मादा चिंपैंजियों में दिखे औरतों जैसे मेनोपॉज के लक्षण
२७ अक्टूबर २०२३गुरुवार को साइंस जर्नल में प्रकाशित एक रिसर्च पेपर में दलील दी गई है कि चिंपैंजियों को भी इस लिस्ट में शामिल किया जाना चाहिए. इस पेपर में ऐसे संकेतों की बात की गई हैं जो औरतों में मेनोपॉज होने के पीछे की कुछ विकासवादी जरूरतों से जुड़ी हैं.
जीवन के आखिर तक प्रजनन
स्तनधारियों में ज्यादातर मादाएं अपने जीवन के आखिर तक बच्चे पैदा करती हैं. हालांकि इंसानों में प्रोडक्टिव हारमोन घटने लगते हैं और 50 साल की अवस्था आने के बाद ओवरी फंक्शन पूरी तरह बंद हो जाता है. इसी तरह से व्हेलों की भी सिर्फ पांच ऐसी प्रजातियां हैं जो बच्चे पैदा करने की क्षमता खत्म होने के बाद भी लंबे समय तक जीती हैं.
इंसानों की तरह बहू चुनती है मादा बोनोबो
इस तरह की प्रवृत्ति केवल मुट्ठी भर जीवों में ही क्यों पनपी या बनी रही इसके कारण बहुत स्पष्ट नहीं हैं. कुछ वैज्ञानिकों ने "दादी मां अवधारणा" के जरिए इसे समझने की कोशिश की है. इसके मुताबिक बुजुर्ग औरतें प्रजनन क्षमता खत्म होने के बाद कम संसाधन इस्तेमाल करती हैं और अपने बच्चों के बच्चों का जीवन संवारने या अस्तित्व को बचाने पर ध्यान देती हैं. समाज के लिहाज से यह उचित रहता है और उनकी उपयोगिता बनी रहती है.
चिंपैंजियों में मेनोपॉज
इस पेपर के लिए रिसर्चरों ने 185 मादा चिंपैंजियों की मृत्यु दर और प्रजनन दर का अध्ययन किया है. ये चिंपैंजी एनगोगो समुदाय के जंगली चिंपैंजी हैं जो युगांडा के किबाले नेशनल पार्क में रहते हैं. रिसर्च 1995 से 2016 के बीच किया गया.
रिसर्च टीम ने खासतौर से एक मेट्रिक की गणना की जिसे पोस्ट रिप्रोडक्टिव रिप्रेजेंटेशन कहा जाता है. यह प्रजनन अवस्था के बाद के वयस्क जीवन काल का औसत अनुपात है. यह दिखाता है कि एनगोगो चिंपैंजी मादाएं औसतन अपने वयस्क जीवन काल का 20 फीसदी समय प्रजनन अवस्था के बाद गुजारती हैं. इंसानों की तुलना में यह औसत थोड़ा सा ही कम है.
इसके पहले चिंपैंजियों में मेनोपॉज का पता लगाने की कोशिश में आंकड़े जुटाने की बाधा आती रही है. पहले की कोशिशों में आबादी के आंकड़ों का शामिल किया जाता था और इसके तरीके बहुत अच्छे नहीं थे. एक बार तो सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज यानी एसटीडी की वजह से बहुत सी बूढ़ी मादाओं में बड़े पैमाने पर प्रजनन क्षमता खत्म हो गई थी. ऐसी चीजें इस बार ना हो इसलिए रिसर्च टीम ने आबादी के आंकड़ों को मादाओं में हार्मोन की स्थिति से जोड़ कर देखा.
हार्मोन के स्तर में समानता
उन्होंने 66 मादाओं के मूत्र सैंपल जमा किए. इस दौरान इनकी उम्र और प्रजनन स्थिति का भी ध्यान रखा गया. इसके बाद गोनैडोट्रॉपिंस, एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टिन के स्तर की माप की गई. इससे पता चला कि उनके हार्मोनल पैटर्न लगभग वही हैं जो मीनोपॉज से गुजर रही औरतों के होते हैं.
चिंपैंजियों के मीनोपॉज का मामला अभी खत्म नहीं हुआ है. वैज्ञानिकों ने दो संभावनाएं जताई हैं. जंगली जीवों में प्रजनन क्षमता के बाद भी लंबे जीवन काल के आसार रहते हैं अगर उन्हें शिकारियों और बीमारी से बचा कर रखा जा सके. एनगोगो के चिंपैंजियों के लिए यह बात सही हो सकती है. इस इलाके में तेंदुए नहीं हैं. जाहिर है कि इनके लिए कोई और खतरा नहीं है.
दूसरी संभावना यह है कि सुदूर इलाके में रहने वाले एनगोगो चिंपैंजी शायद ऐतिहासिक आबादी का हिस्सा हैं क्योंकि ये लोग शिकार और जंगलों की कटाई जैसी मानवीय गतिविधियों से बिल्कुल अछूते हैं.
अगर ऐसा है तो वैज्ञानिकों को मीनोपॉज की विकासवादी सिद्धांतों को बदलना होगा. चिंपैंजियों के समुदाय में बेटियां जिस समुदाय में पैदा होती हैं उन्हें वह छोड़ना पड़ता है. दूसरी तरफ नर कई मादाओं से संभोग करते हैं. इसका मतलब है कि नरों को यह पता नहीं होता है कि उनके बच्चे कौन हैं. कहानी को आगे बढ़ाएं तो दादियों या नानियों को भी नहीं पता होता कि उनके नाती पोते कौन हैं. ऐसे में दादी मां वाला सिद्धांत काम नहीं आएगा.
चिंपैंजियों में मेनोपॉज का विकास
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के ब्रायन वुड्स का कहना है कि इसके बजाए मेनोपॉज का विकास शायद बूढ़ी होती मादाओं और उनकी बेटियों के बीच प्रजनन की प्रतियोगिता को घटाने के लिए हुआ होगा. जब कोई मादा चिंपैंजी पहली बार किसी समुदाय में दाखिल होती है तो वह दूसरे सदस्यों के साथ कम रिश्तों से शुरूआत करती है. जैसे जैसे प्रजनन होता है उसके रिश्ते बढ़ते जाते हैं और आखिर में यह फिर घट जाता है ताकि जवान मादाओं के साथ संघर्ष ना हो.
रिसर्चर इस स्टडी को बोनोबो पर करना चाहते हैं. जानवरों के साम्राज्य में वह चिंपैंजी के बाद दूसरा प्राणी है जो इंसानों के बहुत करीब है.
एनआर/एसबी(एएफपी)