फ्रांस: क्यों ऐतिहासिक है गर्भपात को मिली संवैधानिक आजादी
५ मार्च २०२४कभी निरंकुश राजशाही का प्रतीक रहे पैलेस ऑफ वर्साय में 4 मार्च की शाम महिला अधिकारों की दिशा में ऐतिहासिक थी. महल के भव्य असेंबली रूम में हुए एक ऐतिहासिक साझा सत्र में महिलाओं को गर्भपात का फैसला लेने और इसपर अमल करने की संवैधानिक गारंटी दी गई. संविधान के अनुच्छेद 34 में जोड़ा गया, "प्रेगनेंसी को स्वैच्छिक रूप से खत्म करने के कानूनी अधिकार की महिलाओं को गारंटीड आजादी."
इस तरह फ्रांस दुनिया का पहला और इकलौता देश बना, जहां महिलाओं को अबॉर्शन का फैसला लेने पर ऐसा करवाने का संवैधानिक अधिकार होगा. यहां 1975 से ही अबॉर्शन कानूनी है, लेकिन इस ताजा घटनाक्रम से इस अधिकार को संवैधानिक दर्जा भी मिल गया है.
संसद के भीतर और बाहर जश्न का माहौल
780 सांसदों और सेनेटरों ने प्रस्ताव के समर्थन में वोट किया. विरोध में बस 72 मत पड़े. संसद की ऊपरी सदन सीनेट और निचली सदन नेशनल असेंबली में पहले ही इसे मंजूरी मिल चुकी थी. संवैधानिक बदलाव के लिए साझा सत्र में मंजूरी मिलने की जरूरत थी.
वोटिंग के नतीजों की घोषणा करते हुए जब फ्रेंच नेशनल असेंबली की अध्यक्ष येल ब्रुन पीवे ने कॉन्स्टिट्यूशनल बिल के पारित होने की घोषणा की, तो सदन में बैठे सांसद और सेनेटर ताली बजाते हुए अपनी कुर्सियों से उठ खड़े हुए. कुछ सांसद इस यादगार पल को मोबाइल कैमरे में कैद करते दिखे. कई सांसद गले मिलीं.
दूसरी तरफ, एफिल टावर के पास जमा हुए लोगों के हुजूम ने समवेत स्वर में हुंकार भरी, आतिशबाजी की, गाने गाए और परचम लहराए. सांसद मैचील्ड ने पेनो ने कहा, "हम एक ऐतिहासिक जीत का उत्सव मना रहे हैं. हमारा वोट, भविष्य से किया गया एक वादा है. हमारे बच्चे, उनके बच्चे और उनके बच्चों को कभी भी वो यातना नहीं महसूस करनी होगी, जो पहले की पीढ़ियों को झेलनी पड़ी. हमारा वोट दुनियाभर की उन महिलाओं के लिए भी वादा है, जो संघर्ष कर रही हैं."
प्रधानमंत्री गैब्रिएल अताल ने कहा, "हम तमाम महिलाओं को यह संदेश दे रहे हैं: आपका शरीर सिर्फ आपका है और किसी को भी यह हक नहीं कि वो आपके बदले इसे नियंत्रित करे."
सेनेटर और महिला अधिकारों की पूर्व मंत्री लॉरेंस रॉसिन्यॉल ने कहा, "हम उन महिलाओं के लिए संघर्ष जारी रखेंगे जो विरोध कर रही हैं ट्रंप का, बोल्सोनारो का, ओरबान का, मिलेई का, पुतिन का, जॉर्जिया मेलोनी का."
हमेशा के लिए सुरक्षित हो गया अधिकार
संविधान में हुए इस संशोधन के बाद आने वाली सरकारें भी इसमें बड़ा बदलाव नहीं कर पाएंगी. इस संवैधानिक प्रक्रिया का प्रस्ताव राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने दिया, जिसका संदर्भ 2022 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जुड़ा है. 24 जून 2022 को दिए गए अपने फैसले में कोर्ट ने अबॉर्शन के संवैधानिक अधिकार को खत्म कर दिया.
इसके कुछ ही घंटों बाद माक्रों ने फ्रांस में गर्भपात के अधिकारों को सुनिश्चित किए जाने का वादा किया था. 8 मार्च 2023 को भी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर माक्रों ने यह आश्वासन दोहराया. फिर अक्टूबर में उन्होंने बताया कि सरकार गर्भपात के अधिकार को संविधान में दर्ज करने की योजना पर काम कर रही है, ताकि आगे चलकर भी कभी इसे पलटा ना जा सके.
एक ऑनलाइन पोस्ट में माक्रों ने बताया था कि इस संबंध में फ्रांस की सर्वोच्च प्राशासनिक अदालत "स्टेट काउंसिल" को एक ड्राफ्ट प्रॉजेक्ट दिया जाएगा. इस घोषणा के साथ माक्रों ने लिखा, "2024 में गर्भपात के चुनाव से जुड़ा महिलाओं का अधिकार अचल हो जाएगा."
गर्भपात के अधिकार को भारी जनसमर्थन
फ्रांस में संवैधानिक संशोधनों के दो रास्ते हैं. या तो जनमत संग्रह में इसके लिए जनाधार मिले, या फिर संसद के दोनों सदनों के साझा सत्र में कम-से-कम 60 फीसदी सदस्य प्रस्ताव को मंजूरी दें. विश्व युद्ध खत्म होने के बाद से अब तक हुए ज्यादातर संवैधानिक बदलाव संसद के मतदान से हुए हैं.
गर्भपात अधिकारों पर संसद में बहुमत के अलावा फ्रांस में आबादी का एक बड़ा हिस्सा भी इसे संवैधानिक दर्जा दिए जाने का पक्षधर है. समाचार एजेंसी एपी के मुताबिक, नवंबर 2022 में हुए एक जनमत सर्वेक्षण में 89 फीसदी प्रतिभागियों ने इसपर सहमति जताई थी. जानकारों के मुताबिक, ज्यादातर लोग अबॉर्शन को बुनियादी स्वास्थ्य सेवा मानते हैं और महिला अधिकार मानते हैं.
अगस्त 2023 में मार्केट रिसर्च कंपनी आईपीएसओएस के एक सर्वे में पाया गया कि यूरोप में गर्भपात को लेकर सबसे ज्यादा समर्थन स्वीडन और फ्रांस में है. स्वीडन में 87 फीसदी और फ्रांस में 82 प्रतिशत प्रतिभागियों ने कहा गर्भपात का कानूनी अधिकार होना चाहिए.
वहीं, एशिया में गर्भपात पर सबसे कम समर्थन दिखा. इंडोनेशिया (22 फीसदी) और मलेशिया (29 प्रतिशत) में सबसे कम लोग गर्भपात को कानूनी अधिकार बनाए जाने के समर्थन में पाए गए. सर्वे में शामिल 29 देशों में फ्रांस अकेला था, जहां 56 प्रतिशत प्रतिभागियों ने कहा कि हर हाल में अबॉर्शन कानूनी होना चाहिए. वहीं 26 प्रतिशत प्रतिभागियों ने कहा कि ज्यादातर मामलों में अबॉर्शन कानूनी होना चाहिए.