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जर्मनी को नदियों की चेतावनी

ओंकार सिंह जनौटी
१४ सितम्बर २०२४

जर्मनी में ज्यादातर नदियां शांति और सुकून से बहती हैं. उनके किनारे आबादी बसी है. लेकिन बदलता मौसम इन नदियों को भविष्य के एक डरावने सपने में बदल रहा है.

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जर्मनी की आर घाटी का आल्टेनआर आल्टेनबुर्ग कस्बा
आर नदी की घाटी, बाढ़ से पहले और बाढ़ के बाद

हरी भरी पहाड़ियों के बीच सर्पीले रास्ते पर आगे बढ़ती आर नदी. सूखे के मौसम में आर का पानी घुटनों तक भी नहीं पहुंचता है. जर्मनी के पश्चिमी इलाके में मोजेल की इस सहायक नदी के किनारों को सुकून भरी छुट्टियों के लिए जाना जाता रहा. गर्मियों में आर घाटी में बसे गांव मेहमानों के सामने अपनी वाइन पेश करते थे. हर जगह प्रकृति का आनंद लेते साइकिल सवार मिल जाते थे.

लेकिन 14-15 जुलाई 2021 को यह तस्वीर पूरी तरह बदल गई. कुछ घंटों के भीतर हुई भारी बारिश ने 85 किलोमीटर लंबी आर को एक गुस्सैल नदी में बदल दिया. बीते 200-300 बरसों में उसके किनारे बनाई गई कई इमारतें भरभराकर गिरने लगीं. करीबन 72 घंटे के बाद आर फिर से पूरी तरह शांत हो गई, लेकिन तब तक इंसानी नक्शे पर मौजूद कई घर, पुल और रेलवे स्लीपर साफ हो चुके थे. कम से कम 135 लोगों की मौत हुई और अरबों यूरो की संपत्ति को नुकसान पहुंचा. आर ने जता दिया कि एक पतली धार जैसी नदी भी अपने पुराने रास्ते खोजने के लिए कितनी बेताब हो सकती है.

बाढ़ के बाद जर्मनी में आर नदी की घाटी
आर नदी जब तक शांत हुई तब तक बड़ा इलाका मलबे में दब चुका थातस्वीर: Thomas Frey/picture alliance/dpa

जर्मनी को बाढ़ से कितना बड़ा खतरा

आर घाटी की भीषण बाढ़ के बाद जर्मनी ने सभी नदियों के बाढ़ जोखिम को मूल्यांकन करना शुरू किया. ऐसा ही एक शोध इंडिपेंडेंट इंस्टीट्यूट फॉर एनवायर्नमेंटल इश्यूज (यूएफयू) ने किया. सितंबर 2024 में यूएफयू ने इससे जुड़ी जानकारी सार्वजनिक करते हुए कहा कि, जर्मनी में करीब 3,84,000 लोग आने वाले बरसों में कभी भी भीषण बाढ़ का शिकार हो सकते हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि राइन और उसकी सहायक नदियों के किनारे बसे 1,90,800 लोग बाढ़ के दायरे में हैं. वहीं एल्बे नदी के किनारे बसे 98,800 लोग बाढ़ के अत्यधिक खतरे का सामना कर सकते हैं. यह स्ट्डी जर्मनी की गठबंधन सरकार में शामिल ग्रीन पार्टी के संसदीय दल ने कराई. शोध में जर्मनी के सभी 16 राज्यों के बाढ़ प्रबंधन तंत्र की समीक्षा भी की गई है.

यूएफयू के रिसचर्रों के मुताबिक, "बेहिसाब बारिश की चेतावनी बहुत ही शॉर्ट नोटिस पर दी जा सकती है, ऐसे में मौसम पर नजर रखने वाले तंत्र और पूर्वानुमान बताने वाले सिस्टम का लगातार विकास करना जरूरी बना हुआ है."

फरवरी 2024 में जर्मन इंश्योरेंस एसोसिएशन (जीडीवी) ने भी ऐसी ही स्ट्डी करवाई थी. उस शोध में कहा गया कि जर्मनी में तीन लाख से ज्यादा ऐसी इमारतें है जो बाढ़ के दायरे में हैं.

जर्मनी में बाढ़ के बाद का नजारा
बाढ़ के जोखिम वाले इलाकों में बीमा करने से बचने लगी हैं इंश्योरेंस कंपनियांतस्वीर: Marijan Murat/dpa/picture alliance

भारी बारिश होगी लेकिन कहां पर, ये बताना मुश्किल क्यों?

असल में सैटेलाइट डाटा और जमीन पर मौजूद स्टेशनों की मदद से विज्ञानी मौसम का पूर्वानुमान लगाते हैं. ज्यादातर देशों में किसी बड़े इलाके के लिए 8-12 घंटे पहले लगाया गया पूर्वानुमान करीबन सटीक साबित होता है. भारत के प्रमुख अंग्रेजी अखबार 'द इंडियन एक्सप्रेस' के मुताबिक देश में फिलहाल मौसम का पूर्वानुमान 144 वर्गकिमी के ग्रिड के आधार पर लगाया जाता है.

लेकिन इतने बड़े दायरे के भीतर अगर किसी खास जगह बादल फटे या अचानक भारी बारिश हो, तो उसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. मसलन दिल्ली में भारी बारिश होगी, इसका सटीक अनुमान लगाया जा सकता है, लेकिन दिल्ली के किस इलाके में सबसे ज्यादा पानी बरसेगा, ये अनुमान नहीं लगाया जा सकता है. उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और केरल में बादल फटने की घटनाओं से हुई तबाही की एक वजह यह भी है. 

वायनाड में बाढ़ और भूस्खलन से भारी तबाही

इस पूर्वानुमान को बेहतर करने के लिए भारत समेत कई देश पूर्वानुमान के ग्रिड को 3x3 वर्गकिमी के दायरे में बदलने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन इसके लिए बड़ी संख्या में लोकल वेदर स्टेशन, सेंसर, डॉप्लर रडार, डाटा सेंटर, सुपर कंप्यूटर और सैटेलाइटों की जरूरत पड़ेगी.