फ्रांस क्यों लगा रहा है स्कूलों में मोबाइल पर पाबंदी
५ सितम्बर २०२४फ्रांस में करीब 200 माध्यमिक स्कूलों (कक्षा 6 से 8) ने क्लास में स्मार्टफोन लाने पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है. इसे 'डिजिटल ब्रेक' का नाम दिया गया है. फिलहाल यह अभियान परीक्षण के चरण में है.
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यह फैसला मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर किशोरों का स्क्रीन टाइम (स्क्रीन देखने का समय) घटाने और उन्हें ऑनलाइन शोषण और साइबरबुलिंग से बचाने के लिए लिया गया है. खबरों के मुताबिक, इस प्रयोग से किशोर और स्कूल के स्टाफ, दोनों संतुष्ट बताए जा रहे हैं. अगर यह परीक्षण कामयाब होता है, तो 2025 तक इसे फ्रांस के सभी स्कूलों में लागू किया जा सकता है.
स्कूल में बच्चों के स्मार्टफोन रखने के क्या इंतजाम?
किशोर सुबह स्कूल आने पर अपना मोबाइल शिक्षकों को सौंप करते हैं. वे जब तक स्कूल में रहते हैं, उनके मोबाइल फोन बेहद सुरक्षित ब्रीफकेस में रखे जाते हैं. इसके लिए संबंधित स्कूलों ने खुद ही फंड इकट्ठा करके ब्रीफकेस जैसे स्टोरेज उपकरण खरीदे हैं.
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फ्रांस की शिक्षा मंत्री निकोल बेलोबेत ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में बताया, "बच्चे स्कूल आते हैं और अपने फोन शिक्षक को सौंप देते हैं. यह स्कूल के नए साल का नया नियम है. इसे 200 स्कूलों में टेस्ट किया जा रहा है. हम वाकई स्कूलों में 'डिजिटल ब्रेक' की शुरुआत कर रहे हैं, बच्चों की बेहतरी के लिए. यह भी स्कूल के कार्य का हिस्सा है."
मोबाइल जमा करने में खर्च की चिंता
सरकार इस प्रयोग के लिए पैसे खर्च नहीं कर रही है. देश के जो विभाग माध्यमिक स्कूलों की फंडिंग करते हैं, यह जिम्मा भी उन्हीं के सिर आ गया है. ऐसे में कई विभागों को यह अतिरिक्त बोझ लग रहा है. स्थानीय मीडिया के अनुसार, कुछ विभागों ने अनुमान जताया है कि यह प्रयोग पूरे देश में लागू किया जाता है, तो 125 मिलियन यूरो तक का खर्च हो सकता है.
हालांकि, बेलोबेत इससे सहमत नहीं हैं. 3 सितंबर को उन्होंने पेरिस के एक माध्यमिक स्कूल का दौरा किया. इस दौरान उन्होंने कहा कि ब्रीफकेस जैसी चीजें खरीदने में बहुत मामूली लागत आएगी. उन्होंने बताया कि जिस स्कूल में वह गई थीं, वहां मोबाइल फोन स्टोर करने के लिए चुने गए ब्रीफकेस की कीमत लगभग 60 यूरो है और इसका भुगतान स्कूलों के अपने फंड से किया है.
बच्चों-किशोरों का बढ़ता स्क्रीन टाइम बड़ी चिंता
कई विशेषज्ञ आगाह करते हैं कि किशोरों और बच्चों में स्मार्टफोन का बढ़ता चलन और सोशल मीडिया के प्रति रुझान, लत की हद तक बढ़ता जा रहा है. यह सेहत और स्वास्थ्य के लिए बड़े खतरे की तरह देखा जा रहा है. अभिभावकों और छात्रों के लिए बच्चों को फोन से दूर रखना बहुत मुश्किल होता जा रहा है. समाचार एजेंसी की एक खबर के मुताबिक, पिछले साल स्पेन में कई किशोरों की मांओं ने मिलकर एक चैट ग्रुप बनाया. इस ग्रुप का नाम है, "एडोलेसेंस (किशोरावस्था) फ्री ऑफ मोबाइल फोन्स."
यह ग्रुप अभिभावकों के बीच इतनी तेजी से लोकप्रिय हुआ कि कुछ ही महीनों में 10,000 से ज्यादा लोग इसके सदस्य बन गए. इसमें अभिभावक बच्चों को फोन से दूर रखने के तरीकों पर बातचीत करते हैं. एक-दूसरे को इस बात के लिए राजी करते हैं कि बच्चा जितनी भी जिद करे, 16 साल का होने से पहले उसे स्मार्टफोन ना दें. इस तरह के अभियान कई अन्य देशों में भी चलाए जा रहे हैं.
इस ग्रुप को बनाने वालीं गारसिया परमाने ने एपी को बताया, "जब मैंने इसकी शुरुआत की, तो मैं बस यह उम्मीद कर रही थी कि अपने ही जैसे चार परिवार खोज पाऊं, लेकिन यह ग्रुप बढ़ता ही गया." अपना मकसद स्पष्ट करते हुए वह बताती हैं, "मेरा लक्ष्य यह था कि बाकी अभिभावकों को साथ जोड़ूं, ताकि हम मिलकर उस स्थिति तक पहुंच सकें जब स्मार्टफोन आए ही थे. मैं कोशिश करूंगी, ताकि मेरे बच्चे अकेले ना हों जिनके पास मोबाइल नहीं है."
इंटरनेट और सोशल मीडिया के कई गंभीर असर
सिर्फ माता-पिता नहीं, बल्कि पुलिस और स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी लगातार इस विषय पर चिंता जता रहे हैं. बच्चों और किशोरों का मोबाइल जैसे डिवाइसों पर हिंसक और पॉर्न वीडियो देखना काफी बढ़ गया है. कई किशोर सोशल मीडिया के साथ आत्मविश्वास खो रहे हैं और अवसाद में जा रहे हैं. उनका मानसिक विकास और सीखने की क्षमता भी प्रभावित हो रही है. ब्रिटेन में पिछले साल 16 साल की एक किशोर ब्रियाना की हत्या कर दी गई. इस अपराध में दो किशोर शामिल थे. इसके बाद वहां भी 16 साल से कम उम्र के किशोरों को सोशल मीडिया और स्मार्टफोन से दूर रखने की मुहिम जोर पकड़ रही है.
बच्चों का बढ़ता स्क्रीन टाइम कैसे करें काबू
डेजी ग्रीनवेल, इंग्लैंड के सफक काउंटी में रहती हैं. उनके तीनों बच्चों 10 साल से कम के हैं. ग्रीनवेल ने अपने एक इंस्टाग्राम पोस्ट में लिखा, "ऐसा महसूस होता है कि हम सब जानते हैं कि अपने बच्चों के लिए (स्मार्टफोन खरीदना) एक बुरा फैसला है, लेकिन समाज में ये चीज उतनी स्थापित नहीं हो पाई है." ग्रीनवेल ख्वाहिश जताती हैं, "क्या हो अगर हम समाज का ढर्रा बदल सकें ताकि हमारे स्कूल में, हमारे शहर में, हमारे देश में अपने 11 साल के बच्चे को स्मार्टफोन देना अजीब बात हो. कैसा हो अगर हम इसे तब तक रोक सकें, जब तक कि वे 14 के नहीं हो जाते, या फिर 16 के."
एसके/एसएम (एपी)