सफल रहा जी20 लेकिन कुछ उम्मीदें रहीं अधूरी
१० सितम्बर २०२३नई दिल्ली में जी20 नेताओं का दो दिनों का शिखर सम्मेलन समाप्त हो गया है. यूक्रेन युद्ध पर परस्पर विरोधी रुखों के बावजूद अंतिम घोषणा में रूस की सीधी आलोचना नहीं की गई है. इसके बावजूद जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने इसे 'फैसलों का शिखर सम्मेलन' बताया है.
मेजबान भारत के प्रयासों से पश्चिमी देशों और रूस के बीच विवादों के बावजूद अंतिम घोषणा पर सहमति हो गई. इसे सम्मेलन की बड़ी कामयाबी करार दिया गया है. सबसे बड़ी आर्थिक ताकतों के इस समूह के नेताओं ने शिखर सम्मेलन की समाप्ति पर पर्यावरण सुरक्षा और गरीबी जैसे मुद्दों पर मिलजुलकर काम करने की प्रतिबद्धता जताई.
ब्राजील की अध्यक्षता के केंद्र में गरीबी
ब्राजील इस साल दिसंबर से जी20 की अध्यक्षता संभालेगा. सम्मेलन के आखिर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्राजील के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा को औपचारिक रूप से अगले साल के लिए समूह की अध्यक्षता सौंपी. ब्राजील के राष्ट्रपति ने कहा है कि अगले साल अपनी अध्यक्षता के दौरान वह भुखमरी और असमानता को अपने काम के केंद्र में रखेंगे. उन्होंने जी20 के नेताओं से एकता की अपील करते हुए कहा, “हमारी दिलचस्पी विभाजित जी20 में नहीं है.“
लूला दा सिल्वा ने इस बात की याद दिलाई कि जी20 शिखर सम्मेलन का गठन वैश्विक वित्तीय संकट के मद्देनजर किया गया था, लेकिन उस समय के बाद से अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संरचना में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है. अभी भी आय, स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा के मामले में पुरुषों और महिलाओं के अलावा विभिन्न जातियों के बीच अंतर बना हुआ है. लूला दा सिल्वा ने कहा, “यदि हम यहां बदलाव चाहते हैं तो असमानता में कमी को अंतरराष्ट्रीय एजेंडा पर लाना होगा.”
पश्चिमी देश भी रहे संतुष्ट
जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स शिखर ने सम्मेलन की भावना की तारीफ करते हुए कहा, "उत्तर और दक्षिण के बीच एक नए तरह का संवाद, ये नई दिल्ली के सम्मेलन में संभव हुआ." अमेरिकी राष्ट्रपति ने सम्मेलन की कामयाबी के बारे में कहा कि इसने ये साबित किया है कि मुश्किल आर्थिक समय में भी जी20 फौरी समस्याओं का समाधान ढूंढने में सक्षम है.
सबसे अधिक विवाद यूक्रेन के मुद्दे पर था. पश्चिमी देश चाहते थे कि अंतिम घोषणा पत्र में यूक्रेन पर रूस के हमले की निंदा हो, लेकिन बाली में हुए पिछले सम्मेलन के विपरीत इस बार रूस और चीन इसके लिए तैयार नहीं थे. जर्मनी भी चाहता था कि रूस के हमले की निंदा की जाए, लेकिन इसके बावजूद चांसलर शॉल्त्स ने कहा कि अंतिम घोषणा में ऐसा टेक्स्ट है जिसमें "रूस को स्वीकार करना पड़ा कि विश्व समुदाय रूसी राजनीति के हिंसात्मक सिद्धांतों को स्वीकार नहीं करता है."
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रूस संतुष्ट, यूक्रेन नाखुश
सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का प्रतिनिधित्व करने वाले रूसी विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव ने सम्मेलन के नतीजों पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि आज पश्चिम ने विश्व में वर्चस्व खो दिया है और एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का महत्व बढ़ा है. उन्होंने कहा कि यदि इस बात पर ध्यान दिया जाए कि नए वैश्विक केंद्र उभर रहे हैं और मजबूत हो रहे हैं, तो पश्चिम प्रभुत्वशाली नहीं रह सकता.
ऐसा नहीं है कि जी20 की चर्चा और वहां लिए गए फैसलों को सिर्फ समर्थन ही मिल रहा है. उसके आलोचक भी हैं. यूक्रेन को नई दिल्ली घोषणा पत्र का बयान पसंद नहीं आया है और उसने इसे बहुत कमजोर बताया है. तो पर्यावरण एक्टिविस्टों को विश्व नेताओं की बड़बोली बातें पसंद नहीं आई. उनकी शिकायत है कि बड़ी आर्थिक ताकतों की बातों और ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने के लिए उनके द्वारा उठाए जा रहे कदमों में काफी अंतर है.
जीवाश्म ईंधनों पर पूरी तरह रोक नहीं
पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली कार्बन डाय ऑक्साइड और मीथेन जैसी गैसों के उत्सर्जन के 80 फीसदी के लिए जी20 के देश जिम्मेदार हैं. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार पिछले साल 36.0 गीगाटन का रिकॉर्ड उत्सर्जन हुआ है. धरती औद्योगीकरण की शुरुआत की तुलना में 1.1 डिग्री गरम हो चुकी है. जर्मनी उस समय की तुलना में 1.6 डिग्री सेल्सियस गर्म हुआ है. मौसम का रिकॉर्ड रखने की शुरुआत के बाद से पिछले आठ सालों में छह साल सबसे गर्म सालों में शामिल हैं.
पर्यावरण संगठन जर्मन वॉच के प्रमुख क्रिस्टॉफ बाल्स ने जी20 की 2030 तक अक्षय ऊर्जा की क्षमता को तिगुना बढ़ाने की घोषणा को उम्मीद की किरण बताया लेकिन साथ ही यह भी आरोप लगाया कि रूस और सऊदी अरब ने अंतिम घोषणा में तेल और गैस पर रोक लगाने को शामिल किए जाने को रोक दिया. उनका कहना है, "दोनों देश तेल और गैस की बिक्री के जरिए दुनिया में अपना प्रभुत्व सुरक्षित रखना चाहते हैं."
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विश्व संसाधन संस्थान के प्रमुख अनी दासगुप्ता ने भी इतिहास की सबसे गर्म गर्मियों की रोशनी में जी20 के फैसलों को अपर्याप्त बताया. उन्होंने मांग की कि जी20 के देशों को पर्यावरण संकट का सामना करने वाले गरीब देशों की वित्तीय मदद करनी चाहिए और उनके कर्ज को माफ कर देना चाहिए. दासगुप्ता ने भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले ऊर्जा स्रोतों तेल, कोयला और गैस को छोड़ने की मांग की.
एडी/एमजे (एएफपी, डीपीए)