दो साल पुरानी जर्मनी की ओलाफ शॉल्त्स सरकार का रिपोर्ट कार्ड
२० जुलाई २०२३सोशलिस्ट डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी), ग्रीन पार्टी और फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी (एफडीपी) के गठबंधन वाली जर्मनी की वर्तमान सरकार दो साल पहले सितंबर महीने में चुनी गई थी. चार साल के कार्यकाल का आधा वक्त गुजरने के बाद सरकार का रिपोर्ट कार्ड कुछ खास नजर नहीं आता. कम से कम जनता की राय जानने के लिए किए गए सर्वे तो यही बताते हैं. हर चार में से तीन जर्मन नागरिक सरकार से ज्यादा खुश नहीं हैं या पूरी तरह असंतुष्ट हैं.
2022 में पतझड़ के महीनों में ही यह साफ होने लगा था कि सरकार की लोकप्रियता भी गिरने लगी है और अगर इस वक्त चुनाव हो जाएं तो इस गठबंधन को बहुमत नहीं मिलेगा. ओपिनियन पोल में शॉल्त्स की पार्टी एसपीडी, दूसरी पार्टी सीडीयू और धुर दक्षिणपंथी दल एएफडी से पिछड़कर तीसरे स्थान पर पहुंच गई है. वहीं गठबंधन में सबसे छोटी पार्टी एफडीपी पिछले चुनावों के मुकाबले अपना एक तिहाई जनाधार खो चुकी है जबकि ग्रीन पार्टी जनता की रेटिंग में पांच सालों के निचलने पायदान पर है.
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क्या परेशान हैं शॉल्त्स
ऐसा लगता है कि चांसलर शॉल्त्स इन नकारात्मक संकेतों के बावजूद ज्यादा परेशान नहीं हैं. शुक्रवार को बर्लिन में हुई प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने कहा, "मुझे पूरा भरोसा है कि एएफडी का प्रदर्शन अगले चुनावों में भी वैसा ही होगा जैसा पिछली बार था." अपनी पार्टी के भविष्य को लेकर भी शॉल्त्स उम्मीद से भरे हैं.
जर्मन प्रसारक एआरडी से बातचीत में उन्होंने बेफिक्री से कहा, "यह सरकार नया जनादेश लेकर आएगी." चांसलर शॉल्त्स एएफडी को 'खराब-मूड पार्टी' कहते आए हैं जिसकी लोकप्रियता सिर्फ संकट के समय ही बढ़ती है. मार्च में संसद के निचले सदन बुंडेसटाग में दिए एक बयान में उन्होने कहा, पर्यावरण संकट सिर पर है, यूरोप में युद्ध लौट आया है और दुनिया में ताकत का संतुलन बदल रहा है. संघीय सरकार इन सारी चुनौतियों का सामना कर रही है. इस हलचल का अंत हम सबके लिए बेहतर रहेगा लेकिन एएफडी के लिए नतीजा बुरा होगा क्योंकि उसका आधार खत्म हो जाएगा.
आकार ले रही है जर्मनी की नारीवादी विदेश नीति
शॉल्त्स के पास बेहिसाब आत्मविश्वास है. वह शांत रहकर काम करते जाने और खुद पर कभी शक ना करने की नीति पर कायम रहते हैं. इसी मंत्र के आधार पर 65 वर्षीय शॉल्त्स तीस सालों से राजनीति करते आ रहे हैं. उनके आलोचक कहते हैं कि वो एक चतुर मूर्ख नजर आते हैं, खासकर जब उन्हें चुनौती दी जाए. ऐसा लगता है मानो उन्हें इस बात पर बहुत ज्यादा विश्वास है कि उनकी नीतियां तर्कसंगत हैं इसलिए सही हैं. जब उनसे सवाल पूछे जाएं तो कई बार आप पाएंगे कि शॉल्त्स दूसरों को नीचा दिखा रहे हैं. उनकी पार्टी में इसे ताकतवर नेता की खूबी माना जाता है लेकिन दूसरों के लिए यह अहंकार से कम नहीं है.
शॉल्त्स सवालों से बच कर निकलने में माहिर हैं और अक्सर गोल-मोल जवाब देते हैं. उनकी आवाज हमेशा शांत और भावहीन बनी रहती है. यही वजह है कि उनके स्टाइल की रोबोट से तुलना करते हुए उन्हें शॉल्त्जॉमैट कहा जाता है. हालांकि उनकी पार्टी के सांसदों का कहना है कि चांसलर अगर चाहें तो अलग तरह से काम कर सकते हैं. पर्दे के पीछे बहस करते समय वह काफी भावपूर्ण होते हैं लेकिन वह अपने इस रूप को जनता के सामने आने नहीं देते.
