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स्वच्छ ऊर्जा पर जोर लेकिन जीवाश्म ईंधन पर कोई सहमति नहीं

आमिर अंसारी
१० सितम्बर २०२३

नई दिल्ली में जी20 के नेताओं ने अपने संयुक्त घोषणा पत्र में वैश्विक आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देने और जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों का आह्वान किया है.

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सौर ऊर्जा
सौर ऊर्जातस्वीर: Ivan Pisarenko/AFP/Getty Images

जी20 के घोषणा पत्र में जलवायु परिवर्तन का उल्लेख किया गया, जिसमें नेताओं ने "कोयला आधारित बिजली को चरणबद्ध तरीके से कम करने के प्रयासों में तेजी लाने की आवश्यकता" पर जोर दिया. लेकिन जी20 ने तेल और गैस समेत सभी प्रदूषण फैलाने वाले जीवाश्म ईंधनों को चरणबद्ध तरीके से बंद करने की प्रतिबद्धता नहीं जताई.

दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद में 85 फीसदी हिस्सा रखने वाले और 80 प्रतिशत उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार जी20 ने कहा कि यह 2030 तक वैश्विक स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने के प्रयासों को आगे बढ़ाएगा. साथ ही कहा है कि वह अनुपयोगी जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को खत्म करने और तर्कसंगत बनाने के लिए 2009 में पिट्सबर्ग में किए गए अपने वादे को कायम रखेगा.

महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देने राजघाट पहुंचे जी20 के नेता
महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देने राजघाट पहुंचे जी20 के नेतातस्वीर: AFP

जीवाश्म ईंधन पर कठोर कदम नहीं

भारत के जी20 शेरपा अमिताभ कांजी20त ने इसे, "जलवायु कार्रवाई पर संभवतः सबसे जीवंत, गतिशील और महत्वाकांक्षी दस्तावेज" बताया था. जबकि अधिकांश जलवायु और ऊर्जा विशेषज्ञ उतने उत्साहित नहीं दिख रहे हैं. हालांकि वे इस बात पर राजी हैं कि जी20 नेताओं ने जलवायु पर एक कड़ा संदेश दिया है और कार्रवाई की बात की है.

लेकिन घोषणा पत्र जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध होने में विफल रहा, जिसे संयुक्त राष्ट्र ने शुक्रवार को जलवायु प्रगति पर एक वैश्विक स्टॉकटेकिंग रिपोर्ट में नेट जीरो लक्ष्य तक पहुंचने के लिए "अनिवार्य" बताया था.

शिखर सम्मेलन से पहले जी20 जलवायु मंत्रियों की आखिरी बैठक में भी असहमति बनी हुई थी.

वैश्विक नेताओं और जलवायु विशेषज्ञों का कहना है कि घोषणा ने काफी हद तक बातचीत को आगे बढ़ाया है, जिससे इस साल के अंत में दुबई में कॉप28 सम्मेलन में मिलने पर एक महत्वाकांक्षी जलवायु समझौते के लिए मंच तैयार हुआ है.

क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल के हरजीत सिंह के मुताबिक, "हालांकि नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों के प्रति जी20 की प्रतिबद्धता सराहनीय है, लेकिन यह मूल कारण को किनारे कर देती है, जो है जीवाश्म ईंधन पर वैश्विक निर्भरता."

जी20 समूह के नेताओं में इस बैठक में प्रदूषण फैलाने वाले जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की प्रतिबद्धता नहीं हो पाई, जिसे एक दिन पहले ही संयुक्त राष्ट्र ने नेट जीरो लक्ष्य हासिल करने के लिए जरूरी माना था.

इस गुट के सदस्य देशों में से 12 देश ऐसे हैं जो अपना प्रति व्यक्ति उत्सर्जन कम करने में सफल रहे. इनमें ब्रिटेन, जर्मनी और अमेरिका शामिल हैं. हालांकि दूसरे देश ऐसा कर पाने में विफल रहे जिनमें इस बार जी20 की मेजबानी कर रहे भारत समेत इंडोनेशिया और चीन भी हैं. इन देशों का कार्बन उत्सर्जन कम होने के बजाए बढ़ा है.

इंडोनेशिया को पिछले साल कोयले की जगह दूसरे ईंधन इस्तेमाल करने के लिए अमीर देशों से लाखों डॉलर की मदद भी मिली थी लेकिन उसका प्रति व्यक्ति उत्सर्जन 2015 के मुकाबले 56 फीसदी बढ़ा है.

क्या है दिल्ली में हो रहे G20 का पूरा एजेंडा

मुंबई स्थित जलवायु थिंक टैंक E3G में ऊर्जा विश्लेषक मधुरा जोशी कहती हैं, "इस जी20 में बहुत कुछ पहला-पहला हुआ है." वह कहती हैं, "हालांकि यह निराशाजनक है कि जी20 जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से कम करने पर सहमत नहीं हो सका है."

उन्होंने कहा, "नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ाने और जीवाश्म ईंधन को कम करने पर साथ मिलकर काम करने की जरूरत है. हमें नेताओं की ओर से मजबूत और साहसिक कार्रवाई की जरूरत है. अब हम सबकी निगाहें कॉप28 पर हैं. क्या नेता वहां कुछ कर पाएंगे."

कार्बन उत्सर्जन पर भी सहयोग

नई दिल्ली घोषणा पत्र में सदस्य देशों ने पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और एक साथ विकास जैसे मुद्दों पर पर आम सहमति दिखाने के साथ के साथ-साथ इसके लक्ष्यों को पूरा करने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता भी दोहराई.

घोषणा पत्र में पर्यावरण संकटों का भी जिक्र है और इन संकटों से निपटने का जिक्र भी किया गया है. जलवायु परिवर्तन की लगातार आ रही चुनौतियों पर विशेष कार्य योजना की वकालत की गई है. जी20 सदस्य देशों के बीच इस बात पर सहमति बनी है कि जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा विकासशील देश प्रभावित हो रहे हैं. साथ ही घोषणा पत्र में पेरिस समझौते पर ध्यान केंद्रित करने और उस दिशा में तेजी से काम करने पर जोर दिया गया है.

यही नहीं जी20 के नेताओं ने माना है कि विकासशील देशों को कम कार्बन उत्सर्जन की दिशा में बदलाव के लिए समर्थन की जरूरत है.