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समाजसंयुक्त राज्य अमेरिका

न्यू जर्सी में 30 फीट ऊंची बुद्ध प्रतिमा बनी धर्मों का संगम

९ दिसम्बर २०२४

अमेरिका के न्यू जर्सी में बनी देश की सबसे ऊंची बुद्ध प्रतिमा विभिन्न धर्मों के लोगों को साथ लाने का केंद्र बन गई है. इस प्रतिमा और बौद्ध केंद्र ने बहुत से लोगों को जीवन का मंत्र दिया है.

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न्यू जर्सी ध्यान केंद्र में स्थापति बुद्ध प्रतिमा
अमेरिका की सबसे ऊंची बौद्ध प्रतिमातस्वीर: Luis Andres Henao/AP/picture allince

न्यू जर्सी के एक हाइवे से गुजरते हुए, एक बगीचे के बीचोबीच 30 फुट ऊंची बुद्ध की प्रतिमा अचानक नजर आती है. यह प्रतिमा फ्रैंकलिन टाउनशिप के जंगलों में, प्रिंसटन के पास स्थित है. इसे करीब दस साल पहले एक श्रीलंकाई भिक्षु के नेतृत्व में बनाया गया था. वह थेरवादा बौद्ध धर्म के अनुयायी थे. उनका सपना था कि सभी धर्मों के लोग एक साथ आएं. 

न्यू जर्सी की बौद्ध प्रतिमा
न्यू जर्सी में बौद्ध विहार में पूजा करता एक श्रद्धालुतस्वीर: Luis Andres Henao/AP/picture allince

आज, यह प्रतिमा न्यू जर्सी बौद्ध विहार और ध्यान केंद्र का हिस्सा है. यह स्थान बौद्ध, हिंदू और ईसाई अनुयायियों का धार्मिक और आध्यात्मिक केंद्र बन गया है. यहां धर्मों के बीच संवाद को बढ़ावा दिया जाता है. 

हर देश के लोगों के लिए जगह

इस जगह आने वालों में प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर हैं, जो कोरियाई ईसाई चर्च में बड़े हुए लेकिन अब तिब्बती बौद्ध धर्म को मानते हैं. एक नेपाली समुदाय के नेता भी हैं, जो शांति उद्यान की देखभाल करते हैं और अंतरधार्मिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं. एक महिला, जो वर्षों से प्रतिमा के पास रहती थीं, अब बौद्ध धर्म को मानती हैं.

प्रोफेसर डैनियल चोई 2015 से इस प्रतिमा के सामने ध्यान कर रहे हैं. वह बताते हैं, "यह जगह लोगों को जोड़ने का केंद्र है." उन्होंने कहा कि यह जगह खास है क्योंकि अमेरिका में ज्यादातर बौद्ध केंद्र निजी हैं, जहां हर कोई आसानी से नहीं जा सकता. 

चोई ने कहा, "यह न्यू जर्सी की तरह है. यहां ट्रैफिक की आवाज सुनाई देती है, हवाई जहाज ऊपर से गुजरते हैं, और लोग हंसते-बोलते हुए अपनी आस्था का प्रदर्शन करने आते हैं." उन्होंने यह भी बताया कि यहां हर तरह के लोग आते हैं, जिनमें श्रीलंकाई, कोरियाई, चीनी, भारतीय, जापानी और नेपाली शामिल हैं.

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यह विहार थेरवादा बौद्ध धर्म का पालन करता है, जो श्रीलंका, बर्मा और थाईलैंड में प्रचलित है. लेकिन यहां सभी बौद्ध परंपराओं और धर्मों का स्वागत किया जाता है. 

हर पल में जीने की सीख

चोई ने पहली बार यहां आने पर कुआन यिन की प्रतिमा देखी. वह महायान बौद्ध धर्म में करुणा की देवी हैं. उन्होंने इसे देखकर महसूस किया कि इस जगह पर सभी के लिए कुछ है. यहां के पेड़ों पर तिब्बती प्रार्थना के झंडे लगे हैं, जो हवा में लहराते हैं. दीवार पर बनाई गई एक पेंटिंग भी है, जिसे शांति का प्रतीक कहा जाता है. इसे स्थानीय छात्रों ने बनाया है. 

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नेपाली समुदाय के नेता तुलसी मजरजन कहते हैं, "हमारी समरसेट काउंटी पूरी दुनिया का छोटा रूप बन गई है." उन्होंने बताया कि पहले उन्हें मंदिर जाने के लिए तीन घंटे का सफर करना पड़ता था, लेकिन अब मंदिर उनके घर से दस मिनट की दूरी पर है. 

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पड़ोस में रहने वाली 76 वर्षीय रिटायर्ड टीचर कैरोल क्यूह्न ने बताया कि बौद्ध धर्म ने उन्हें पति के निधन के बाद शांति दी. उन्होंने कहा, "बौद्ध धर्म हमें इस पल में जीने की सीख देता है. ध्यान ने मुझे दुख को सकारात्मकता में बदलने में मदद की." 

हाल ही में उन्होंने विहार के मुख्य भिक्षु के साथ प्रार्थना में हिस्सा लिया. उन्होंने कहा, "यह प्रतिमा मुझे शांति, करुणा और सभी के प्रति सम्मान की याद दिलाती है." 

वीके/सीके (एपी)

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