कौन है हाथरस में सौ से ज्यादा लोगों की मौत का जिम्मेदार?
३ जुलाई २०२४दिल दहलाने वाली यह घटना हाथरस के सिकंदराराऊ कस्बे के फुलरई गांव में तब हुई जब साकार हरि बाबा उर्फ भोले बाबा नाम के एक संत के सत्संग के बाद लोग वापस जाने लगे. प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, बाबा जब कार्यक्रम स्थल से निकल रहे थे तो उन्हें छूने और उनके पास तक पहुंचने के लिए लोग दौड़ने लगे. इसी दौरान भगदड़ मच गई और देखते ही देखते लाशों के ढेर लगने लगे. आगरा के सीएमओ के मुताबिक, हाथरस में पोस्टमॉर्टम के लिए जगह नहीं बची है इसलिए शवों को पोस्टमॉर्टम के लिए आगरा मॉर्चरी में लाया जा रहा है.
घटना के जो वीडियो सामने आ रहे हैं, वे दिल को झकझोर देने वाले हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घटना के बाद तत्काल आला अफसरों को वहां पहुंचने का निर्देश दिया. साथ ही अपने तीन मंत्रियों को भी तुरंत हाथरस जाने को कहा. यूपी के डीजीपी प्रशांत कुमार और मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह तत्काल घटनास्थल पर पहुंचे और बचाव कार्यों का जायजा लिया. मुख्यमंत्री ने घटना की जांच के लिए कमेटी का गठन किया है और 24 घंटे के भीतर रिपोर्ट मांगी है.
कैसे हुआ हादसा?
यूपी के मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने मीडिया को बताया कि कार्यक्रम में 80 हजार लोगों के शामिल होने की अनुमति थी लेकिन मौके पर इससे कहीं ज्यादा भीड़ जमा हो गई. घटनास्थल पर पहुंचे यूपी सरकार के मंत्री संदीप सिंह ने मीडिया से बातचीत में कहा, "राज्य सरकार सभी घायलों को जल्द से जल्द समुचित इलाज मुहैया कराने के लिए काम कर रही है. सरकार ने आसपास के 34 जिलों के प्रशासन और डॉक्टरों को अलर्ट कर दिया है. केंद्र की ओर से मृतकों के परिजनों को दो लाख रुपये और घायलों को 50-50 हजार रुपये दिए जा रहे हैं और राज्य सरकार मृतकों के परिवारों और घायलों को आर्थिक सहायता देगी.”
क्यों मचती है भगदड़ और कैसे मरते हैं लोग
स्थानीय लोगों और चश्मदीदों की मानें तो आयोजन स्थल पर भीड़ के लिहाज से कोई इंतजाम नहीं थे और बाहर कानून-व्यवस्था बनाए रखने वाली पुलिस और प्रशासन के लोग भी उस तादाद में नहीं थे. घटनास्थल पर पहुंचे यूपी के मुख्य सचिव मनोज कुमार ने मीडिया को बताया कि कार्यक्रम में 80 हजार लोगों के आने की अनुमति ली गई थी लेकिन संख्या इससे कहीं ज्यादा थी, इसलिए इंतजाम में भी कमी थी.
हैरानी की बात यह थी कि एक लाख से ज्यादा लोगों की इस भीड़ को नियंत्रित करने के लिए और सुरक्षा के लिहाज से सिर्फ 40 पुलिसकर्मियों को लगाया गया था. यही नहीं, इस सत्संग की तैयारी पिछले 15 दिन से चल रही थी. पंडाल भी तैयार किया गया था लेकिन खुफिया तंत्र ने इतनी ज्यादा भीड़ के एकत्रित होने संबंधी कोई रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को नहीं दी.
भीड़ के हिसाब से नहीं थे इंतजाम
हाथरस के डीएम आशीष कुमार ने मीडिया को बताया कि सत्संग की अनुमति एसडीएम ने दी थी. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या प्रशासन को सत्संग स्थल पर भीड़ का अंदाजा नहीं था? क्या प्रशासन ने इस बात की जानकारी नहीं ली थी कि इतनी बड़ी संख्या में अगर लोग पहुंच रहे हैं तो एंट्री और एग्जिट पॉइंट्स अलग-अलग और पर्याप्त संख्या में हैं या नहीं. डीएम के मुताबिक, कानून-व्यवस्था के लिए कार्यक्रम स्थल के बाहर ड्यूटी लगाई गई थी लेकिन अंदर की व्यवस्था खुद आयोजकों की ओर से की जानी थी.
भगदड़ मनोवैज्ञानिक नहीं, भौतिक घटना
स्थानीय लोगों और प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि कार्यक्रम स्थल पर ना सिर्फ बहुत ज्यादा भीड़ थी बल्कि गर्मी और उमस से भी लोग बहुत परेशान थे और गर्मी के लिए कोई खास इंतजाम नहीं किए गए थे. एक प्रत्यक्षदर्शी रघुवीर लाल ने डीडब्ल्यू को फोन पर बताया, "जहां लोग बैठे थे वो जगह भी ऊबड़-खाबड़ थी. जब लोग बाबा के पास भागने लगे तो कई लोग उन्हीं गड्ढों में फंस गए. भगदड़ की मुख्य वजह यही थी.”
