भारत ऑस्ट्रेलिया 'एकता समझौता' क्या गुल खिलाएगा
५ अप्रैल २०२२भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने सोमवार को इकनॉमिक टाइम्स अखबार में एक लेख लिखकर भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुए व्यापार समझौते का बखान किया है. आठ साल में मोदी सरकार का यह पहला इतना बड़ा समझौता है. खुद गोयल ने लिखा है कि बीते दस साल में भारत का किसी विकसित अर्थव्यवस्था के साथ यह पहला व्यापार समझौता है जिससे एक पांच साल में भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापार 27.5 अरब डॉलर यानी लगभग 20 खरब रुपये के मौजूदा स्तर से बढ़कर 45-50 अरब डॉलर होने की उम्मीद है.
पीयूष गोयल लिखते हैं, "भारत ऑस्ट्रेलिया एकता (IA ECTA) समझौता अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक परिप्रेक्ष्य में भारत के उत्साहजनक उदय का एक नया अध्याय है. इस बेहद प्रतिद्वन्द्वी वैश्विक बाजार में देश नित नई ऊंचाइयां छू रहा है.”
भारत और ऑस्ट्रेलिया के वाणिज्य मंत्रियों ने शनिवार को ही एक वर्चुअल समारोह में इस समझौते पर दस्तखत किए थे. समारोह में दोनों देशों के प्रधानमंत्री भी मौजूद रहे. करीब दस साल से दोनों देशों के बीच इस समझौते को लेकर बातचीत चल रही थी. इसलिए भी, अंततः यह समझौता हो जाने को दोनों सरकारों द्वारा बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश किया जा रहा है. लेकिन इस समझौते से सभी लोग खुश हों ऐसा नहीं है.
मात्र चुनाव प्रचार
समझौते पर दस्तखत होने से पहले ऑस्ट्रेलियन फेयर ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट नेटवर्क ने भी यह कहते हुए आलोचना की थी पारदर्शिता नहीं बरती गई है. नेटवर्क की संयोजक डॉ. पैट्रीशिय रनाल्ड ने कहा, "चुनाव के बाद ही संसद की निगहबानी हो पाएगी. जनता को इस समझौते के सामाजिक, पर्यावरणीय, स्वास्थ्य और आर्थिक कीमतों और फायदों के स्वतंत्र आकलन करने का अधिकार होना चाहिए."
दरअसल, मई में ऑस्ट्रेलिया में आम चुनाव होने हैं और उसके बाद नई संसद ही इस समझौते को अनुमति देगी. तभी संसद में इसके फायदे नुकसान पर बहस हो पाएगी. इसलिए कई जानकार मॉरीसन सरकार की चुनाव से पहले जल्दबाजी को प्रचार का तरीका मात्र बता रहे हैं.
पूर्व लेबर सांसद डग कैमरन कहते हैं कि यह बस प्रचार है. उन्होंने कहा, "वही मॉरीसन सरकार का प्रचार का तरीका है. भारत के साथ अंतरिम समझौते को खेल बदलने वाली घटना के रूप में प्रचारित किया जा रहा है. यह सब तो हमने पहले भी सुना है जब चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौता हुआ था. और उससे क्या मिला? बस यही कि हमारे निर्माण क्षेत्र की नौकरियां खत्म हो गईं. और चीन के साथ समझौता का क्या हाल हुआ?"
समस्या कहां है?
यदि प्रचार से इतर जाकर देखा जाए तो भारत और ऑस्ट्रेलिया के जिन उत्पादों और सेवाओं को एक दूसरे के बाजार के लिए खोला गया है उनमें बहुत से ऐसे क्षेत्र शामिल नहीं हैं जिनकी बाजारों और उद्योगपतियों को उम्मीद थी. जैसे कि कृषि और दुग्ध उत्पादों को लेकर ऑस्ट्रेलिया भारत का रुख बदलने में नाकाम रहा और ऑस्ट्रेलिया का बीफ व दूध क्षेत्र समझौते से बाहर छूट गया.
