए जाएंगे जो ज्यादातर कंपनियों के लिए मान्य होते हैं. यह चर्चा इस हफ्ते खत्म हो जाने की संभावना है.

मुश्किल से मिली दूसरी नौकरी

मासामितु एक प्रशिक्षित अकाउंटेंट हैं. 43 साल की उम्र में उन्होंने तब नौकरी बदली थी जबकि उनकी कंपनी ने वेतन में कटौती की थी. यह एक अनूठा कदम था क्योंकि आमतौर पर जापानी कर्मचारी नौकरियां नहीं बदलने के लिए जाने जाते हैं.

मौजूदा नौकरी भी मासामितु को बड़ी मुश्किल से मिली थी. उन्हें कई जगह इंटरव्यू देने पड़े और नाकामी हासिल हुई जिसके बाद उन्हें यह नौकरी इस शर्त पर मिली कि वेतन में हर साल 500 येन यानी लगभग 323 रुपये ही बढ़ाए जाएंगे.

वह बताते हैं, "मेरी उम्र को देखते हुए मेरा आधार वेतन बहुत बुरा नहीं था. कई जगहों पर तो इससे भी कम वेतन मिल रहा है. मुझे कहा गया कि दस साल तक 500 येन सालाना बढ़ेंगे और उसके बाद 5,000 येन सालाना बढ़ाए जाएंगे."

बदलाव की उम्मीद नहीं

भत्ते आदि मिलाकर मासामितु का मासिक वेतन लगभग ढाई लाख येन यानी डेढ़ लाख रुपये से कुछ ज्यादा बनता है. उन्हें हर छह महीने पर बोनस के रूप में दो महीने का वेतन भी मिलता है.  वह कहते हैं, "दुर्भाग्य की बात है कि यह बढ़ता नहीं है जबकि मैं खूब मेहनत कर रहा हूं."

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इस वेतन से मासामितु अपना घर चलाते हैं. उनकी पत्नी पार्ट टाइम काम करती हैं जबकि उनकी एक बेटी है जो इस वर्ष हाई स्कूल पास कर जाएगी. मनोरंजन के वह अपने दोस्तों के साथ यूट्यूब पर देखकर योग करते हैं. कभी-कभी वह योग करने के लिए जिम का एक दिन का पास भी खरीद लेते हैं. मासामितु कहते हैं, "मैं एक औऱ बच्चा चाहता था लेकिन इस एक बच्चे ने ही हमारा सब ले लिया."

मासामितु को किसी तरह के बदलाव की ज्यादा उम्मीद नहीं है. उन्हें नहीं लगता कि प्रधानमंत्री किशिदा की अपील का कोई असर होगा. वह कहते हैं, "इस तरह की चीजें उन लोगों तक कम ही पहुंचती हैं जो मेरे जैसी जगहों पर हैं. नेता लोग कहते तो बहुत कुछ हैं पर होता कुछ नहीं है."

वीके/सीके (रॉयटर्स)

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