‘क्लाइमेट क्लब’ बनाने के वायदे के साथ जी7 सम्मेलन का समापन
२८ जून २०२२जर्मनी में तीन दिन तक चले सम्मेलन के दौरान जी7 देशों के नेताओं ने यूक्रेन की मदद और रूस को रोकने पर लंबी चर्चाएं कीं. साथ ही, सम्मेलन के आखिरी दिन वैश्विक स्तर पर पैदा हो रहे खाद्य संकट का मुकाबला करने के लिए खाद्य सुरक्षा के मद में 4.5 अरब डॉलर (4.2 अरब यूरो) जुटाने का प्रण भी लिया. हालांकि कुछ अंतरराष्ट्रीय एनजीओ ने इसे नाकाफी बताते हुए खाद्य सुरक्षा को लेकर जी7 के रवैये पर असंतोष जताया है.
सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए तेज उपाय करने वाले एक क्लाइमेट क्लब के गठन का भी समर्थन किया गया. आशा है कि इसी साल के अंत तक क्लब अस्तित्व में आ जाएगा. एक बयान जारी कर इन देशों ने कहा कि क्लब उन सभी देशों के लिए खुला होगा, जो पेरिस सहयोग समझौते में तय हुए लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्ध हैं. यानि वे सब देश, जो वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री से ऊपर ना बढ़ने देने और 2050 तक कार्बन न्यूट्रल बनना चाहते हैं.
क्लब कल्चर कैसा हो
बवेरियाई आल्प्स पहाड़ियों के इस आयोजन स्थल पर जुटे नेताओं की मेजबानी की, जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने. क्लाइमेट क्लब के प्रस्ताव की अगुवाई करते हुए शॉल्त्स ने कहा कि इससे बिना आपसी प्रतिस्पर्धा के सभी देशों को जलवायु लक्ष्यों को जल्द से जल्द हासिल करने का मौका मिलेगा.
सम्मेलन के आखिरी दिन मीडिया से बातचीत में शॉल्त्स ने कहा कि जब देश अपनी अर्थव्यवस्था को कार्बनमुक्त करने की रणनीतियां बनाते हैं तो "हम यह सुनिश्चित करना चाहेंगे कि हम एक-दूसरे के खिलाफ काम नहीं करें और खुद को दूसरों से अलग-थलग ना करें.”
मिसाल के तौर पर, क्लब मेंबर कार्बन की कीमत मिलकर तय कर सकेंगे, ग्रीन हाइड्रोजन के लिए साझा समानक तय कर सकेंगे. जी7 देशों की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में यह भी कहा गया कि क्लब का "इंडस्ट्री सेक्टर पर विशेष फोकस होगा और अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन कराने पर भी."
शॉल्त्स का प्रिय प्रोजेक्ट
वहीं, कई पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने ऐसे क्लब को बेकार बताते हुए कहा है कि जलवायु के मुद्दों पर सहयोग के लिए पहले से ही पर्याप्त अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म मौजूद हैं. ग्रीनपीस जर्मनी के कार्यकारी अध्यक्ष मार्टिन काइजर ने कहा, "कार्बन का न्यूनतम मूल्य तय करने और इन्हें ना मानने वाले देशों पर प्रतिबंध लगाए जाने की साफ प्रतिबद्धिता के बिना शॉल्त्स का प्रिय प्रोजेक्ट केवल "एक और क्लब" बन कर रह सकता है.
अभी यह हाल है कि खुद जी7 में शामिल अमेरिका और जापान जैसे अमीर और विकसित देश कार्बन की कीमत तय करने के लिए राष्ट्रीय स्तर की कोई योजना नहीं बना रहे हैं.
रूस को सबक और यूक्रेन का साथ
रूस पर दवाब बनाने के मुद्दे पर भी जी7 सम्मेलन में एकजुटता दिखी. देशों ने यूक्रेन का साथ देने के अलावा इस पर भी सहमति बनाई कि यह युद्ध रूस को महंगा पड़ना चाहिए और उसे "जीतना नहीं चाहिए."
शॉल्त्स ने बताया कि यूरोपीय परिषद के साथ मिलकर जर्मनी एक कॉन्फ्रेंस आयोजित करने जा रहा है, जिसका मकसद युद्ध के बाद यूक्रेन के पुनर्निमाण की योजना बनाना होगा.
यूक्रेन में जारी रूसी युद्ध का मुद्दा आने वाली नाटो सम्मेलन में भी छाया रहेगा. यह सम्मेलन स्पेन के मैड्रिड में होना है. जर्मनी से जी7 के ज्यादातर नेता वहीं का रुख करेंगे.
भूख के खिलाफ जंग
रूस- यूक्रेन युद्ध के कारण विश्व भर में अनाजों के निर्यात पर असर पड़ने से भूख का संकट पैदा हो सकता है. इससे निपटने के लिए जी7 नेताओं ने 4.2 अरब यूरो की राशि जुटाने का फैसला किया है.
यूक्रेन के बंदरगाह ब्लॉक होने के कारण गेहूं, सूरजमुखी का तेल, मक्का और ऐसी कई खाद्य सामग्रियां वैश्विक बाजारों तक नहीं पहुंच पा रही हैं. इसके कारण खाने की कीमत महंगी होती जा रही है. विशेषज्ञों ने आशंका जताई है कि अफ्रीका के कुछ देश खाने की कमी से जल्द ही भूखमरी की कगार पर जा सकते हैं. जर्मनी समेत अमेरिका और फ्रांस ने जल्द-से-जल्द ऐसे कई प्रभावित देशों को खाद्य मदद मुहैया कराने का वादा किया है.