ऑस्ट्रेलिया के व्यापार मंत्री डैन टेहन कहते हैं कि इन क्षेत्रों को लेकर भारत में संवेदनशीलता ज्यादा है. उन्होंने कहा, "हम समझते हैं कि गोमांस को लेकर भारत में संवेदनशीलता की स्थिति अलग है. और दूध उत्पादों को लेकर राजनीतिक संवेदनशीलता थी. इसलिए हमने उसका सम्मान किया है.”
लेकिन, यह तर्क ऑस्ट्रेलिया के दुग्ध और कृषि उत्पादकों को ज्यादा संतुष्ट नहीं कर पा रहा है. ऑस्ट्रेलियन डेयरी इंडस्ट्री काउंसिल (ADIC) के प्रमुख रिक ग्लैडीगो कहते हैं कि सरकार ने कोशिश की, उसका स्वागत है लेकिन भारत ने दोनों के साथ आने से होने वाले फायदों को मान्यता नहीं दी. उन्होंने कहा, "समझौता अंतरिम हो या कोई और, अगर डेयरी उत्पादों के लिए बाजार पहुंच उसमें शामिल नहीं है तो वह निराशाजनक है. यह खेद की बात है कि डेयरी उद्योग जैसा बड़ा क्षेत्र बातचीत से बाहर रखा गया.”
वाइन को लेकर भी उद्योग जगत की भावनाएं मिली-जुली हैं. हालांकि वाइन उद्योग ने सार्वजनिक रूप से स्वागत किया है लेकिन यह एक ऐसा उद्योग था जिसे चीन से बिगड़े रिश्तों का भारी खामियाजा उठाना पड़ा था और भारत से कुछ राहत की उम्मीद कर रहा था. फिलहाल जो समझौता हुआ है उसके तहत कम से कम 5 डॉलर आयात मूल्य वाली एक वाइन बोतल पर कर 150 प्रतिशत से घटाकर 100 प्रतिशत किया गया है और आने वाले दस साल में इसे घटाकर 50 प्रतिशत करने पर सहमति बनी है. 15 डॉलर प्रति बोतल वाली वाइन पर कर 150 से घटाकर 75 फीसदी कर दिया गया है और दस साल में 25 फीसदी करने पर सहमति बनी है.
एक वाइन व्यापारी ने डॉयचे वेले को नाम न छापने की शर्त पर बताया, "हमारी प्रॉडक्शन कोस्ट का भारत से कोई मुकाबला नहीं है. यहां उत्पादन पहले ही बहुत महंगा है. इस कीमत पर सौ फीसदी ड्यूटी भी हमारे लिए मुश्किल ही होगी. जो बोतल पांच डॉलर की है, यानी भारत में वह 400 रुपये में आयात हो रही है. तब बाजार तक पहुंचते उसकी कीमत भारतीय वाइन का मुकाबला तो नहीं कर पाएगी. समझौते से हमें उम्मीद थोड़ी ज्यादा थी.”
भारत को फायदे
भारत सरकार ने इस समझौते के जो फायदे गिनवाए हैं उनमें सबसे ऊपर तो यह है कि ऑस्ट्रेलिया में भारत को बाजार तक तरजीही पहुंच मिलेगी. लिहाजा उन उद्योगों को फायदा होगा जो भारत के बड़े निर्यातक हैं जैसे कि गहने और कीमती पत्थर, कपड़े, जूते, चमड़ा, खाना, कृषि उत्पाद, इंजीनियरिंग उत्पाद, चिकित्सा में काम आने वाली छोटी-बड़ी मशीनें और वाहन आदि.