पवनचक्कियां नहीं युद्ध टैंक
सत्ता संभालने के बाद गठबंधन सरकार ने एक नई शुरूआत और तरक्की का वादा किया था. जलवायु संरक्षण, डिजिटाइजेशन और आर्थिक बदलाव के लिए अहम परियोजनाओं पर काम करने की बात कही गई हालांकि ये प्राथमिकताएं जल्दी ही बदल गईं. यूक्रेन पर रूस की चढ़ाई और चांसलर शॉल्त्स के प्रसिद्ध 'टर्निगं पॉइंट' बयान के बाद स्थितियों ने बहुत तेजी के साथ करवट ली. जर्मनी में सालाना 400,000 घर और हर दिन पांच पवन चक्कियां लगाने के प्लान की जगह जर्मनी ने 100 अरब यूरो अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने पर खर्च के लिए दिए और ऐसे ही अरबों लगे रूसी गैस और मुद्रास्फीति की मार झेल रहे लोगों को आर्थिक राहत देने में.
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2022 में जर्मनी ने अकेले यूक्रेन से दस लाख रिफ्यूजी लोगों को पनाह दी. इसके अलावा अमेरिका और ईयी के साथ मिलकर यूक्रेन को मानवीय सहायता और हथियारों की मदद भी दी जा रही है हालांकि शुरूआत में शॉल्त्स पर आरोप लगे कि वो मदद के लिए आगे आने में आनाकानी कर रहे हैं. किसी भी संघीय सरकार ने इससे पहले इतनी मुसीबतें एक साथ नहीं झेली हैं.
गठबंधन सरकार ने पहले साल तो एकता दिखाई लेकिन धीरे-धीरे अनबन सतह पर आने लगी. एसडीपी और ग्रीन पार्टियां राज्य की ज्यादा भूमिका की समर्थक हैं जबकि नवउदारवादी पार्टी एफडीपी कम से कम सरकारी दखल चाहती है. जैसे जैसे सरकार की लोकप्रियता का ग्राफ गिरा है, हर पार्टी चाहती है कि उसकी अलग पहचान कायम रहे. ग्रीन पार्टी पर्यावरण संरक्षण के मसलों पर समझौता नहीं चाहती जबकि एफडीपी खुले बाजार के पक्ष में है जिससे गठबंधन में उठापटक खत्म होने का नाम नहीं ले रही.
कौन तय करता है एजेंडा
घरों को गर्म रखने के लिए कार्बन मुक्त व्यवस्था लागू करना, बजट में कटौती या बच्चों के लिए आर्थिक मदद जैसे मामलों पर सरकार में शामिल तीनों पार्टियां एकमत ही नहीं हो पा रही हैं. एफडीपी अगले साल कोई नया कर्ज नहीं चाहती और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए वह जबरदस्त बजट कटौती करना चाहती है क्योंकि अमीरों पर कर्ज लगाना उसकी नीतियों के खिलाफ है. पार्टियों की इस खटपट में चांसलर शॉल्त्स अक्सर नदारद रहते हैं जिसकी वजह से उनकी आलोचना होती है. ग्रीन्स पार्टी का कहना है कि शॉल्त्स एफडीपी की कोशिशों पर इसलिए चुप हैं क्योंकि इससे उन्हें ही फायदा होता है लेकिन शॉल्त्स अपनी जगह से हिलते नहीं हैं.
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अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने अमेरिकी काउबॉय का किरदार निभाने वाले जाने-माने अभिनेता जॉन वेन का जिक्र करते हुए कहा था कि जब राजनीति की बात आती है तो लोगों के लिए वो किरदार एक मानक मॉडल है जिसे लोग महान समझते हैं, एक ऐसा शख्स जो ताकतवर है दूसरों के खिलाफ खड़ा हो सकता है लेकिन चीजें इस तरह से काम नहीं करतीं. शॉल्त्स ने कहा, ये तीन पार्टियों और 8 करोड़ लोगों का एक परिवार है जिनकी सुखद भविष्य को लेकर बहुत सारे मसलों पर अपनी राय है. इस आधुनिक परिवार के लिए एक तानाशाही पितृसत्तात्मक अधिकारवादी इंसान सही नहीं होगा.