क्या भारत में वाइन का वक्त आ गया है?
८ दिसम्बर २०२२भारत की सबसे बड़ी वाइन निर्माता कंपनी सुला विनयर्ड्स अब शेयर बाजार का रुख कर रही है. भारतीय मध्य वर्ग में वाइन की बढ़ती लोकप्रियता के दम पर कंपनी उम्मीद कर रही है कि शेयर बाजार में उसका जोरदार स्वागत होगा और वह बड़ी रकम जुटाने में कामयाब होगी.
भारत में शराब पीने वालों को आमतौर पर हार्ड लिकर यानी ऐसी शराब का चहेता माना जाता है जिसमें अल्कोहल की मात्रा ज्यादा होती है, मसलन, व्हिस्की या रम या इसी तरह के दूसरे ड्रिंक. इस बाजार में वाइन का हिस्सा सिर्फ एक फीसदी है. 1.4 अरब लोगों के देश में औसतन साल में कुछ चम्मच वाइन ही पी जाती है.
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हालांकि उत्पादकों को उम्मीद है कि जैसे 1980 के दशक में वाइन की लोकप्रियता में उछाल आया था, वैसा ही भारत में भी होगा. वैसे, विशेषज्ञों का कहना है कि इस उम्मीद को ज्यादा ऊंचा नहीं उड़ने देना चाहिए क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम की अनिश्चितता कभी भी पानी फेर सकती है. इसके अलावा, भारत विदेशों से वाइन आयात भी कर रहा है, जिसका असर स्थानीय उत्पादकों पर होगा. मसलन, हाल ही में ऑस्ट्रेलिया से जो व्यापार समझौता हुआ है, उसके तहत वहां की वाइन पर टैक्स घटा दिया गया है और वे सस्ते में अपने उत्पाद भारत में बेच पायेंगे.
‘वाइन का समय आ गया है'
फिर भी, सुला विनयर्ड्स के संस्थापक और सीईओ राजीव सामंत को लगता है कि "वाइन का समय आ गया है.” अमेरिका की स्टैन्फर्ड यूनिवर्सिटी के छात्र रहे सामंत जब कैलिफॉर्निया से लौटे थे तो शुरुआत में उन्होंने नासिक में अपनी पारिवारिक जमीन पर गुलाब और आम उगाने शुरू किए थे.
वह बताते हैं, "आज जहां सुला है, वहां सिर्फ घास के मैदान हुआ करते थे. यह तेंदुओं और सांपों का घर था. ना बिजली थी, ना टेलीफोन लाइन. ऐसा लगता था कि वहां पिछली सदी चल रही है. मुझे यहां कुछ खूबसूरती नजर आई. उस जगह में कुछ तो था जो मुझे पसंद आ गया था.”
भारत दुनिया के सबसे बड़े अंगूर उत्पादकों में से एक है. नासिक उन खास इलाकों में हैं, जहां के अंगूर अच्छे माने जाते हैं. लेकिन पहले ये अंगूर खाने के लिए ही प्रयोग होते रहे.
सामंत को कैलिफॉर्निया की नेपा घाटी में अंगूरों की खेती देखकर प्रेरणा मिली थी, कि ऐसा ही कुछ भारत में किया जाए. वह कहते हैं, "क्यों ना एक अच्छी पीने लायक वाइन भारत में ही तैयार की जाए, जिस पर भारत में बनने का तमगा भी हो. मैंने वही करने का फैसला किया.”
सामंत ने अपनी कंपनी को अपनी मां सुलभा के नाम पर सुला नाम दिया. अंगूर की पहली बेल 1996 में रोपी गई थी. बाद में वहां एक रिजॉर्ट भी बनाया गया जिसका मकसद नासिक को भारत की वाइन-कैपिटल के रूप में मशहूर करना था.
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अब 26 साल बाद सुला शेयर बाजार में जाने को तैयार है और अगले हफ्ते उसका आईपीओ खुल रहा है. बुधवार को कंपनी ने बताया कि एक तिहाई हिस्सा बेचा जा रहा है जिसकी कीमत 35 करोड़ डॉलर यानी 29 अरब रुपये आंकी गई है. कंपनी को करीब 10 अरब रुपये जुटाने की उम्मीद है.
भारतीय वाइन की चुनौतियां
मुंबई स्थित अजीब बालगी ने ‘द हैपी सिंह' नाम से एक कंपनी बनाई है और वह शराब के व्यापारियों को सलाह देते हैं. वह बताते हैं कि क्वॉलिटी के मामले में भारत की महंगी वाइन दुनिया की अच्छी वाइन से मुकाबला करने लगी है, जबकि उसका अंदाज भारतीय बना हुआ है.
बालगी कहते हैं, "वे ऑस्ट्रेलियन या फ्रेंच वाइन जैसा स्वाद तो नहीं देतीं. भारत भूमध्य रेखा के ज्यादा करीब है इसलिए हमारे अंगूर ज्यादा पके होते हैं.” उनके मुताबिक जो लोग वाइन पीने की शुरुआत कर रहे हैं वे मिठास की ओर आकर्षित होते हैं इसलिए उन्हें मिली जुली वाइन ज्यादा अच्छी लगती है. बहुत से लोग सांगरिया से शुरुआत करते हैं.
1995 में भारत में वाइन का उपभोग लगभग ना के बराबर था जो अब बढ़कर इस स्तर पर पहुंच गया है कि इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ वाइन एंड वाइन (IOVV) के अनुसार पिछले साल दो करोड़ लीटर वाइन पी गई. महिलाओं के सार्वजनिक रूप से शराब पीने को मान्यता मिलने से यह चलन और बढ़ा है.
मुंबई स्थित उद्योगपति परिमल नायक वाइन के चाहने वालों में से हैं. अपना 44वां जन्मदिन मनाने के लिए वह अपने परिवार के साथ सुला विनयर्ड्स गए थे. वह कहते हैं, "सुला वाइन में बहुत सुधार हुआ है. यहां माहौल भी अच्छा है. मुझे इस पर गर्व है.”
हालांकि बालगी कहते हैं कि वाइन के विस्तार की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है कीमत. वाइन पर भी अमूमन उतना ही टैक्स लगता है जितना अन्य शराबों पर, जबकि इसमें अल्कोहल की मात्रा बहुत कम होती है. वह कहते हैं, "भारतीय वाइन की एक बोतल की कीमत लगभग उतनी ही है जितनी रम या व्हिस्की की है. भारत में ज्यादा वाइन नहीं बिकती क्योंकि ज्यादातर लोग इसे खरीद ही नहीं पा रहे हैं.”
वीके/एनआर (एएफपी)