इसके अलावा इस समझौते में भारत को कुछ खास सुविधाएं भी मिली हैं. जैसे कि ऑस्ट्रेलिया, जो विदेश में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों का एक अहम ठिकाना है, छात्रों को अतिरिक्त वीजा सुविधाएं देगा. जैसे कि ऑस्ट्रेलिया से साइंस और तकनीकी में पढ़ाई करने वाले भारतीय छात्रों को पढ़ाई पूरी होने के बाद काम करने के लिए अतिरिक्त समय मिलेगा.
एक बड़ा ऐलान यह हुआ है कि भारत की डिग्रियों को ऑस्ट्रेलिया में मान्यता दी जाएगी. इसके लिए एक विशेष टीम बनाई जाएगी, जो दोनों देशों की डिग्रियों का अध्ययन करेगी. साथ ही, भारत से घूमने आने वाले एक हजार युवाओं को घूमने और रहने के साथ-साथ काम करने के लिए वीजा दिया जाएगा, जिसे ऑस्ट्रेलिया में बैगपैकर्स वीजा कहा जाता है. इसके अलावा, भारत के शेफ यानी खानसामों और योग शिक्षकों को भी विशेष वीजा सुविधा दी जाएगी.
सेवाओं में भी भारत को ऑस्ट्रेलिया ने मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा देने पर सहमति जताई है. इसके तहत 120 क्षेत्र ऐसे होंगे जिनमें भारत को बाकी देशों से पहले सुविधाएं मिलेंगी, जैसे कि आईटी, बिजनेस सर्विस, हेल्थ, शिक्षा और ऑडियो विजुअल आदि.
ऑस्ट्रेलिया को फायदे
ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने अपने लोगों को इस समझौते के बड़े फायदे बताए हैं. ऑस्ट्रेलिया में अगले महीने आम चुनाव हैं और उससे पहले प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन व उनके तमाम मंत्री इस समझौते का खूब प्रचार कर रहे हैं. स्कॉट मॉरिसन ने कहा, "हम इस पर कई साल से काम कर रहे थे, खासतौर पर पिछले साढ़े तीन साल से. हम दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक यानी भारत का सबसे बड़ा दरवाजा खोल रहे हैं. भारत की अर्थव्यवस्था अब अरबों-खरबों की हो चुकी है और बहुत से देश भारत के साथ व्यापार करना चाहते हैं लेकिन ऑस्ट्रेलिया है जो उसके साथ समझौता करने में कामयाब हुआ है.”
ऑस्ट्रेलिया का कहना है कि जब यह ‘एकता समझौता' लागू हो जाएगा तो ऑस्ट्रेलिया के 85 प्रतिशत उत्पाद और सेवाएं भारत में कर मुक्त हो जाएंगे. इनके अलावा 5 प्रतिशत उत्पाद और सेवाओं पर कर अगले 10 साल के भीतर खत्म हो जाएगा. इससे सालाना भारत जाने वाले 14.8 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर यानी लगभग 850 अरब रुपये के ऑस्ट्रेलियाई सामान को लाभ पहुंचेगा.
भारत ने जिन प्रमुख ऑस्ट्रेलियाई उत्पादों को कर मुक्त किया है उनमें भेड़ का मांस, ऊन, मैन्गनीज, कॉपर, कोयला, अल्यूमीनियम, टाइटेनियम डाइऑक्साइड और कुछ खनिज शामिल हैं. जिन उत्पादों पर अगले दस साल में कर खत्म करने की बात कही गई है उनमें बच्चों का पाउडर वाला दूध, कुछ मटर और दालें, चंदन, पेट्रोलियम ऑयल, समुद्री भोजन, लकड़ी और कागज के उत्पाद, फार्मास्युटिकल उत्पाद और वाइन शामिल हैं.
दो साल से चीन के साथ ऑस्ट्रेलिया के खराब संबंधों का देश के व्यापारियों और उत्पादकों ने खासा नुकसान झेला है. लिहाजा, उन्हें नए बाजार से बड़ी उम्मीदें हैं लेकिन ये उम्मीदें कितनी पूरी होंगी, इसका पता लगने में अभी काफी वक्त है.