कुछ अन्य चश्मदीदों का भी कहना है कि कार्यक्रम खत्म होने के बाद लोग भोले बाबा के पैर की धूल लेने के लिए दौड़े. लेकिन बाबा दूसरी ओर चले गए तो लोग उस ओर दौड़े. इस चक्कर में कई लोग सड़क किनारों के गड्ढों में गिर गए और फिर भगदड़ मच गई. इस वजह से कई लोग कुचले गए.
रघुवीर लाल बताते हैं, "सत्संग के बाद बाबा के करीब जाने के लिए लोग धक्का मुक्की करने लगे. इन लोगों को सेवादारों ने डंडा दिखाकर रोकना चाहा जिससे भगदड़ मच गई. भगदड़ की वजह से हाईवे के किनारे बने गड्ढे में लोग गिरते चले गए. चूंकि बरसात के कारण फिसलन भी हो रही थी, इसलिए एक के बाद एक लोग गड्ढे में गिरते गए.”
इस दौरान लक्जरी गाड़ियों के साथ बाबा का काफिला भीड़ को चीरते हुए आगे बढ़ता रहा और लोग गिरते रहे. न तो बाबा रुके और न ही उनके साथ जा रहे दूसरे लोग और न ही दर्जनों आयोजकों में से किसी ने मरने वालों की सुध ली.
यही नहीं, इस हादसे ने पुलिस, प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की भी कलई खोल कर रख दी. हादसे के दौरान प्रशासनिक तंत्र पूरी तरह से लाचार दिखा. कार्यक्रम स्थल से लेकर ट्रॉमा सेंटर तक अव्यवस्थाएं हावी रहीं. अस्पताल में ऑक्सीजन, बिजली और दूसरी सुविधाएं नदारद थीं और तमाम कोशिशों के बावजूद इन व्यवस्थाओं को प्रशासनिक अमला संभाल नहीं सका. इस वजह से लोगों में काफी गुस्सा भी दिखा.
सिकंदराराऊ सीएचसी स्थित ट्रॉमा सेंटर पर जैसे ही घायलों का पहुंचना शुरू हुआ तो यहां ना तो ऑक्सीजन थी और ना ही पैरामेडिकल स्टाफ और डॉक्टर. बाद में घायलों को आगरा, अलीगढ़ और अन्य जगहों के अस्पतालों में ले जाना पड़ा. कई घायलों ने तो इलाज के अभाव में ही दम तोड़ दिया.
कौन हैं संत भोले बाबा?
जिन स्वयंभू संत भोले बाबा की चरण रज यानी पैर की धूल लेने के लिए उनके भक्त उमड़ पड़े उनकी कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है. भोले बाबा मूल रूप से कासगंज जिले के पटियाली गांव के रहने वाले हैं. स्थानीय पत्रकार दिनेश शाक्य के मुताबिक, पहले वह उत्तर प्रदेश पुलिस में नौकरी करते थे लेकिन बाद में वीआरएस लेकर संत बन गए और प्रवचन करने लगे. हालांकि कासगंज के कुछ लोग बताते हैं कि उन्हें पुलिस की नौकरी से निकाल दिया गया था. वो पुलिस की खुफिया इकाई में काम करते थे.
दिनेश शाक्य बताते हैं, "बाबा यूपी के कई जिलों में तैनात रहे. उत्तर प्रदेश के अलावा आस-पास के राज्यों में भी जाने लगे और प्रवचन करने लगे. उनके लाखों अनुयायियों में ज्यादातर दलित और पिछड़े वर्ग के ही लोग हैं. भोले बाबा और उनके अनुयायी मीडिया से दूरी बनाकर रहते हैं. हालांकि सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते हैं.”
भोले बाबा मंच पर अपनी पत्नी के साथ बैठकर प्रवचन करते हैं और अक्सर सफेद रंग के सूट में नजर आते हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जहां उनका सत्संग होता है वहां की व्यवस्था आयोजक लोग ही करते हैं. हाथरस में भी इस कार्यक्रम में सत्तर से ज्यादा आयोजक थे जिनके नाम और फोन नंबर कार्यक्रम के पोस्टर में छपे थे.
भारत में ये पहली बार नहीं है जब धार्मिक आयोजनों या सत्संग जैसे कार्यक्रमों में मची भगदड़ में लोग मारे गए हैं. पिछले साल एक रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत भगदड़ के कारण मौतों का सबसे बड़ा केंद्र बनता जा रहा है.
साल 2005 में महाराष्ट्र में सतारा के मांढरदेवी मंदिर में मची भगदड़ में 340 लोगों की मौत हो गई थी. साल 2008 में राजस्थान के चामुंडा देवी मंदिर में भगदड़ के दौरान 250 लोग मारे गए थे. उसी साल हिमाचल प्रदेश के नैना देवी मंदिर में ऐसे ही एक हादसे में 162 लोगों की मौत हो गई थी. अभी पिछले साल ही इंदौर शहर में रामनवमी के मेले में भगदड़ मच गई और 36 लोगों की मौत हो गई.
भगदड़ में न तो पहली बार लोग मरे हैं और न ही आखिरी बार. बड़ी घटनाओं के बाद तत्काल कुछेक अफसर कर्मचारी सस्पेंड होते हैं, कुछ कार्रवाई होती है, पीड़ितों को मुआवजे दिए जाते हैं और फिर सब सामान्य हो जाता है. और यही वजह है कि घटनाओं की पुनरावृत्ति होती है. हालांकि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के तेवरों को देखकर लगता है कि शायद कोई बड़ी कार्रवाई हो.