जर्मनी में इस्लामिक मामलों पर सलाहकार की नियुक्ति
१४ अगस्त २०२३जर्मनी में करीब 2,800 मस्जिदें हैं. अक्सर ये बहस या विवाद के साए में होती हैं, खासकर जब किसी शहर में ऊंची मीनारों जैसे अलग शैली वाला एक पूजा स्थल शहर के नजारों के बीच अपनी जगह बना लेता है. हालांकि मस्जिदों पर वही नियम लागू होते हैं जो चर्च या यहूदी सिनेगॉग पर, लेकिन पूजा स्थलों के मामले में स्थानीय प्रशासन का भी अहम रोल होता है. इस तरह की परिस्थितियों में ही 44 साल के हुसैन हमदान की भूमिका पैदा होती है.
हमदान इस्लामिक और धार्मिक अध्ययन में डाक्टरेट हैं और जर्मनीके पहले इस्लामिक मामलों के सलाहकार हैं. उनकी जिम्मेदारी है कि स्थानीय प्रशासन और मुस्लिम समुदायों के बीच बातचीत और समझ के रास्ते खोलें.
इस्लामिक सलाहकार की भूमिका
हुसैन हमदान के लिए यह रोल नया नहीं है. वह पिछले आठ साल से जर्मनी के दक्षिण-पश्चिमी राज्य बाडेन-वुर्टेमबर्ग में इस्लामिक मामलों के सलाहकार रहे हैं जहां उन्होंने विवादों को सुलझाने का काम किया.
अपना अनुभव बांटते हुए उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, 2 जून 2015 को एक जिला प्रशासन अधिकारी ने मुझसे एक सूफी संस्था के बारे में राय पूछी. जर्मनी में सूफी कम संख्या में मौजदू हैं. स्थानीय नेताओं में सूफियों से जुड़ी कुछ दुविधाओं को सुलझाने में हमदान सफल रहे.
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2012 से हमदान कैथोलिक चर्च में काम करते रहे हैं. बाडेन-वुर्टेमबर्ग राज्य में 1.1 करोड़ लोग रहते हैं जिसमें से 8,00,000 मुसलमान हैं. इस राज्य में पहली मस्जिद 1990 के दशक में बनी. यानी मुसलमानों की आबादी काफी ज्यादा है और स्थानीय जीवन में उनकी हिस्सेदारी सुनिश्चित किए बिना काम नहीं चल सकता.
कुछ अहम सवाल
शुरूआत में हमदान को यंग मुस्लिम ऐज पार्टनर्स नाम की एक परियोजना पर काम करने का मौका मिला. यह रॉबर्ट बॉश फाउंडेशन की मदद से चलाई गई और वह स्थानीय प्रशासकों व नीति नियामकों की मदद के लिए सलाहकार के तौर पर मदद के लिए काम करने लगे.
उनकी भूमिका में रोजमर्रा के सवालों के जवाब देना शामिल है. जैसे क्या मीनार बहुत ऊंची है? स्थानीय प्रशासन में अलग अलग इस्लामिक समुदायों के बारे में ज्यादा समझ कैसे पैदा की जा सकती है? मुसलमानों को कैसे साथ लेकर चला जा सकता है? इसके अलावा इस तरह के सवाल कि युवा मुसलमानों की हिस्सेदारी में मस्जिदें क्या भूमिका निभा सकती हैं.
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ज्यादातर मामलों में इन सवालों के कोई सीधे जवाब नहीं है. जैसे एक मीनार की ऊंचाई, शहरों में इमारतों से जुड़े नियमों के तहत ही तय हो सकती है. इस तरह के मसलों में यह भी देखा जाता है कि अगर मुसलमान किसी इलाके में लंबे समय से रह रहे हैं तो वहां प्रशासन के साथ समुदाय के संबंध ज्यादा बेहतर हैं.