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ग्रेटा थुनबर्ग और युवा आंदोलन की सड़कों पर वापसी

२५ सितम्बर २०२०

विश्व प्रसिद्ध स्वीडिश युवा पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थुनबर्ग युवाओं का नेतृत्व करने वापस लौट आई हैं. उनके आह्वान पर दुनिया के कई देशों में युवा प्रदर्शनकर्ताओं ने जोर शोर से जलवायु परिवर्तन का मुद्दा उठाया.

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Klima-Proteste | Schweden Greta Thunberg
तस्वीर: Jonathan Nackstrand/AFP

ग्रेटा थुनबर्ग ने स्वीडन की संसद के बाहर शुक्रवार 25 सितंबर को सोशल डिस्टेंसिंग के दौर में अपने पहले फ्राइडेज फॉर फ्यूचर आंदोलन का आगाज किया. एशिया से लेकर अफ्रीका तक विश्व के 3,100 स्थलों पर फ्राइडेज फॉर फ्यूचर के प्रदर्शन हुए. कोरोना महामारी के काल में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ठोस कदमों की मांग करने वाला स्कूली बच्चों और युवाओं का यह अभियान ऑनलाइन दुनिया में सिमट गया था. संसद के बाहर पत्रकारों से बात करने हुए 17 साल की थुनबर्ग ने कहा, "सबसे बड़ी आशा यह है कि लोगों में जागरूकता के स्तर और आम राय पर असर डाल सकें.''

20 अगस्त 2018 को थुनबर्ग ने स्वीडन की ही संसद के सामने पहली बार अकेले प्रदर्शन किया था. देखते ही देखते इसमें पूरे विश्व के स्कूली बच्चे जुड़ते गए. इसके एक साल के भीतर थुनबर्ग को संयुक्त राष्ट्र ने राजनेताओं और बिजनेस लीडर्स की एक सभा को संबोधित करने बुलाया. स्कूल में पढ़ने वाली थुनबर्ग ने स्विट्जरलैंड के दावोस के विश्व आर्थिक मंच से भी विश्व को संदेश दिया.

उनके सीधे सवाल विश्व के बड़े बड़े नेताओं से पूछे गए सबसे कड़े सवालों में शामिल माने जाते हैं. वैज्ञानिक तथ्यों की बात कर थुनबर्ग ने विश्व नेताओं से ग्रीनहाउस गैसों में कटौती करने और दूसरी हानिकारक गैसों के उत्सर्जन को घटाने की जवाबदाही तय करने की मांग की. इस कदम के लिए उन्हें दुनिया भर के पुरस्कार और प्रशंसा तो मिली लेकिन साथ ही तमाम आलोचनाओं और जान से मारने की धमकियां तक मिलीं.

दुनिया भर में जोर पकड़ते इस अभियान को भी कोरोना के कारण घरों में सिमटना पड़ा. स्कूल बंद हो गए और बच्चे घरों में कंप्यूटर से ही अपने स्कूलों से और इस अभियान से भी जुड़े रहे. अगस्त में थुनबर्ग और कुछ अन्य एक्टिविस्ट ने जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल से बर्लिन में मुलाकात की और अपने सुझावों वाली चिट्ठी सौंपी. इसके पहले अप्रैल में डिजिटल स्ट्राइक का आयोजन हुआ था जिसमें वैसे तो तादाद कम रही लेकिन आंदोलन जिंदा रहा.

अभियान से जुड़े युवा और किशोर कार्यकर्ता कहते हैं कि वे तब तक अपना प्रदर्शन जारी रखेंगे जब तक प्रकृति का दोहन जारी रहेगा.

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एडिटर, डीडब्ल्यू हिन्दी
ऋतिका पाण्डेय एडिटर, डॉयचे वेले हिन्दी. साप्ताहिक टीवी शो 'मंथन' की होस्ट.@RitikaPandey_