जर्मनी में पेश हुई पहली राष्ट्रीय सुरक्षा नीति
१४ जून २०२३चांसलर ओलाफ शॉल्त्स और कैबिनेट सदस्यों ने 14 जून को काफी वक्त से लंबित राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति पेश की.
इस नीति का मकसद है अतीत में की गई ऐसी गलतियों से बचना, जिसके कारण सरकार को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा. हालांकि जर्मनी में पहले भी सुरक्षा संबंधी नीति रही है, लेकिन विशेष तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी कोई विस्तृत नीति नहीं रही है.
कैबिनेट सदस्यों ने क्या कहा?
शॉल्त्स ने ध्यान दिलाया कि जब से उनकी सरकार एक रणनीति बनाने पर सहमत हुई, तब से यूरोप की सुरक्षा संबंधी संरचना में काफी तेजी से तब्दीली आई है. उन्होंने यूक्रेन पर हमले और नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन को नष्ट किए जाने के उदाहरण देते हुए कहा कि ऐसी घटनाओं ने रक्षा नीति बनाने की जरूरत पर बल दिया.
शॉल्त्स ने कहा, "मैं सभी घटनाओं पर जोर दे रहा हूं, ताकि स्पष्ट हो सके कि पिछले डेढ़ सालों में जर्मनी के लिए सुरक्षा माहौल कितना बदला है. सारे बदलावों के बावजूद, अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना एक देश का सबसे अहम कर्तव्य है." शॉल्त्स ने यह भी कहा कि पहले की नीतियों में जहां बचाव पर ध्यान दिया गया था, वहीं नई रणनीति में विदेश नीति पर ज्यादा ध्यान होगा. जर्मनी को कच्चे माल की सुरक्षित और स्थायी आपूर्ति होती रहे, इस अहमियत पर भी चांसलर ने जोर दिया.
विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने भी यूक्रेन पर हमले के बाद से ही सुरक्षा पर ज्यादा मजबूती से ध्यान दिए जाने की जरूरत से सहमति जताई. उन्होंने कहा, "यूक्रेन के खिलाफ रूस के क्रूर हमले से हम सभी को यह सीखना पड़ा कि आजादी और शांति आसमान से नहीं टपकते हैं."
वित्त मंत्री क्रिस्टियान लिंडनर ने कहा कि जर्मनी 2024 से दो प्रतिशत सुरक्षा खर्च को हासिल करने का लक्ष्य रख रहा है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि यह लक्ष्य केवल विशेष फंड से ही पूरा किया जा सकता है, वरना बड़े स्तर पर बचत करने या टैक्स बढ़ाने की जरूरत पड़ेगी.
क्या है संदर्भ?
शॉल्त्स की गठबंधन सरकार नवंबर 2021 में एक विस्तृत रणनीति बनाने पर सहमत हुई थी. फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद इस प्रस्ताव को ज्यादा स्वीकार्यता मिली. यूक्रेन युद्ध ने जर्मन सेनाकी कमियों को भी जाहिर किया. ऊर्जा क्षेत्र में रूस पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता भी उजागर हुई. साथ ही, गैस पाइपलाइनों जैसे बेहद अहम बुनियादी ढांचे की हिफाजत की जरूरत पर भी ध्यान गया.
आलोचकों का कहना है कि चीन और रूस जैसे अधिकारवादी देशों की तेजी से बढ़ती हठधर्मिता के बीच जर्मनी, नई वैश्विक चुनौतियों के प्रति काफी बेपरवाह रहा. ऐसे में यह सुरक्षा नीति महीनों के सलाह-मशविरे के बाद तैयार की गई है और इसके लिए बड़े स्तर पर विशेषज्ञों और जिला, प्रांत और राष्ट्रीय स्तर पर लोगों से सलाह ली गई है.
शुरुआत में सत्तारूढ़ गठबंधन के बीच पहले ही साल में ड्राफ्ट पूरा करने की सहमति बनी थी. लेकिन फिर पार्टियों और मंत्रालयों के बीच असहमतियों के कारण प्रक्रिया लंबी खिंची. सबसे विवादास्पद मुद्दा था, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के गठन का विचार, जिसे चांसलरी और मंत्रालयों के बीच सत्ता संतुलन के बिगड़ने की आशंकाओं के मद्देनजर ड्रॉप कर दिया गया.
एसएम/सीके (रॉयटर्स, एपी)