ईरान से लौट रहे अफगान के साथ संक्रमण का खौफ
६ अप्रैल २०२०ईरान में कोरोना वायरस के फैलने के बाद अफगान शरणार्थी महदी नूरी का काम बंद हो गया. नूरी पत्थर काटने के कारखाने में बतौरी मजदूर काम करता था. नूरी के पास पैसे भी नहीं थे और उसे वायरस के संक्रमण का खतरा सता रहा था. इसलिए उसने अफगानिस्तान लौटने का फैसला किया. नूरी, करीब दो लाख अफगान शरणार्थियों के जत्थे के साथ सीमा पार करने के लिए निकल पड़ा. ईरान दुनिया में महामारी के सबसे बड़े केंद्रों में से एक है तो दूसरी ओर अफगानिस्तान इस महामारी से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं दिखता है.
सीमा पर नूरी की तरह हजारों लोग कतार में खड़े हो गए. सभी लोग किसी तरह से सीमा पार कर अपने देश अफगानिस्तान लौटना चाहते थे. समाचार एजेंसी से नूरी कहते हैं, "मैंने महिलाओं और बच्चों को सीमा पर देखा. और मैंने सोचा कि अगर वे अभी संक्रमित हो जाएंगे तो क्या होगा.”
भारी तादाद में अफगानिस्तान लौटने वाले बिना किसी जांच के शहरों, कस्बों और गांवों की तरफ जा रहे हैं. देश का बुनियादी स्वास्थ्य ढांचा दशकों के युद्ध के कारण बर्बाद हो चुका है. ऐसे में अफगानिस्तान में महामारी के प्रकोप का खतरा अधिक बढ़ जाता है.
अफगानिस्तान में अब तक कोरोना वायरस के 273 मामलों की पुष्टि हो चुकी है और देश में इस महामारी के कारण चार लोगों की मौत हो चुकी है. अफगानिस्तान के स्वास्थ्य मंत्री फिरुजुद्दीन फिरोज कहते हैं कि देश वापस लौटने वालों की वजह से वायरस फैल चुका है. वह कहते हैं, "अगर मामले बढ़ते हैं तो यह नियंत्रण से बाहर हो जाएगा और हमें मदद की जरूरत होगी." उन्हें और अन्य अफगान अधिकारियों को चिंता है कि ईरान दस लाख और लोगों को देश से निकाल देगा, जो गैरकानूनी रूप से वहां काम कर रहे हैं. ईरान पहले ही अफगानिस्तान से आने वाले लोगों पर रोक लगा चुका है. ईरान में कोरोना वायरस के 58,000 से अधिक मामले हैं और 3,600 लोगों की मौत इस घातक महामारी से हो गई है.
कोरोना से लड़ाई कैसे लड़ेगा अफगानिस्तान?
प्रवासियों के अंतरराष्ट्रीय संगठन ने इस साल अब तक 1,98,000 से ज्यादा अफगानों की वापसी रिकॉर्ड की है. मार्च में ईरान में महामारी के फैलने के साथ ही वहां से 1,45,000 लोग लौट चुके थे. सीमा पर प्रवासियों के अंतरराष्ट्रीय संगठन ऐसे लोगों को कंबल और टेंट मुहैया करा रहा है जिनके पास कोई ठिकाना नहीं है. इसके अलावा संगठन ऐसे लोगों की आर्थिक मदद भी करता है जो अपने घर जाना चाहते हैं और उनके पास किराये के लिए पैसा नहीं है. लेकिन अफगान सरकार और स्वतंत्र एजेंसियों के पास जांच करने, तापमान मापने और क्वारंटीन करने की क्षमता नहीं है. करीब-करीब सभी लोग अपने गृह राज्य इसी तरह से लौट रहे हैं, सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करते हुए.
नूरी का अनुभव ईरान से लौटने वाले अन्य लोगों की ही तरह है. नूरी 15 साल की उम्र में पढ़ाई छोड़कर काम करने ईरान चला गया था. ईरान में रहते हुए नूरी ने कई तरह की नौकरी और मजदूरी की और हाल फिलहाल में उसने पत्थर काटने के कारखाने में काम करना शुरू किया. कारखाना बंद होने के बाद उसकी नौकरी चली गई और उसे वायरस का डर सताने लगा. उसे लगा कि अगर ऐसा होता है तो वहां उसका इलाज होना मुश्किल होगा क्योंकि उपचार के मामले में भी अफगान नागरिकों को कम प्राथमिकता दी जाती है. नूरी ने एक बार जांच करानी की कोशिश की लेकिन उसे मना कर दिया गया. इसके बाद वह अन्य मजदूरों के साथ वापस लौटने का फैसला किया, हालांकि वह नहीं जानता था कि समूह में कोई मजदूर संक्रमित है या नहीं. सीमा पार करने के बाद नूरी ने बस ली और राजधानी काबुल पहुंचा. बस में लोगों ने नूरी से कहा, "तुम्हें कोरोना वायरस के खौफ ने घर वापस ला दिया ताकि तुम और लोगों को इसके जरिए मार सको.”
17 मार्च को काबुल में अपने घर पहुंचने के बाद उसने परिवार के अन्य सदस्यों से खुद को अलग-थलग कर लिया. उसने फोन पर समाचार एजेंसी एपी को बताया, "यह मेरे लिए जीवन का सबसे खराब पल था, मैं परिवार से मिल तो रहा था लेकिन एक दूरी के साथ.”
अफगानिस्तान सरकार ने 28 मार्च को काबुल और हेरात प्रांत में लॉकडाउन की घोषणा की है. तालाबंदी के तहत कारोबार, रेस्तरां और शादी के हॉल बंद रहेंगे.
एए/ओएसजे (एपी)
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